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शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

मेरा भैया..प्रेम काव्य ....अष्टम सुमनान्जलि--सहोदर व सख्य-प्रेम ...रचना ४.....डा श्याम गुप्त....

                                  



    



  
    
                                                         कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित                                                                  
                        
         प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है  | प्रस्तुत है-- अष्टम सुमनान्जलि--सहोदर व सख्य-प्रेम ...इस खंड में ...अनुज, अग्रज,  भाई-बहन,  मेरा भैया,  सखा ,  दोस्त-दुश्मन एवं दाम्पत्य ...आदि सात  रचनाएँ प्रस्तुत की जायेंगी 
---प्रस्तुत है ..चतुर्थ रचना ...मेरा भैया .....

चान्दनी  मुस्कुराये, चाँद भी खिलखिलाए,
सुधि बचपन की मन में, लहर लहर जाए । 

वो  भैया के माथे पर, रोली का टीका,
नेग लड़-लड़ के लेना कराना मुंह मीठा ।
 
वो  राखी के डोरे, जो बने प्रीति बंधन, 
वो झूलों की पींगें, वो कुट्टी वो अनबन ।

 रुलाया किसी ने भी, मुझे यूंही कभी जब,
पीट देना और अच्छा सबक सा सिखाना ।

कैसे छुआ भी  तूने, बहन है ये मेरी,
प्रीति के पल वो कैसे भुला कोई पाए ।

चांदनी मुस्कुराए, चाँद भी खिलखिलाए,
सुधि बचपन की मन में लहर लहर जाए ।।

खेल ही खेल में  छेड़ करके सभी को ही , 
मुस्कुरा मुस्कुरा फिर, रुलाना सभी को।

रूठना और मनाना, वो फिर-फिर रिझाना ,
मीठी  यादों को ऐसी, भुला  कौन पाए ।  

उसकी मासूम भोली सी मुस्कान पर तो, 
मरती-मिटतीं थी सारी ही सखियाँ मेरी ।

करके शैतानियाँ, झगड़े नादानियां , और-
तोड़ना सब दिलों का, वो चलन याद आये । 

चांदनी मुस्कुराए, चाँद भी खिलखिलाए,
सुधि बचपन की मन में महक महक जाए ।।
                                                                                                ----- चित्र ...श्याम गुप्त 

4 टिप्‍पणियां:

dinesh aggarwal ने कहा…

सुन्दर एवं सराहनीय अभिव्यक्ति.....
कृपया इसे भी पढ़े
नेता,कुत्ता और वेश्या

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद दिनेश जी....

India Darpan ने कहा…

लाजबाब प्रस्तुतीकरण..

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद खबरनामा जी....खबर लेने के लिये...