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मंगलवार, 17 जनवरी 2012

भाई-बहन ..प्रेम काव्य...अष्टम सुमनान्जलि--..सहोदर व सख्य-प्रेम...गीत-३...डा श्याम गुप्त..

                               कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित






प्रेम   -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है  | प्रस्तुत है-- अष्टम सुमनान्जलि--सहोदर व सख्य-प्रेम ...इस खंड में ...अनुज, अग्रज,  भाई-बहन,  मेरा भैया,  सखा ,  दोस्त-दुश्मन एवं दाम्पत्य ...आदि सात  रचनाएँ प्रस्तुत की जायेंगी 
---प्रस्तुत है ..तृतीय रचना ...भाई-बहन ...     

भाई और बहन का प्यार कैसे भूलजायं,
बहन ही तो भाई का प्रथम  सखा होती है |

भाई ही तो बहन का होता है प्रथम मित्र,

बचपन की यादें कैसी मन को भिगोती हैं |

बहना दिलाती याद, ममता की माँ की छवि,

भाई में बहन छवि पिता की संजोती है |

बचपन महकता रहे, सदा  यूंही श्याम',

बहन को भाई उन्हें बहनें प्रिय होती हैं||




भाई औ बहन का प्यार दुनिया में बेमिसाल ,
यही प्यार बैरी  को भी राखी भिजवाता है 

दूर देश बसे हों , परदेश या विदेश में हों ,

भाइयों को यही प्यार खींच खींच लाता है |

एक एक धागे में बंधा असीम प्रेम-बंधन ,

राखी का त्यौहार , रक्षाबंधन बताता है |

निश्छल अमिट बंधन,श्याम' धरा-चाँद जैसा ,

चाँद  इसीलिये  चंदामामा  कहलाता है ||



रंग-बिरंगी सजी राखियाँ कलाइयों पै,

देख देख  भाई  हरषाते  इठलाते हैं | 

बहन जो लाती है मिठाई भरी प्रेम-रस,

एक दूसरे को बढे प्रेम से खिलाते हैं |

दूर देश बसे जिन्हें राखी मिली डाक से,

बहन की ही छवि देख देख मुसकाते हैं |

अमिट अटूट बंधन है ये प्रेम रीति का,

सदा बनारहे श्याम ' मन से मनाते हैं ||




2 टिप्‍पणियां:

vidya ने कहा…

बहुत सुन्दर....
शुभकामनाएँ.

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद विद्या जी....