कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है-- दशम सुमनान्जलि- अध्यात्म ----इस सुमनांजलि में पांच रचनाएँ....तुच्छ बूँद सा जीवन, प्रभु ने जो यह जगत बनाया, अहं-ब्रह्मास्मि ,
प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है-- दशम सुमनान्जलि- अध्यात्म ----इस सुमनांजलि में पांच रचनाएँ....तुच्छ बूँद सा जीवन, प्रभु ने जो यह जगत बनाया, अहं-ब्रह्मास्मि ,
ब्रह्म-प्राप्ति तथा परमानंद ...प्रस्तुत की जायंगी | प्रस्तुत है ...पंचम व दशम सुमनांजलि की अंतिम रचना... परमानंद .....
सब सुख साधन प्राप्त तुझे हैं ,
सब सुख जग के पाए |
फिर भी तू अंतर्मन मेरे,
शान्ति नहीं क्यों पाए ?
धन पद वैभव रूप खजाने ,
प्रेम-प्रीति परिवार सुहाने |
रीति-नीति सुख,सुखद सुजाने,
सब तो तूने पाए |
फिर भी तू अंतर्मन मेरे,
शान्ति नहीं क्यों पाए ||
पढ़ पढ़ कर सब वेद-उपनिषद ,
विविध शास्त्र, विज्ञान-ज्ञान सब |
प्रेम-गीत, जग रीति, मधुर स्वर,
भक्ति-गीत सब गाये |
मन में कितना अहं सजाये,
इच्छाओं की गाँठ बसाए |
चाहे भक्ति-मुक्ति ही चाहे ,
चैन नहीं तू पाए |
फिर भी तू अंतर्मन मेरे,
शान्ति नहीं क्यों पाए ||
इच्छाओं की गाँठ कटे जब,
अहं-भाव की फांस मिटे जब |
कर्तापन का दंभ हटे जब,
मुक्ति तभी होपाये |
परम शान्ति मिल जाए,
मन में परमानंद समाये ||
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