कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
--क्रमश ग़ज़ल २ व ३ ----
पीर ज़माने की (ग़ज़ल संग्रह ) --- क्रमश आगे----
----प्रार्थना व गज़ल १--पीर ज़माने की---
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प्रार्थना .....
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ईश अपने भक्त पर, इतनी कृपा कर दीजिये |
रमे तन मन राष्ट्रहित में, प्रभो ! यह वर दीजिये |
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ईश अपने भक्त पर, इतनी कृपा कर दीजिये |
रमे तन मन राष्ट्रहित में, प्रभो ! यह वर दीजिये |
प्रेम करुणा प्राणि सेवा, भाव नर के उर बसें ,
दया ममता सत्य से युत, भाव मन धर दीजिये |
दया ममता सत्य से युत, भाव मन धर दीजिये |
सहज भक्ति से आपकी, मानव करे नित वन्दना ,
प्रेममार्ग प्रशस्त जग हो , प्रीति लय सुर दीजिये |
प्रेममार्ग प्रशस्त जग हो , प्रीति लय सुर दीजिये |
मैं न मंदिर में गया, प्रतिमा तुम्हारी पूजने,
भाव हो पत्थर नहीं, यह भाव जग भर दीजिये |
भाव हो पत्थर नहीं, यह भाव जग भर दीजिये |
पाप पंक में इस जगत के, डूबकर भूला तुम्हें ,
याद करके स्वयं मुझको, भक्ति के स्वर दीजिये |
याद करके स्वयं मुझको, भक्ति के स्वर दीजिये |
दूर से आया तुम्हारी शंख-ध्वनि का नाद सुन ,
नाद अनहद मधुर स्वर से, भर प्रभो! उर दीजिये |
नाद अनहद मधुर स्वर से, भर प्रभो! उर दीजिये |
राह आधी आगया हूँ, अब चला जाता नहीं ,
हो कृपासागर तो दर्शन यहीं आकर दीजिये |
हो कृपासागर तो दर्शन यहीं आकर दीजिये |
हे दयामय! दयासागर! प्रभु दया के धाम हो ,
श्याम के ह्रदय में बस कर, पूर्ण व्रत कर दीजिये ||
श्याम के ह्रदय में बस कर, पूर्ण व्रत कर दीजिये ||
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१. पीर ज़माने की....
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उसमें घुसने की मुझको ही मनाही है |
दरो दीवार जो मैंने ही बनाई है |
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उसमें घुसने की मुझको ही मनाही है |
दरो दीवार जो मैंने ही बनाई है |
मैं ही सज़दे के काबिल नहीं उसमें,
ईंट दर ईंट मस्जिद मैंने ही चिनाई है |
ईंट दर ईंट मस्जिद मैंने ही चिनाई है |
पुस्तक के पन्नों मे उसी का ज़िक्र नहीं ,
पन्नों पन्नों ढली वो बेनाम स्याही है |
पन्नों पन्नों ढली वो बेनाम स्याही है |
लिख दिए हैं ग्रंथों पर किस किस के नाम,
अक्षर अक्षर तो कलम की लिखाई है |
अक्षर अक्षर तो कलम की लिखाई है |
गगनचुम्बी अटारियों पर है सब की नज़र,
नींव के पत्थर की सदा किसको सुहाई है |
नींव के पत्थर की सदा किसको सुहाई है |
सज संवर के इठलाती तो हैं इमारतें, पर,
अनगढ़ पत्थरों की पीर नींव में समाई है |
अनगढ़ पत्थरों की पीर नींव में समाई है |
वो दिल तो कोई दिल ही नहीं जिसमें,
भावों की नहीं बजती शहनाई है |
भावों की नहीं बजती शहनाई है |
इस सूरतो-रंग का क्या फ़ायदा श्याम,
जो मन नहीं पीर ज़माने की समाई है ||
जो मन नहीं पीर ज़माने की समाई है ||
--क्रमश ग़ज़ल २ व ३ ----
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