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शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

पीर ज़माने की -ग़ज़ल संग्रह---आगे -गजल -२ दलदल ---डा श्याम गुप्त .

                                            कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित





पीर ज़माने की (ग़ज़ल संग्रह ) --- क्रमश आगे---- गजल -२
दलदल .
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बड़े शौक से आये थे कुछ काम करेंगे |
सेवा करेंगे देश की कुछ नाम करेंगे |

गन्दला गयी है राजनीति इस देश की,
कुछ पाक साफ़ करेंगे, जब काम करेंगे |

काज़ल की कोठरी है, हम जानते थे खूब,
इक लीक तो लगेगी पर नाम करेंगे |

 दुश्मनों से हम तो, हरदम थे खबरदार,
जाना नहीं था अपने ही बदनाम करेंगे |

वो साथ भी चले नहीं और खींच लिए पाँव,
था भरोसा कि साथ कदमताल करेंगे |

सच की ही राह चलते रहे हम तो उम्र भर ,
राहें बदल कर क्या नया मुकाम करेंगे |

हर शाख ही यहाँ की है उलूकों के हवाले,
बदलें जो ठांव अब क्या नया धाम करेंगे

बैठे हैं गिद्ध चील कौवे हर डाल पर ,
व्याख्यान देते श्वान गधे गान करेंगे |

इतना है दलदल कोई कहाँ बैठे खडा हो,
कीचड़ से लथपथ होगये क्या काम करेंगे |

दलदल से बाहर कैसे आयें सोच रहे श्याम ,
सारा ही इंतजाम अब तो राम करेंगे ||

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