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बुधवार, 19 दिसंबर 2018

पीर ज़माने की -ग़ज़ल संग्रह---२----आगे...प्रस्तावना ---साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य ---डा श्याम गुप्त

                                      कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


पीर ज़माने की -ग़ज़ल संग्रह-------आगे......२.... 
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प्रस्तावना ---साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य 
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डा श्यामगुप्त हिन्दी साहित्य में एक ऐसा नाम है जिसे भुलाया नहीं जा सकता | महाकाव्य ‘सृष्टि’ एवं ‘शूर्पणखा खंडकाव्य’ लिखकर वे आज महाकवि के रूप में राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर जाने जाते हैं |
------ डा श्यामगुप्त का पूरा नाम डा.श्यामबाबू गुप्ता है | आगरा विश्वविद्यालय से एमबीबीएस, एम.एस.(शल्य) की डिग्री प्राप्त करने के उपरांत भारतीय रेलवे में शल्य-चिकित्सक के रूप में कार्यरत रहे | लखनऊ रेलवे अस्पताल में रहते हुए वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए |
------ डा श्यामगुप्त का साहित्य के प्रति लगाव बचपन से ही रहा | माता-पिता, बड़े भाई सभी शिक्षा व साहित्य से जुड़े रहे |
-------ब्रजक्षेत्र में जन्म होने के कारण स्वाभाविकरूप से कृष्ण-काव्य लेखन में विशेष रूचि रही | सुकवि डा श्यामगुप्त की लगभग एक दर्जन साहित्यिक कृतियाँ प्रकाशित होकर लोकार्पित हो चुकी हैं |
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कविवर डा.श्यामगुप्त एक प्रयोगधर्मी साहित्यकार हैं | वे साहित्य के क्षेत्र में नए-नए प्रयोग करते रहते हैं | वस्तुतः साहित्यकार को प्रयोगधर्मी होना चाहिए, मैं भी स्वयं को एक प्रयोगधर्मी साहित्यकार मानता हूँ इसलिए मेरा व उनका सम्बन्ध साहित्य के क्षेत्र में मिशाल बना हुआ है |
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१९६६ ई में मेरे द्वारा चलाई हुई अगीत काव्य-विधा का सम्पूर्ण इतिहास व उसका छंद-विधान डा श्यामगुप्त द्वारा रचे गये लक्षण ग्रन्थ ‘अगीत साहित्य दर्पण’ के नाम से प्रकाशित हुआ |
------- यह ग्रन्थ अगीत काव्य-विधा को समझने हेतु मील का पत्थर सिद्ध हुआ | आपकी काव्यदूत, प्रेमकाव्य महाकाव्य, कुछ शायरी की बात होजाए, अगीत-त्रयी, ब्रजबांसुरी, ईशोपनिष का काव्यभावानुवाद, तुम तुम और तुम, प्रेम व श्रृंगार गीत संग्रह आदि चर्चित कृतियाँ प्रकाशित होचुकी हैं|
--------आपकी नवीनतम कृति ‘पीर ज़माने की’ ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित होकर शीघ् ही विज्ञ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत होने जा रही है | यह खड़ीबोली हिन्दी में प्रकाशित हो रही है |
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उर्दू की कोई लिपि नहीं है, अरबी-फारसी विदेशी लिपियाँ हैं जो बाहर से भारतवर्ष में आईं हैं | उर्दू शायरी भी अब धीरे धीरे नवीन प्रयोगों की ओर बढ़ रही है | उर्दू शायरी के दो प्रसिद्ध स्कूल हैं—१.दिल्ली स्कूल...२.लखनऊ स्कूल, हैदराबाद में बोली जाने वाली दक्खिनी उर्दू अलग है |
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हिन्दी में ग़ज़ल लिखने वालों में दुष्यंत कुमार को पहला रचनाकार/गज़लकार माना जाता है | श्री बलबीर सिंह रंग, पद्मश्री गोपालदास नीरज, राम बहादुर सिंह भदौरिया, ने हिन्दी में अच्छी गज़लें लिखी हैं|
------- नए लोगों में डा श्यामगुप्त, डा मंजू सक्सेना, विजयकुमारी मौर्या विजय, तरुण प्रकाश, डा हरि फैजाबादी, मिजाज़ लखनवी, मंजुल मंजर लखनवी, आदि के नाम लिए जा सकते हैं|
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डा श्यामगुप्त की गज़लें व अन्य शायरी मूलतः लखनऊ स्कूल से जुडी हुईं मानी जायगीं | उर्दू में मिर्ज़ा गालिव और उसके बाद फिराक गोरखपुरी की शायरी नए रचनाकारों के लिए मील का पत्त्थर बनी |
-------उर्दू ग़ज़ल व हिन्दी ग़ज़ल के बारे में इस संग्रह के आरम्भ में अपने कथ्यांकन ‘बात ग़ज़ल की’ के अंतर्गत महाकवि डा श्यामगुप्त जी ने ग़ज़लों के प्रकार, उनमें नवीन प्रयोगों तथा रचनाकारों का उल्लेख करते हुए अपनी बात विस्तार से उदाहरण सहित चर्चा की है | मैं उस गहराई में न जाकर कुछ बातें प्रस्तुत कृति ‘पीर ज़माने की’ के बारे में करूंगा |
-------प्रार्थना शीर्षक में गज़लकार डा गुप्त अपनी बात कहते हुए प्रभु से दर्शन देने की प्रार्थना करते हैं—
‘राह आधी आगया हूँ, अब चला जाता नहीं |
हो कृपा सागर तो दर्शन यहीं आकर दीजिये |
----- कृति शीर्षक की ग़ज़ल ‘पीर ज़माने की ‘ में ये पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं---
उसमें घुसने की, मुझको ही मनाही है,
दरो-दीवार जो मैंने ही बनाई है |
X x x
वो दिल कोइ दिल नहीं जिसमें ,
भावों की नहीं बजती शहनाई है |
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‘आज आदमी ‘ शीर्षक ग़ज़ल की निम्न पंक्तियों में आदमी का सच्चा चित्रण देखिये---
‘अब आदमी के सर पर बैठा है आदमी ,
छत अपने सर की ढूँढता है आज आदमी |
x x x
लड़ते थे पेच पतंग के, अंखियों के पेच भी,
सब खोजता ही रह गया आज आदमी |
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‘ग़ज़ल ज्ञान’ नामक ग़ज़ल में ग़ज़ल का ज्ञान देखिये ----
गजल की कोई किस्म नहीं होती है दोस्तो,
ग़ज़ल का जिस्म उसकी रूह ही होती है दोस्तो |
x x x
मस्ती में झूम कहदें श्याम, ग़ज़ल ज्ञान क्या,
हर ग़ज़ल सागर ज्ञान का ही होती है दोस्तों |
------ होली राष्ट्रीय त्यौहार है आज होली है शीर्षक ग़ज़ल की चार पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं---
बौराई सी घूमे वो नई नवेली दुल्हन,
घर भर को चढ़ा बुखार कि आज होली है |
x x x
इतरा के उसने मल दिया मुख पर गुलाल श्याम,
तन मन खिली रंगोली कि आज होली है |
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‘अंदाज़े बयाँ ज़िंदगी का’ ...में ज़िंदगी जीने का मकसद बयां किया गया है | मुझे न छेड़ो, ग़ज़ल, कविता कामिनी, गज़लोपनिषद, तटबंध होना चाहिए, वो अपने आप देता है, तू वही है, लिखी जाने लगी है ग़ज़ल, ग़ज़ल की ग़ज़ल, भ्रम से घिरे हैं लोग, नियम, गंगा प्रदूषण, माँ का वंदन आदि गज़ले सामाजिक सरोकारों से जुडी हुई हैं और कोई ने कोई नूतन सन्देश समाज के लिए प्रेषित करती हैं|
------ग़ज़ल माँ का वंदन की पंक्तयां देखें—
फिर आज माँ की याद आयी सुबह सुबह,
शीतल पवन सी घर में आयी सुबह सुबह |
------ गज़लें अंदाज़े बयाँ ज़िंदगी का, दीप जले, जश्न मनाता चल, दोस्त, क्या होगा, आदमी आदि बुद्धिजीवियों के लिए पठनीय हैं| यथा—
हम जो खुद अच्छे रहें अच्छा रहे हर आदमी ,
श्याम क्यों यह अज तक समझा नहीं हर आदमी |
------- प्रेम पियाला पीते रहो, आँख का पानी, ग़ज़ल होती है, ख्वाहिशें, पुरस्कार की हसरत , वल्लाह न जाइए, कोई तो मामिला होगा, घट पाप का आदि गज़लें नए प्रयोगों से परिपूर्ण हैं |
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गजलों की भाषा खड़ीबोली हिन्दी है कहीं कहीं उर्दू व अपभ्रंश शब्द आवश्यकतानुसार पाए जाते हैं | ब्रज व अवधी के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है | ------शैली प्रवाहपूर्ण व बोधगम्य है| सभी गज़लें प्रसाद गुण से युक्त हैं | अलंकारों की छटा भी यत्र तत्र देखने को मिलाती है, अनुप्रास का प्रयोग अधिक हुआ है | डा श्यामगुप्त आगरा के निवासी हैं उनका कार्यक्षेत्र लम्बे समय तक लखनऊ रहा है अतः महाकवि के इस पूरे संग्रह में गंगा-जमुनी तहजीब की भाव-छटा देखने को मिलती है |
-------- डा श्यामगुप्त के प्रस्तुत संग्रह ‘पीर ज़माने की’ में नयी और पुरानी पीढी के रचनाकारों को कुछ न कुछ सीख अवश्य मिलेगी तथा यह ग़ज़ल संग्रह, ग़ज़ल संग्रहों की कड़ी में एक मील का पत्थर साबित होगा | ऐसा मेरा दृढ विश्वास है |
------ महाकवि श्यामगुप्त की कारयित्री प्रतिभा को मैं अपने चारों ओर परिक्रमित पाता हूँ | उनकी दिनों दिन साहित्यिक क्षेत्र में बढ़ती यश:कीर्ति मुझे भी प्रोत्साहित करती है | इस ग़ज़ल संग्रह से उर्दू हिन्दी ग़ज़लों की लिखने की जानकारी मिल सकती है, अतः यह पाठ्यक्रम में भी लगाने लायक है | महाकवि डा श्यामगुप्त लिखते रहें ,खूब लिखते रहें, वादे वादे जायते तत्वबोध के परिप्रेक्ष्य में, मैं इस ग़ज़ल संग्रह का स्वागत करता हूँ एवं अपनी समस्त शुभकामनाएं संप्रेषित करता हूँ |

दि. ०१ फरवरी, २०१८ ई.गुरूवार शुभेच्छु
अगीतायन, ई-३८८५, साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य डीलिट.
राजाजीपुरम लखनऊ -१७ संस्थापक /अध्यक्ष,
दू.भा.०५२२-२४१४ ८१७ अखिल भारतीय अगीत परिषद्,
लखनऊ
मो.९३३५९९०४३५

------क्रमश --पीर ज़माने की----आगे-- 1. बात ग़ज़ल की ....

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