कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
महर्षि वाल्मीकि आदि कवि क्यों हैं----
===========================
आदिकवि वाल्मीकि प्रणीत रामायण संस्कृत भाषा का आदिकाव्य माना जाता है, जिसकी रचना अनुष्टुभ् छंद में की गयी है । अतः वाल्मीकि ऋषि को आदि कवि कहा जाता है |
-------परन्तु वास्तव में उन्होंने वेदों के छंद श्लोक या अनुष्टुभ छंद को सुधार कर लयबद्ध किया था इसलिए वे आदि कवि हैं |
-------परन्तु वास्तव में उन्होंने वेदों के छंद श्लोक या अनुष्टुभ छंद को सुधार कर लयबद्ध किया था इसलिए वे आदि कवि हैं |
--------वाल्मीकि रामायण के पूर्वकाल में रचित कई वैदिक ऋचाएँ अनुष्टुभ् छंद में भी थी । किंतु वे लघु गुरु-अक्षरों के नियंत्रणरहित होने के कारण, गाने के लिए योग्य (गेय) नही थी । यथा---
-----ऋग्वेद (३.५३.१२)
य इमे रोदसी उभे, अहं इन्द्रं तुष्टवम्।
विश्वामित्रस्य रक्षति, ब्रह्मिदं भारतं जनं।।
-------वेदों में इसके विभेद स्वरूप महापद पंक्ति (३१ वर्णों वाला) और विराट् भी अनुष्टुप के ही रूप माने गए हैं।
-----ऋग्वेद (३.५३.१२)
य इमे रोदसी उभे, अहं इन्द्रं तुष्टवम्।
विश्वामित्रस्य रक्षति, ब्रह्मिदं भारतं जनं।।
-------वेदों में इसके विभेद स्वरूप महापद पंक्ति (३१ वर्णों वाला) और विराट् भी अनुष्टुप के ही रूप माने गए हैं।
---------इस कारण ब्राह्मण, आरण्यक जैसे वैदिकोत्तर साहित्य में अनुष्टुभ् छंद का लोप हो कर, इन सारे ग्रन्थों की रचना गद्य में ही की जाने लगी।
-----इस अवस्था में, वेदों में प्राप्त अनुष्टुभ् छंद को लघुगुरु अक्षरों के नियंत्रण में बिठा कर वाल्मीकि ने सर्वप्रथम अपने ‘मा निषाद’ श्र्लोक की, एवं तत्पश्र्चात् समग्र रामायण की रचना की।
------छंदःशास्त्रीय दृष्टि से वाल्मीकि के द्वारा प्रस्थापित नये अनुष्टुभ् छंद की विशेषता निम्नप्रकार थीः--
श्लोके षष्ठं गु रु ज्ञे यं, सर्वत्र लघु पंचमं।
५ ६ ७ ७
द्वि चतु: पाद यो र्ह्र स्वं, सप्तमं दीर्घमन्ययोः॥
५ ६ ७ ७
--------- वाल्मीकि के द्वारा प्रस्थापित अनुष्टुभ् छंद में, श्र्लोक के हर एक पाद का पाँचवाँ लघु, एवं छठवाँ अक्षर गुरु था । इसी प्रकार समपादों में से सातवॉं अक्षर ह्रस्व, एवं विषमपाद में सातवाँ अक्षर दीर्घ था ।
-------इसी अनुष्टुभ् छंद के रचना के कारण वाल्मीकि संस्कृत भाषा का आदि-कवि कहलाया गया।
------- संस्कृत भाषा के शब्दकोश में ‘कवि’ शब्द का अर्थ भी ‘वाल्मीकि’ ही दिया गया है ।
-----इस अवस्था में, वेदों में प्राप्त अनुष्टुभ् छंद को लघुगुरु अक्षरों के नियंत्रण में बिठा कर वाल्मीकि ने सर्वप्रथम अपने ‘मा निषाद’ श्र्लोक की, एवं तत्पश्र्चात् समग्र रामायण की रचना की।
------छंदःशास्त्रीय दृष्टि से वाल्मीकि के द्वारा प्रस्थापित नये अनुष्टुभ् छंद की विशेषता निम्नप्रकार थीः--
श्लोके षष्ठं गु रु ज्ञे यं, सर्वत्र लघु पंचमं।
५ ६ ७ ७
द्वि चतु: पाद यो र्ह्र स्वं, सप्तमं दीर्घमन्ययोः॥
५ ६ ७ ७
--------- वाल्मीकि के द्वारा प्रस्थापित अनुष्टुभ् छंद में, श्र्लोक के हर एक पाद का पाँचवाँ लघु, एवं छठवाँ अक्षर गुरु था । इसी प्रकार समपादों में से सातवॉं अक्षर ह्रस्व, एवं विषमपाद में सातवाँ अक्षर दीर्घ था ।
-------इसी अनुष्टुभ् छंद के रचना के कारण वाल्मीकि संस्कृत भाषा का आदि-कवि कहलाया गया।
------- संस्कृत भाषा के शब्दकोश में ‘कवि’ शब्द का अर्थ भी ‘वाल्मीकि’ ही दिया गया है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें