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शनिवार, 5 जनवरी 2019

पीर ज़माने की --ग़ज़ल संग्रह---ग़ज़ल----४....रिश्ते निभाने---

                                                  कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


पीर ज़माने की --ग़ज़ल संग्रह---ग़ज़ल----४....


रिश्ते निभाने –
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शहर को आते नहीं अब तो निभाने ,
प्रीति के और रीति के रिश्ते पुराने |

एक मंजिल पर हैं रह रहे परिवार दस,
किन्तु रहते हैं सभी ही सबसे अनजाने |

वे निभाते तो हैं रिश्तों को अब भी मगर,
हों  निभाते चाहे  मतलब के बहाने |

होती दुआ सलाम थी राह में चलते,
फेर नज़रें चल दिये जल्दी के बहाने |

बैठे अकेले पी रहे हैं बंद कमरे में ,
जो साथ पीते सुनते सुनाते थे फ़साने |

कह रहे हैं आप रिश्ते अब नहीं निभते,
कुत्ते बिल्लियों से पड रहे रिश्ते निभाने |

उनको भला कैसे भूल जाएँ ‘श्याम,
वो सांठ-गाँठ के सभी रिश्ते पुराने ||


---क्रमश ----


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