कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
पीर ज़माने की --ग़ज़ल संग्रह---ग़ज़ल----४....
पीर ज़माने की --ग़ज़ल संग्रह---ग़ज़ल----४....
रिश्ते
निभाने –
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शहर
को आते नहीं अब तो निभाने ,
प्रीति
के और रीति के रिश्ते पुराने |
एक
मंजिल पर हैं रह रहे परिवार दस,
किन्तु
रहते हैं सभी ही सबसे अनजाने |
वे
निभाते तो हैं रिश्तों को अब भी मगर,
हों निभाते चाहे
मतलब के बहाने |
होती
दुआ सलाम थी राह में चलते,
फेर
नज़रें चल दिये जल्दी के बहाने |
बैठे
अकेले पी रहे हैं बंद कमरे में ,
जो
साथ पीते सुनते सुनाते थे फ़साने |
कह
रहे हैं आप रिश्ते अब नहीं निभते,
कुत्ते
बिल्लियों से पड रहे रिश्ते निभाने |
उनको
भला कैसे भूल जाएँ ‘श्याम,
वो
सांठ-गाँठ के सभी रिश्ते पुराने ||
---क्रमश ----
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