कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है-- नवम सुमनान्जलि- भक्ति-श्रृंगार ----इस सुमनांजलि में आठ रचनाएँ ......देवानुराग....निर्गुण प्रतिमा.....पूजा....भजले राधेश्याम.....प्रभु रूप निहारूं ....सत्संगति ...मैं तेरे मंदिर का दीप....एवं गुरु-गोविन्द .....प्रस्तुत की जायेंगी । प्रस्तुत है षष्ठ रचना..
सतसंगति
सत-संगति संतन कर संगा ,
सत-संगति वैतरिणी गंगा ||
सांची भक्ति वहीं, प्रभु सोई
जहां संत रहता हो कोई |
बलिहारी संतन पद गाऊँ ,
सत-संगति संतन पद ध्याऊँ |
वहीं अयोध्या काशी सोई,
जहां संत रहता हो कोई |
मथुरा वृन्दावन रामेश्वर,
वहीं तीर्थ हैं जहां संत स्वर |
जिस गृह सत्-संगति, श्रुति-संता ,
सो गृह तीरथ बसें अनंता |
सत् संगति संतन कर संगा ,
सत संगति वैतरिणी गंगा ||
ज्ञानदेव रैदासा मीरा,
रामकृष्ण चैतन्य कबीरा |
तुलसी नानक के पद गाऊँ ,
सूरदास रस भक्ति सजाऊँ |
शिरडी संत-शिरोमणि सोई ,
जहां संत रहता हो कोई |
जिस मन संतन प्रेम समाना ,
उससे दूर नहीं भगवाना |
संतन पद सेवा कर जोई,
रोकी न सकें कोटि यम सोई |
जो सतसंगति रंगहि रंगा ,
पार करे वैतरिणी गंगा ||
सांची भक्ति वहीं प्रभु सोई,
जहां संत रहता हो कोई |
सतसंगति संतन कर संगा ,
सत् संगति वैतरिणी गंगा ||
सतसंगति
सत-संगति संतन कर संगा ,
सत-संगति वैतरिणी गंगा ||
सांची भक्ति वहीं, प्रभु सोई
जहां संत रहता हो कोई |
बलिहारी संतन पद गाऊँ ,
सत-संगति संतन पद ध्याऊँ |
वहीं अयोध्या काशी सोई,
जहां संत रहता हो कोई |
मथुरा वृन्दावन रामेश्वर,
वहीं तीर्थ हैं जहां संत स्वर |
जिस गृह सत्-संगति, श्रुति-संता ,
सो गृह तीरथ बसें अनंता |
सत् संगति संतन कर संगा ,
सत संगति वैतरिणी गंगा ||
ज्ञानदेव रैदासा मीरा,
रामकृष्ण चैतन्य कबीरा |
तुलसी नानक के पद गाऊँ ,
सूरदास रस भक्ति सजाऊँ |
शिरडी संत-शिरोमणि सोई ,
जहां संत रहता हो कोई |
जिस मन संतन प्रेम समाना ,
उससे दूर नहीं भगवाना |
संतन पद सेवा कर जोई,
रोकी न सकें कोटि यम सोई |
जो सतसंगति रंगहि रंगा ,
पार करे वैतरिणी गंगा ||
सांची भक्ति वहीं प्रभु सोई,
जहां संत रहता हो कोई |
सतसंगति संतन कर संगा ,
सत् संगति वैतरिणी गंगा ||
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