कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है-- नवम सुमनान्जलि- भक्ति-श्रृंगार ----इस सुमनांजलि में आठ रचनाएँ ......देवानुराग....निर्गुण प्रतिमा.....पूजा....भजले राधेश्याम.....प्रभु रूप निहारूं ....सत्संगति ...मैं तेरे मंदिर का दीप....एवं गुरु-गोविन्द .....प्रस्तुत की जायेंगी । प्रस्तुत है सप्तम रचना...मैं तेरे मंदिर का दीप हूँ......
मैं तेरे मंदिर का दीप हूँ,
माथा टेक रहा तेरे दर ,
करता चरण वन्दना, हे प्रभु!
तेरे चरणों की सुप्रीति हूँ |
ज्ञान मार्ग मुझको समझादों,
कर्म-भाव की राह दिखादो |
अंतर्मन की प्रीति-नीति हूँ
मैं तेरे मंदिर का दीप हूँ |
मेरी भक्ति-भावना को प्रभु ,
जीवन का संगीत बनादो |
अपनी सहज भक्ति को हे प्रभु !
इस जीवन का गीत बनादो |
करो पूर्ण साकार कल्पना,
मन में अपनी प्रीति बसादो |
प्रभु मैं तेरी भक्ति-प्रीति हूँ ,
मैं तेरे मंदिर का दीप हूँ ||
पापी मैं जग रीति न जानूं ,
अज्ञानी कैसे पहचानूं |
डोल रहा राहों में डगमग ,
अपनी भक्ति की रीति सिखादों |
वरद हस्त रखदो मेरे सिर,
मुझको अपना दास बनालो |
तुम मोती मैं तुच्छ सीप हूं ,
मैं तेरे मंदिर का दीप हूँ ||
तिल तिल जलकर तेरे द्वारे,
तेरी चरण-धूलि बन जाऊं |
राख बनूँ तेरी पूजा की,
चाहे कालिख ही कहलाऊँ |
तुम हो ज्योति और मैं दीपक,
तेरा ही प्रकाश फैलाऊं |
जग पालक मैं जग की रीति हूँ ,
मैं तेरे मंदिर का दीप हूँ ||
मैं तेरे मंदिर का दीप हूँ,
माथा टेक रहा तेरे दर ,
करता चरण वन्दना, हे प्रभु!
तेरे चरणों की सुप्रीति हूँ |
ज्ञान मार्ग मुझको समझादों,
कर्म-भाव की राह दिखादो |
अंतर्मन की प्रीति-नीति हूँ
मैं तेरे मंदिर का दीप हूँ |
मेरी भक्ति-भावना को प्रभु ,
जीवन का संगीत बनादो |
अपनी सहज भक्ति को हे प्रभु !
इस जीवन का गीत बनादो |
करो पूर्ण साकार कल्पना,
मन में अपनी प्रीति बसादो |
प्रभु मैं तेरी भक्ति-प्रीति हूँ ,
मैं तेरे मंदिर का दीप हूँ ||
पापी मैं जग रीति न जानूं ,
अज्ञानी कैसे पहचानूं |
डोल रहा राहों में डगमग ,
अपनी भक्ति की रीति सिखादों |
वरद हस्त रखदो मेरे सिर,
मुझको अपना दास बनालो |
तुम मोती मैं तुच्छ सीप हूं ,
मैं तेरे मंदिर का दीप हूँ ||
तिल तिल जलकर तेरे द्वारे,
तेरी चरण-धूलि बन जाऊं |
राख बनूँ तेरी पूजा की,
चाहे कालिख ही कहलाऊँ |
तुम हो ज्योति और मैं दीपक,
तेरा ही प्रकाश फैलाऊं |
जग पालक मैं जग की रीति हूँ ,
मैं तेरे मंदिर का दीप हूँ ||
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