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रविवार, 10 जून 2012

प्रभु ने जो यह जगत बनाया ...प्रेम काव्य ..सुमनांजलि दशम...रचना..दो.....

                              कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
 प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है  | प्रस्तुत है-- दशम  सुमनान्जलि- अध्यात्म  ----इस सुमनांजलि में पांच  रचनाएँ....तुच्छ बूँद सा जीवन,  प्रभु ने जो यह जगत बनाया, अहं-ब्रह्मास्मि ,  ब्रह्म-प्राप्ति  तथा  परमानंद ...प्रस्तुत की जायंगी | प्रस्तुत है ....द्वितीय रचना... 


प्रभु ने जो यह जगत बनाया

प्रभु  ने जो यह जगत बनाया ,
सो  प्रभु पूजन योग बनाया |
इसकी  पूजा,  प्रभु की पूजा ,
जग  में प्रभु, प्रभु जगत समाया |  ---प्रभु ने जो ....||

प्रभु  को  बंदे  कहाँ  खोजता,
जन -जन के मन बीच समाया |
 जिसने प्रभु के जग को जाना,
सो  प्रभु के मन मांहि  समाना |
सब  जग प्रभु की छाया-माया ,
सो  प्रभु पूजन जोग बनाया |  -----प्रभु ने जो यह....||

कर्म  करे नर, फल की इच्छा -
छोड़े  प्रभु पर, मान ले शिक्षा |
गीता, श्रुति, पुराण सब गाया ,
कर्म  हेतु यह नर तन पाया |
कर्म  हेतु प्रभु जगत बनाया ,
सो प्रभु पूजन जोग बनाया |    ---- प्रभु ने जो यह.....|

                                                     

4 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना....

भावभीनी रचना......................

अनु

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद अनु जी...

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद एक्सप्रेशन जी आपके सुन्दर एक्सप्रेशन हेतु....

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

http://allexpression.blogspot.in/2012/06/blog-post_15.html

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