कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है-- दशम सुमनान्जलि- अध्यात्म ----इस सुमनांजलि में पांच रचनाएँ....तुच्छ बूँद सा जीवन, प्रभु ने जो यह जगत बनाया, अहं-ब्रह्मास्मि , ब्रह्म-प्राप्ति तथा परमानंद ...प्रस्तुत की जायंगी | प्रस्तुत है ...तृतीय रचना...
अहं-ब्रह्मास्मि
मैं ही वह देवाधिदेव हूँ ,
द्वेष और ईर्ष्या अलिप्त हूं |
अजर -अमर हूँ मैं ईश्वर हूँ ,
परमानंद मैं परम शिव हूँ ||
मैं अनंत हूँ सर्वश्रेष्ठ हूँ,
पुरुष के रूप भोग-आनंद |
जिस " मैं " को अनुभव सब करते,
मैं ही हूँ वह शब्द अनंत ||
मैं आनंदघन और ज्ञान घन ,
सुखानुभूति, अनुभव, आनंद |
उपनिषदों का ज्ञाता मैं हूँ,
विश्व-रूप अज्ञान अनंत ||
वाद तर्क और जिज्ञासा से,
प्राप्त तत्त्व जो, मुझे ही जान |
मैं ऋषि ,सृष्टा सृजन-क्रिया हूँ ,
समय का सृष्टा मुझको मान ||
तृप्ति प्रगति समृद्धि दीप हूँ,
आनंदमय और पूर्ण प्रकाश |
अंदर-बाहर व्याप्त रहूँ मैं,
प्राण रहित सब जग में वास ||
ज्ञान ज्ञेय ज्ञाता मैं ही हूँ ,
परे ज्ञान से परम तत्व हूँ |
मैं निर्गुण, निष्क्रिय शाश्वत हूँ ,
निर्विकार हूँ, नित्य मुक्त हूँ ||
औषधियों का ओज-तत्व हूँ ,
सारा जग मेरा आभासी|
मैं निर्लिप्त अमल अविनाशी,
मैं ही सारा जगत प्रकाशी ||
मैं मन नहीं आत्म अविनाशी,
सत्य रूप अंतर-घट बासी |
त्याज्य ग्राह्य से भाव रहित हूँ,
परमब्रह्म मैं घट-घट बासी ||
----चित्र गूगल साभार...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें