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मंगलवार, 5 जून 2012

गुरु गोविन्द ...प्रेम काव्य ... नवम सुमनान्जलि- भक्ति-श्रृंगार (क्रमश:) -रचना

                                   कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित



                                                             प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है  | प्रस्तुत है-- नवम सुमनान्जलि- भक्ति-श्रृंगार ----इस सुमनांजलि में आठ  रचनाएँ ......देवानुराग....निर्गुण प्रतिमा.....पूजा....भजले राधेश्याम.....प्रभु रूप निहारूं ....सत्संगति ...मैं तेरे मंदिर का दीप....एवं  गुरु-गोविन्द .....प्रस्तुत की जायेंगी प्रस्तुत है अष्टम रचना...गुरु-गोविन्द....

गुरु  बिन जगत को गोविन्द पाया  ||

गुरु बिन जगत को गोविन्द जाना |
गुरु  जाना सो गोविन्द जाना ,
गुरु  सेवा जेहि चित्त रमाया ,
सो  नर जगत परम पद पाया |
गुरु-पद नेह लगा निज बंदे,
जेहि गुरु कृपा सो गोविन्द पाया |....गुरु बिन ....||

गुरु की महिमा जो जन जाना,
जिस मन गुरु का प्रेम समाना|
सोई  परम-तत्व को जाने,
ईश्वर को, जग को पहचाने |
जिसके सिर पर गुरु की छाया ,
उसको बाँध सके क्या माया |  ....गुरु बिन.....||


गुरु ब्रह्मा है, गुरु ही ईश्वर,
गुरु है विष्णु वही जगदीश्वर |
वेद विहित अज्ञान-ज्ञान सब ,
जग धारक विज्ञान ध्यान सब |
गुरु के चरण धूलि की छाया ,
जिसने पाई सब कुछ पाया |  ...गुरु बिनु.....||

निरगुन सगुन ब्रह्म आनंदघन,
वह अभिन्न अव्यक्त सचेतन |
शब्दों की सीमा से बाहर ,
मन की गहराई के अंदर |
उस ईश्वर को किसने पाया ,
जिसने गुरु का ध्यान लगाया |


गुरु बिन जगत को गोविन्द पाया ||








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