साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
गुरुवार, 25 अप्रैल 2013
" कुछ शायरी की बात होजाए "....ग़ज़ल 4 .... डा श्याम गुप्त ....
कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से ग़ज़ल, नज्में इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल-४.......
मुझे न छेडो...
मुझे न छेडो इस मानस में ज्वाला मुखी भरे हैं।
जाने क्या-क्या कैसे कैसे अन्तर्द्वन्द्व भरे हैं।
क्या पाओगे घावों को सहलाकर इस तन-मन के,
क्या पाओगे छूकर तन के मन के घाव हरे हैं।
खुशियों की सरगम हो,या हो पीडा की शहनाई,
हंस-हंस कर हर राग सजाया ,बाधा से न डरे हैं।
कोने-कोने क्यों छाई आतन्कवाद की छाया ,
सामाज़िक शुचि मूल्य आज टूटॆ-टूटे बिखरे हैं।
हमने अतिसुख-अभिलाषा में आग लगाई घर को,
कटु बातें कह् डालीं हमने मन के भाव खरे हैं।
यह अग जग सुख-दुःख का मेला, किसने दुःख ना झेला,
धैर्य लगन सत नीति चले जो,सुख के पुष्प झरे हैं |
जिसने खुद को कठिन परिश्रम,जप-तप योग तपाया,
वे ही सोने जैसा तपकर इस जग में निखरे हैं।
एक भरोसा उसी राम का,जग- पालक- धारक है,
श्याम’ कृपा से जाने कितने भव-सागर उतरे हैं॥
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें