साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013
" कुछ शायरी की बात होजाए "....ग़ज़ल -6 .... डा श्याम गुप्त ....
कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से ग़ज़ल, नज्में इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल- ६..... कब समझेंगे ....
लोग आखिर ये बात कब समझेंगे |
बदले शहर के हालात, कब समझेंगे |
ये है तमाशबीनों का शहर यारो,
कोई न देगा साथ, कब समझेंगे |
जांच करने क़त्ल की कोई न आया,
हैं माननीय शहर में आज, कब समझेंगे|
चोर डाकू लुटेरे पकडे नहीं जाते,
सुरक्षा-चक्र में हैं ज़नाब, कब समझेंगे |
कब से खड़े हैं आप लाइन में बेंक की,
व्यस्त सब पीने में चाय, कब समझेंगे |
बढ़ रही अश्लीलता सारे देश में,
सब सोरहे चुपचाप, कब समझेंगे |
श्याम, छाई है बेगैरती चहुँ ओर,
क्या निर्दोष हैं आप, कब समझेंगे ||
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