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सोमवार, 29 अप्रैल 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए "....ग़ज़ल -७--आशनाई .... डा श्याम गुप्त ....

                                         

                                 
                                                कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


             मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल-7.... आशनाई ...

यूं तो खारों  से ही अपनी आशनाई है |
आंधियां भी तो सदा हमको रास आईं हैं |

मुश्किलों का है सफ़र जीना यहाँ ए दिल,
हर एक मुश्किल नयी राह लेके आई है |

तू न घबराना गर राह में पत्थर भी मिलें ,
पत्थरों में भी उसी रब की लौ समाई है |

डूबकर जानिये इसमें ये है दरिया गहरा,
लुत्फ़ क्या तरने का जिसमें न हो गहराई है |

आशिकी उससे करो श्याम हो दुश्मन कोई,
दोस्त, दुश्मन  को बनाए वो आशनाई है ||


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