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मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

कुछ शायरी की बात होजाए ..ग़ज़ल...सरस्वती वन्दना ...डा श्याम गुप्त .....

                                      

                                     कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


             मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है..द्वितीय रचना ....सरस्वती वन्दना ..ग़ज़ल में ...    सरस्वती वन्दना  ....
 
वन्दना  के स्वर ग़ज़ल में कह सकूं माँ शारदे !
कुछ शायरी  के भाव का भी ज्ञान दो माँ शारदे ! 
 
माँ की कृपा यदि हो न तो कैसे ग़ज़ल साकार हो,
कुछ कलमकारी का मुझे भी भान हो  माँ शारदे !
 
मैं जीव, माया बंधनों में स्वयं को भूला हुआ,
नव स्वर लहरियों से हे माँ! ह्रद-तंत्र को झंकार दे |
 
मैं स्वयं को पहचान लूं उस आत्मतत्व को जान लूं,
अंतर में अंतर बसे उस परब्रह्म को गुंजार दे |

हे श्वेत कमलासना माँ !, हे श्वेत वस्त्र से आवृता,
वीणा औ पुस्तक कर धरे,नत नमन लो माँ शारदे !

मैं बुद्धिहीन हूँ काव्य-सुर का ज्ञान भी मुझको नहीं ,
उर ग़ज़ल के स्वर बह सकें कर वीणा की टंकार दे |

ये वन्दना के स्वर-सुमन अर्पण हैं माँ स्वीकार लो ,
हो धन्य जीवन श्याम'का बस कृपा हो माँ शारदे ||
 



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