२९. इन्द्रधनुष....
‘ सुमि, तुम!‘
केजी! अहोभाग्य, ‘ क्या तुमने आवाज़ दी ?’
‘नहीं |’ ‘ मैंने भी नहीं | फिर ?’ ‘ हरि इच्छा’ , मैंने कहा |
वही खिलखिलाती हुई उन्मुक्त हंसी |
चलो, ’वक्त मेहरवान तो क्या करे इंसान” कहाँ जाना है, सुमि ने पूछा |
‘ मुम्बई, 'राशी' की कोंफ्रेंस है और तुम ?’
‘ मुम्बई, पी जी परीक्षा लेने; मेडिकल कालेज के गेस्ट हाउस में ठहरूंगी, और तुम |’
‘ मेरीन ड्राइव पर |’
‘ सागर तीरे !'
‘ नहीं भई, रेस्टहाउस है, चर्चगेट पर | चलो तुम्हारे साथ मेरीन-ड्राइव पर घूमने का आनन्द लेंगे, पुरानी यादें ताजा करेंगे | रमेश कहाँ है ?’
‘ दिल्ली, बड़ा सा नर्सिंग होम है, अच्छा चलता है |’
‘ और फेमिली ? ’बेटा एमबीबीए स कर रहा है, बेटी एमसीए, बस |’
‘ सुखी हो |’ ‘ बहुत, अब तुम बताओ |’
‘ एक प्यारी सी हाउस मेनेजर पत्नी है, सुभी, सुभद्रा | बेटा बी टेक कर रहा है और बेटी एमबीऐ |’
‘ और कविता ?’
‘ वो कौन थी, तीसरी तो कोई नहीं ?’
‘ तुम्हें याद है अभी तक वो पागलपन |’
‘ एक संग्रह छपा है, 'तेरे नाम '
‘ मेरे नाम’
नहीं, ‘ तेरे नाम '
ओह! ‘ मेरे नाम क्या है उसमें ?’
‘ सुबह देख लेना |’
‘ चलो सोजाओ, सुबह बातें होंगीं, फ्री टाइम में मेरीन ड्राइव् घूमना है, बहुत सी बातें करनीं हैं तुम्हारे साथ|’
राजधानी एक्सप्रेस तेजी से भागी जारही थी| सामने बर्थ पर, सुमित्रा कम्बल लपेट कर सोने के उपक्रम में थी और मेरी कल्पना यादों के पंख लगाकर बीस वर्ष पहले के काल में विचरण करने लगी।
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सुमित्रा कुलकर्ण, कर्नल कुलकर्णी की बेटी, चिकित्साविद्यालय में मेरी सहपाठी, बेच पार्टनर, सीट पार्टनर .. सौम्य, सुन्दर, साहसी, निडर, तेज-तर्रार, स्मार्ट, वाक्पटु, सभी विषयों में पारंगत, खुले व सुलझे विचार वाली, वर्त्तमान में जीने वाली, मेरी परम मित्र | हमारी प्रथम मुलाक़ात कुछ यूं हुई |
रात के लगभग नौ बजे लाइब्रेरी से बाहर आया तो सुमित्रा आगे आगे चली जारही थी, अकेली । मैंने तेजी से उसके साथ आकर चलते चलते पूछा, ‘ अरे, इतनी रात कहाँ से ? रास्ता सुनसान है, तुम्हें डर नहीं लगेगा, क्या होस्टल छोड़ दूं ?’
‘ अजीव हैं, डर की क्या बात है |’
‘ ओके, वाय, गुड नाईट’, मैंने कहा और चलदिया |
‘ थैंक्स गाड, जल्दी पीछा छूटा ‘, ‘ पर सात कदम तो साथ चल ही लिए हैं, मैंने मुस्कुराते हुए मुडकर कहा|’
‘ क्या मतलब’ , वह झेंपकर देखने लगी, तो मैंने पुनः' बाई' कहा और चल दिया ।
फिजियो लेब में सुमित्रा झिझकते हुए बोली, ‘ कृष्ण जी, ये मेंढ़क ज़रा 'पिथ' कर देंगे ?’
क्यों, मैंने पूछा ? बोली, जिंदा है अभी|’ ‘ तो क्या मरे को मारोगी’ , मैंने कहा, ‘ हाँ ये बात और है कि, “सुन्दर सुन्दर को क्यों मारे, सुन सुन्दर मेंढक बेचारे |", बगल की सीट पर बैठा सोम सुन्दरम हंसने लगा| मैंने मेंढक हाथ में लेते हुए कहा, 'ब्यूटीफुल'| तो चौंक कर बोली कौन, क्या?
‘ आपके जैसा है |’ वह चिढ कर बोली |
‘ मैं तुम्हें सुन्दर लगता हूँ?’, ‘ नहीं, मेढक’ , वह मुस्कुराई
।
‘इसकी टांगें कितनी सुन्दर हैं, मैं टालते हुए बोला, चीन में बड़ी लज़ीज़ तरह से खाई जातीं हैं|’
‘ठीक है, पैक करके रख दूंगी, घर लेजाना डिनर के लिए |’
‘ तुम्हारी टांगें भी सुन्दर हैं, लज़ीज़ होंगी, क्या उन्हें भी..|’, ‘क्या बकवास है?’वह बोली|
‘ मैंने कहा,जो दिख रहा है वही कह रहा हूँ, तो हूँ, वह पैरों की तरफ सलवार व जूते देखने लगी|
‘ एक्स रे निगाहें हैं, आर पार देख लेतीं हैं’ , मैं कहने लगा |
‘ क्या, वह हडबड़ा कर दुपट्टा सीने पर संभालते हुए, एप्रन के बटन बंद करने लगी|’ मैं हंसने लगा तो, सिर पकड़ कर स्टूल पर बैठ गयी बोली, चुप करो, मेंढक लाओ, मुझे फेल नहीं होना है |’
‘ लो क़र्ज़ रहा’ , मैंने मेंढक लौटाते हुए कहा| वह चुपचाप अपना प्रक्टिकल करने लगी |
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डिसेक्सन हाल में मैंने उससे पूछा, ‘ सुमित्रा जी, सियाटिक नर्व को कहाँ से निकाला जाय, दिमाग से ही उतर गया है। '
है भी’, उसने हाथ से चाकू लगभग छीन कर चुपचाप चीरा लगा कर फेसिया तक खोल दिया| बोली‘ आगे बढूँ या..|’
‘ अभी के लिए बहुत है’ मैंने कहा, "आपने चिलमन ज़रा सरका दिया, हमने जीने का सहारा पालिया।’
सुमित्रा चुपचाप अपने प्रेक्टिकल में लगी रही | बाहर आकर बोली, ‘ कृष्ण जी, उधार बराबर |‘
‘और सूद', मैंने कहा |
सूद, वह आश्चर्य से देखने लगी, ‘ वणिक पुत्र जो ठहरा |’ मैंने कहा तो बोली, ‘क्या सूद चाहिए ।‘
‘ चलो, दोस्ती करलें। काफी पीते हैं, मैंने कहा तो वह सीने पर हाथ रख कर बोली, ‘ ओह ! ठीक है, मेरा तो नाम ही सुमित्रा है, दोस्ती करती है तो करती है, नहीं तो नहीं|’
‘ निभाती भी है’ , मैने पूछा तो बोली, ”इट डिपेन्ड्स’।
केबिन में बैठकर मैंने उसका हाथ छुआ तो कहने लगी, उंगली पकड़ कर हाथ पकड़ना चाहते हैं, एसे तो तुम नहीं लगते। आशाएं विष की पुड़ियाँ होतीं हैं, बचे रहना |’
सुमित्रा जी, मैंने कहा,'मैं नारी तुम केवल श्रृद्धा हो' के साथ पुरुष सम्मान व नारी समानता दोनों का समान पक्षधर हूँ। वादा, जब तक तुम स्वयं कुछ नहीं कहोगी, कुछ नहीं चाहूंगा| स्मार्ट, आत्मविश्वास से भरपूर, मर्यादित नारी की छवि का मैं कायल हूं।‘
‘ब्रेवो, ब्रेवो! वाह, क्या बात है, पर ये भाषण तो मुझे देना चाहिए और ये विचित्र से विचार तो कहीं सुने-पढ़े से लगते हैं, कृष्ण गोपाल! वही तर्क, वही उक्तियाँ, नारी
समन्वय , शायरी... क्या तुम ‘केजी’ के नाम से 'नई आवाज़' में लिखते हो, तुम केजी हो!’
उसकी तीब्र बुद्धि का कायल होकर मैं हतप्रभ रह गया और आँखों में आँखें डाल कर मुस्कुराया।
वह हंसी, एक उन्मुक्त हंसी | कमीज़ की कालर ऊपर उठाने वाले अंदाज़ में बोली, ‘ ये हम हैं, उड़ती चिड़िया के पर गिन लेते हैं | 'आई एम् इम्प्रेस्सेड’ मैं तो केजी की फ़ैन हूँ | कोई कविता हो जाय ।‘ वह गालों पर हथेली रखकर श्रोता वाले अंदाज़ में कोहनी मेज पर टिका कर बैठ गयी | मैंने सुनाया--
“” मैंने सपनों में देखी थी, इक मधुर सलोनी सी काया |"
“तुमको देखा मैंने पाया, वह तो तुम ही थीं मधुर प्रिये ।|"
वाह ! वह बोली, ‘ मैं सुखानुभूति से भरी जारही हूँ, कृष्ण |’ वह मेरा हाथ पकडे बैठी रही |
तो दोस्ती पक्की, मैंने पूछा | तो कहने लगी हूँ, अद्भुत, तर्क, ज्ञान वैविध्य, विना लाग-लपेट बातें, मन को छूतीं हैं कृष्ण | और तुम्हें ...|
‘ हाँ, तुम्हारा आत्मविश्वास, सुलझे विचार, वेबाक बातें, काव्यानुराग मुझे पसंद हैं सुमित्रा| ‘
‘कहीं पहली नज़र में प्यार का मामला तो नहीं’ , अचानक वह सतर्क निगाहों से बोली ।
‘ शायद, और तुम’, मैंने पूछा | तो बोली, ‘ पता नहीं,नहीं कर सकती, दोस्त ही रहूँगी, मज़बूर हूँ|’
‘ क्यों मज़बूर हो भई | ‘
‘ दिल के हाथों, केजी जी| तुम पहले क्यों नहीं मिले, मैं वाग्दत्ता हूँ | रमेश को बहुत प्यार करती हूँ| शादी भी करूंगी |’
‘ ये रमेश कौन भाग्यवान है’ , मैंने पूछा तो बोली, ‘ मेरा पहला प्यार, हम एक दूसरे को बहुत चाहते हैं | दिल्ली में एमबीबीएस कर रहा है, बहुत प्यारा इंसान है|’ और मैं, जब मैंने पूछा तो ख्यालों से बाहर आती हुई बोली, ‘तुम.. तुम अप्रतिम हो, समझलो राधा के श्याम और मैं तुम्हारी काव्यानुरागिनी| समझे, वह माथे से माथा टकराते हु.ए बोली |’
. ‘ अब मैं सुखानुभूति से पागल हुआ जारहा हूँ ,सुमि |’
‘ साथ छोड़कर भागोगे तो नहीं |’
नहीं, मैंने कहा, “ मैं यादों का मधुमास बनूं,जो प्रति पल तेरे साथ रहे” तो हंसने लगी, क्या देवदास बन जाओगे ? अरे नहीं, मैंने कहा, ‘ क्या मैं इतना बेवकूफ लगता हूँ ?’
उसने कहा,‘मन से तो मितवा हम हो गए हैं तेरे, क्या ये काफी नहीं है तुम्हारे लिए।“
मेरी कविता कैसी है महाकवि के.जी.? पूछने पर मैंने कहा,' आखिर शिष्या किसकी बनी हो |', हम दोनों ही हंस पड़े, फिर अचानक चुप होगये |
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कालेज डे मनाया जाना था| सुमित्रा तेज तेज कदमों से चलते हुए आई, बोली, कृष्ण एक गीत बनाना है और तुम्हीं को गाना है | मैं नृत्य में अपना नाम दे रही हूँ | ” पर मुझे गाना कहाँ आता है”, मैंने बताया, ‘ किसी अच्छे गायक को लो न |, ’ नहीं नहीं, ज्यादा लोगों को मुंह क्या लगाना, सब तुम्हारे जैसे सुलझे थोड़े ही होते हैं’ , वह सर हिलाकर बोली |
रिहर्शल पर मैंने सुनाया— तुम चंचल हो तुम श्यामल घन, तुम जीवन हो, तुमसे जीवन|
तेरी प्रीति की रीति पै मितवा, मैं गाऊँ मैं बलि बलि जाऊं |"
सुमित्रा ने सुनाया-तेरे गीतों की सरगम पर मस्त मगन मैं नाचूं गाऊँ |
तेरी प्रीति की रीति पै मितवा, बनी मोहिनी मैं लहराऊं।“
सुमि ने कई बार गा गा कर बताया, डांस पहले स्लो रिदम पर फिर मध्यम पर अंत में द्रुत पर करूंगी, अंतरा इस तरह आदि आदि | प्रोग्राम बहुत अच्छा रहा, सुमि नाराज़ होते हुए बोली, ‘ बड़े खराब हो केजी, मही मन मज़ाक बना रहे होगे | तुम तो बहुत अच्छा गा लेते हो, लगता था जैसे पंख लग गए हों, आज मैं बहुत बहुत बहुत खुश हूँ | पर मेरा मज़ाक तो नहीं बना रहे, श्यामल घन... ’ ,वह खुल कर हंसने लगी।
‘ जी, श्याम सखी, द्रौपदी, अप्रतिम सुन्दरी, भी कोई बहुत गौरवर्णा नहीं थी।‘
‘
मुझे द्रौपदी कह रहे हो?’ मैंने कहा, नहीं भई,तो हंसने लगी, बोली नहीं केजी जी, तुम्हारी बात तो बैसे ही सटीक बैठती है, मैं भी खुद को द्रौपदी कहती हूँ | मेरे भी पांच पति हैं | ‘ मैंने उसे आश्चर्य से देखा तो बोली, ‘ पति क्या है ? जो पत रखे, पतन से बचाए | शास्त्र बचन है, सख्यते, रक्ष्यते पतनात इति सः पति ।‘
‘ किस शास्त्र का है’ , मैंने पूछा, ‘ मेरे शास्त्र का’, वह हंसकर बोली, मैंने भी हंसकर कहा, ‘तब ठीक है, और पांच पति?’
‘जो पतन से बचाएं, शास्त्र व माता पिता के बचन, मेरी अपनी शिक्षा–दीक्षा, मेरा चरित्र व आचरण, रमेश, और र र र.' तुम मैं चुप अवाक। ,‘चकरा गए न ज्ञानी ध्यानी, फिर खिलखिलाकर भाग खडी हुई |’
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धीरे धीरे जब चर्चाएँ गुनगुनाने लगीं तो एक दिन सुमि बोली, कोई चिंता नहीं केजी | कोई सफाई नहीं, भ्रम में जीने दो सभी को | लगभग सभी बड़ी बड़ी डिग्रियां लेकर अर्थ पुजारी बनने वाले हैं | प्रेम, मित्रता, दर्शन, जीवन-मूल्य, परमार्थ सब व्यर्थ हैं इनके लिए | शायद मैं कुछ मतलवी होरही हूँ, तुम्हें यूज़ कर रही हूँ | तुम्हारे साथ रहते कोई और तो लाइन मारकर बोर नहीं करेगा |’ मैंने प्रश्न वाचक निगाहों से देखा तो पूछ बैठी - 'कोई भ्रम या अविश्वास तो नहीं लिए बैठे हो मन ही मन | ', कभी एसा लगा, मैंने पूछा; उसके नहीं कहने पर मैंने कहा, तो सुनो --" ये चहचहाते परिंदे, ये लहलहाते फूल, अपनी मुख़्तसर ज़िंदगी मैं इतने ग़मगीन नहीं तो होते कि खुद कुशी कर लें "
वाह ! मीनाकुमारी पढ़ रहे हो आजकल! , ‘ नहीं अभी तो सुमित्रा कुमारी पढ़ रहा हूँ’ , मैंने हंसकर कहा तो बोली, तो सुनो सुमि का लालची आत्म निवेदन ---
" मैं हूँ लालच की मारी, ये पल प्यार के,रखलूं आँचल में सारे ही संभाल के|
चाहती हूं कोई नगमा रूठे नहीं, ज़िन्दगी का कोई पल भी छूटे नहीं” ।
“प्यार का जो खिला है ये इन्द्रधनुष, जो है कायनात पै सारी छाया हुआ,
प्यार के गहरे सागर मैं दो छोर पर डूब कर मेरे मन है समाया हुआ ।“
सोचते सोचते जाने कब नींद आगई | सुबह किसी के झिंझोड़ने पर मैं जागा |
‘ क्या है सुभी सोने दो न ।‘
‘ मैं सुमि हूँ, केजी, उठो | क्या सपना देख रहे हो |’
मैं हडबड़ा कर उठा, ओह, गुड मॉर्निंग .. । ‘ वेरी वेरी गुड है ये मोर्निंग, तुम्हारे साथ, कृष्ण | चलो आज मैं काफी लाई हूँ | सुमि खुले हुए बालों में फ्रेश होकर दोनों हाथों में कप पकडे हुई थी | हम दोनों ही हंस पड़े | मैंने उसे ध्यान से देखा| बीस वर्ष बाद की सुमि | वही तेज तर्रार, आत्म विश्वास से भरी गहरी आँखें, मर्यादित पहनावा, गरिमापूर्ण सौन्दर्य | कनपटी पर कही कही झांकते, समय की कहानी कहने को आतुर रुपहले बाल |
क्या देख रहे हो, सुमि आँखों में झांकते हुए मुस्कुराई | मै भी मुस्कुराया---
दिल ढूंढता फिर वही, वो सुमि वो प्यारे दिन |
बैठे हैं तसब्बुर में जवां यादें लिये हुए “
‘ तुम तो वैसे ही हो योगीराज’, वह हंसने लगी |
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कार्यक्रमानुसार, हम लोग चौपाटी, मेरीन ड्राइव आदि घूमते रहे | चाट भेलपूरी आदि के वर्किंग लंच के बीच पुरानी यादें ताजा करते रहे | सुमि कहने लगी, सच कृष्ण, जब भी मैं उदास या थकी हुई परेशान होती हूँ तो चुपचाप झूले पर बैठ कर एकांत में कालिज व तुमसे जुडी हुई यादों में खोजाती हूँ जो मुझमें पुनः नवीनता का संचार करतीं हैं | सच है अच्छी यादें सशक्त टानिक होतीं हैं | क्या में विभक्त व्यक्तित्व हूँ ? और तुम तो अपने बारे मै कभी कहते ही नहीं |
‘ नहीं सुमि, तुम अभक्त, अनंत, परमसुखी व्यक्तित्व हो, मैंने कहा, और मैं भी |’
‘ हर बात का उत्तर है तुम्हारे पास और तुरंत|’ , उसने बांह पकड़कर, सर कंधे से लगाते हुए कहा, ‘ चलो अब कुछ सुनादो|’ मैंने सुनाया -
" प्रियतम प्रिय का मिलना जीवन, साँसों का चलना है जीवन |
मिलना और विछुडना जीवन, जीवन हार भी जीत भी जीवन ||"
सुमि ने जोड़ दिया – प्यार है शाश्वत कब मरता है, रोम रोम में बसता है |
अजर अमर है वह अविनाशी, मन मैं रच बस रहता है "
‘ ये तुमने कहाँ से याद किया’, मैंने आश्चर्य से पूछा ‘| मैंने तुम्हारी सब किताबें पढीं हैं’ , वह बोली |
कुछ देर हम चुप दोनों ही चुप रहे, फिर मैंने पूछा , ‘ कब जा रही हो ।‘
. चार बजे की फ्लाईट से। आज, यहाँ का काम जल्दी ख़त्म होगया| दो बज रहे हैं, मैंने घड़ी देखते हुए कहा, ‘ एयरपोर्ट छोड़ने चलूँ |’
“ हाँ “
हम टेक्सी लेकर सुमि के गेस्ट हाउस होकर एयर पोर्ट पहुंचे | लाउंज के एक कोने में खड़े होकर अचानक सुमि बोली, ‘ मुझे किस करो कृष्ण |’
'क्या कह रही हो’ , मैंने आश्चर्य से उसे देखा |
'अब मैं ही कह रही हूँ, यही कहा था न तुमने |' मैंने ओठों से उसके माथे को छुआ तो वह खिलखिला कर हंसती चली गयी | फिर गहराई से आँखों में झांकती हुई बोली, ‘ मैं क़र्ज़ मुक्त हुई कृष्ण, चैन से जा सकूंगी, कहीं भी|’ ..और सूद, मैंने कहा तो हंसने लगी, ‘ अगले जन्म मैं |’
‘ हम अगले जन्म में भी
पक्के दोस्त रहेंगे’ , मैंने अनायास ही हंसते हुए कहा |
‘ नहीं, पति–पत्नी |’
' व्हाट '
"अगले जन्म की प्रतीक्षा करो केजी ‘ , और वह तेजी से बोर्डिंग लाउंज़ में प्रवेश कर गयी ।‘
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