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रविवार, 13 अगस्त 2023

डॉ. श्याम गुप्त की संतुलित कहानियाँ----३१.सही राह पर ---

कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


३१.सही राह पर         

         वर्षा बंद हुई| मेघों के उड़ जाने पर स्वच्छ नीले आकाश में तारे मुस्कुराने लगे मानो बादलों को परास्त करके अपनी विजय पर प्रसन्न हो रहे हों | पूर्व दिशा में एक अकेले आवारा मेघखंड की स्थितिआई वान्डर्ड एज़ लोनली क्लाउड...कविता के याद दिला रही थी | सहसा ही बदली के छंट जाने पर ओट से प्रकाश के सौरभ-कण बिखराता हुआ चाँद निकला जिसकी विभा से उस निस्तब्ध विभावरी में जगतीतल विभोर होगया| उमड़ती हुई नदी भी इठलाती हुई प्रियतम सागर से मिलने के लिए आतुरता से बही चली जा रही थी | नदी के किनारे खड़े हुए दो युवक बरसात में भीगने का आनंद लेते हुए उसके विशाल प्रवाह को देख रहे थे |

      ओह! व्हाट गुड साईट इट इज ...नदी को एकटक देखते हुए अतुल उछल पडा, “कल-कल करके अविरल गति से बहती हुई नदी, ‘कष्ट पड़ें चिंता करो तुम यालेट अस बी अप एंड डूइंग..कविता की याद दिलाती है, लहरें मानो परिहास करती हैं, खड़े रहो मूर्ख-अकर्मंण्यों की तरह, हम तो चलीं|”

      कंकडों से, पत्थरों से, किनारों से परस्पर घर्षण से उत्पन्न ध्वनि ही सुनाई देती है | नदी कभी बोलती है बोलेगी|‘ अनिल ने हंसते हुए कहा,” निर्जीव भी कहीं बोलते हैं|’

       मार्मिकं को मरान्दानामान्तरेण मधुवृतम “..बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद, “ तुम वैज्ञानिक हो, हृदयहीन, प्रकृति के वाक्यों, उसके रहस्यों, कलापों को क्या समझो ? सत्यं शिवम सुन्दरं की परिभाषा क्या जानो ? “ अतुल बोला |

        वैज्ञानिक सत्य के बाद ही शिवं, सुन्दरम की बात बनती है | बस कल्पना करते रहना, हाथ पैर से कुछ करना क्या उपयुक्त है ? विज्ञान ने ही तो प्रकृति के जाने कितने रहस्य खोजे हैं|’ ,  अनिल ने कहा |

        अतुल कहने लगा, कल्पना तो विज्ञान में भी है| सपोज़ सच एंड सच इज इक्वल तो एक्स, हुई वस्तु को भी मान ही लो | परिकल्पनाओं के आधार पर ही तो अनुसंधान उन पर निर्माण होते हैं| साहित्य की कल्पना, अंतर्बुद्धिजहां जाय रवि वहां जाय कवि..’ वाली भावना ही तो समाज को उच्चादर्शों पर प्रतिष्ठित करती है, उसे सुसभ्य सुसंस्कृत बनाती है| बिना शिवम् सुन्दरं के विज्ञान का सत्य विनाशकारी है | एटम बम, हाइड्रोजन बम, उदजन बम क्या क्यों हैं |

         यही तो भूल है विज्ञान के प्रति | शराव अंगूर से बनती है, पर अंगूर तो शराव नहीं है | गलती विज्ञान की है, वैज्ञानिकों की | गलती उपयोग करने वालों की है | अनिल ने कहा, फिर साहित्य की उन्नति भी तो विज्ञान के कारण ही हुई | प्रेस कागज़ के आविष्कार के साथ-साथ ही तो साहित्य का समुत्थान हुआ | विज्ञान के बिना साहित्य ही कहाँ उन्नत होगा, फैलेगा, फले-फूलेगा?

        ठीक ! परन्तु आप यह भूल रहे हैं कि यदि साहित्य के रूप में प्राचीन ऋषियों, शास्त्रकारों, विद्वानों आदि की वाणियाँ, रचनाएँ, पुस्तकें, पुस्तकालय, रामायण, वेद-पुराण, गीता आदि ग्रन्थ अन्य साहित्य जहां से ज्ञान-विज्ञान का उद्गम है, होते तो विज्ञान की उन्नति कहाँ से होती ? यदि वैदिक कर्मकांड विज्ञान है तो वैदिक व्यवहारिक औपनिषदिक ज्ञान साहित्य |” अतुल बोला |

        मानते हैं, साहित्य हो या विज्ञान, सभी का आदि स्रोत एक ही है | परन्तु साहित्य मनोरंजन की वस्तु है, विज्ञान सृजनात्मक कार्य है, मनुष्य की प्रगति का वाहक | अनिल ने उत्तर दिया |   

        सिर्फ मनोरंजन!कदापि नहीं | अतुल तर्क देते हुए बोला,’विज्ञान तो सभ्यता के विकास के लिए सिर्फ सैद्धांतिक क्रियात्मक कार्य करता है जबकि साहित्य मनुष्य को मनोवैज्ञानिक अनुभवजन्य सैद्धांतिक रूप से प्रेरित करता है| अनुभवों, भूलों, अनुचित-उचित का ज्ञान, कर्म व्यवहार का समन्वय, संचयन, नियमन, विनिमय समाज में प्रचारप्रसार साहित्य द्वारा ही तो होता है | यदि किसी भाषा राष्ट्र-समाज का साहित्य ही ठीक हो तो विज्ञान के लिए उपयोगी ज्ञान पुस्तकें कहाँ से उपलब्ध हों ? यदि साहित्य मानव को उन्नति-विकास हेतु प्रेरित करे तो विज्ञान की गाडी कौन खींचेगा ? 

       वैज्ञानिक, अनिल बोला |

       वैज्ञानिक भी तो मनुष्य ही है, देवता या जानवर तो नहीं | अतुल मुस्कुराया |

       मनोविज्ञान भी तो विज्ञान ही है | अनिल ने कहा |

       तो फिर दोनों एक ही हुए |उत्तर मिला,हाँ यह तो है, साहित्य विज्ञान एक दूसरे के अभिन्न अंग हैं| दोनों को ही मानव सभ्यता के उत्थान में आवश्यक कारक मानना चाहिए|अनिल बोला|

       अतुल कहने लगा, ‘हाँ यही तो है, सदैव साहित्य विज्ञान सभ्यता के दो स्तम्भ रहे हैं | जहां भी जब भी वे भिन्न-भिन्न समझे गए उनका अनुचित तादाम्य रहित उपयोग हुआ वहीं विकृति विनाश हुआ |

       वास्तव में विज्ञान साहित्य में, वैज्ञानिक साहित्यकार में सदैव तादाम्य रहना चाहिए और दोनों को सम्यक सम्मिलित रूप से मानव सभ्यता के विकास पर ध्यान देना चाहिए |’ अनिल ने कहा |

      आल राईट....’ अचानक ही पानी में दो बड़े मच्छों के लड़ने की आवाज़ ने ध्यान भंग किया | चंद्रमा को सिर पर देखते हुए अतुल बोला, बहुत रात हुई, चलो, चलें |

     रास्ते में अनिल ने हंस कर पूछा , ‘वे मच्छ क्या कह रहे थे,



कवि महाराज ?

    देर आयद, दुरुस्त आयद, अतुल बोला |

    

 

 

                                       ----  इति ---

 

 

 

 

 

 

 

 

 

                


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