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शुक्रवार, 4 जून 2010

शूर्पणखा -काव्य उपन्यास -वन्दना खन्ड ..क्रमश ....

वंदना  --क्रमश |
         ७.
भाव स्वरों के श्रेष्ठ ज्ञान से,
तत्व ज्ञान के स्वर मिलते हैं |
फलित ज्ञान होजाता नर को,
तब होपाता ज्योति-दीप सा |
ज्ञान ज्योति से ज्योति जले जग,
मिटे  तमिस्रा,   नव प्रभात हो |
         ८.
सर्व ज्ञान सम्पन्न विविध नर,
सभी,  एक से  कब होते हैं  |
अनुभव, तप, श्रृद्धा व भावना ,
होते सब के भिन्न भिन्न हैं |
भरे जलाशय , ऊपर समतल,
होते   ऊंचे- नीचे   तल  में |
      ९.
केवल बुद्धि ज्ञान क्षमता से ,
गूढ़ ज्ञान के अर्थ न मिलते;
गूढ़ ज्ञान के तत्व प्राप्तु हित,
निर्मल मन, तप,योग चाहिए |
उसी साधना रत सुपात्र को,
गूढ़ ज्ञान का तत्व मिला है| 
  १०.
ऐसे साधक को सुपात्र को,
मातु वाग्देवी की महिमा;
दैविक, गुरु या अन्य सूत्र से,
मन में ज्योतित भाव जगाती |
श्रृद्धा और स्नेह भाव मिल ,
 ज्ञान तत्व का अमृत मिलता |  
  ११.
माँ की कृपा नहीं होती है,
भक्ति भाव भी उर न उमंगते ;
श्रृद्धा और स्नेह भाव भी,
उस मानस में नही उभरता |
भक्ति भाव उर बसे हे माता!
चरणों का मराल बन पाऊँ |
      
        १२.
श्रम, विचार व कला भाव के,
अर्थपरक और ज्ञान रूप की;
सब विद्याएँ करें प्रवाहित ,
सकल भुवन में माँ कल्याणी |
ज्ञान रसातल पड़े  'श्याम को,
भी कुछ वाणी-स्वर-कण दो माँ ||

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