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मंगलवार, 15 जून 2010

शूर्पणखा काव्य-उपन्यास..आगे ..विनय...

                      विनय 
कमला के कान्त की शरण, धर पंकज कर,
श्याम की विनय है यही कमलाकांत से  |
भारत विशाल की ध्वजा  फहरे विश्व में,
कीर्ति-कुमुदिनी, नित्य मिले निशाकांत से |


हृदय कमल बसें , शेष शायी नारायण,
कान्हा रूप श्री हरि, मन में विहार करें |
सीतापति राम रूप, मन में बसें नित,
लीलाम्बुधि विष्णु,इन नैनन निवास करें |


लौकिक अलौकिक भाव दिन दिन वृद्धि पांय,
श्री हरि प्रदान सुख-सम्पति, सुसम्मति करें |
प्रीति सुमन खिलें जग,जैसे रवि कृपा नित,
फूलें सर पंकज , वायु, जल, महि गति भरें |


पाप-दोष, भ्रम-शोक, देव सभी मिट जायं ,
उंच-नीच,  भेद -भाव,  इस  देश से मिटें |
भारत औ भारती ,  बने पुनः विश्वगुरु ,
ज्ञान दीप जलें , अज्ञानता के घन छटें |


कृष्ण रूप गीता ज्ञान, मुरली लिए कर,
राम रूप धनु-बान , कर लिए एक बार |
भारत के जन मन में, पुनः निवास करें ,
'श्याम' की विनय यही,कर जोरि बार बार ||

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