विनय
कमला के कान्त की शरण, धर पंकज कर,
श्याम की विनय है यही कमलाकांत से |
भारत विशाल की ध्वजा फहरे विश्व में,
कीर्ति-कुमुदिनी, नित्य मिले निशाकांत से |
हृदय कमल बसें , शेष शायी नारायण,
कान्हा रूप श्री हरि, मन में विहार करें |
सीतापति राम रूप, मन में बसें नित,
लीलाम्बुधि विष्णु,इन नैनन निवास करें |
लौकिक अलौकिक भाव दिन दिन वृद्धि पांय,
श्री हरि प्रदान सुख-सम्पति, सुसम्मति करें |
प्रीति सुमन खिलें जग,जैसे रवि कृपा नित,
फूलें सर पंकज , वायु, जल, महि गति भरें |
पाप-दोष, भ्रम-शोक, देव सभी मिट जायं ,
उंच-नीच, भेद -भाव, इस देश से मिटें |
भारत औ भारती , बने पुनः विश्वगुरु ,
ज्ञान दीप जलें , अज्ञानता के घन छटें |
कृष्ण रूप गीता ज्ञान, मुरली लिए कर,
राम रूप धनु-बान , कर लिए एक बार |
भारत के जन मन में, पुनः निवास करें ,
'श्याम' की विनय यही,कर जोरि बार बार ||
साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
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