पूर्वा पर
१-
विधि वश,सुजन कुसंगति परहीं ,
फनि मणि सम निज गुण अनुसरहीं |
सच ही है, यह आत्मतत्व और ,
जीव, सदा निर्मल होता है |
शास्त्र मान्यता , यही रही है,
व्यक्ति तो सुजन ही होता है ||
२-
हो विधि बाम विविध कारण से,
सामाजिक, पारिवारिक स्थिति,
राजनीति की जटिल परिस्थिति;
पूर्व जन्म के संचित कर्म , व -
सुद्रढ़ नैतिक- शक्ति की कमी,
से, कुकर्म करने लगता है ||
३.
तब, वह बन जाता है, दुर्जन,
फनि मणि सम निज गुण दिखलाता|
यद्यपि , अंतःकरण में यही,
सदा जानता, अनुभव करता;
कि वह ही है, असत मार्ग पर ,
सत कामार्ग लुभाता रहता ||
४.
और समय आने पर कहता ,
'तौ में जाय बैर हठी करिहों '
इच्छा अंतर्मन में रहती,
प्रभु के बाणों से तर जाऊं |
सत्य रूप है यही व्यक्ति का,
शिवं सुन्दरं आत्म तत्व यह ||
.......एवं
१०.
नैतिक बल जिसमें होता है,
हर प्रतिकूल परिस्थिति में वह;
सदा सत्य पर अटल रहेगा|
किन्तु भोग-सुख लिप्त सदा जो,
दास परिस्थिति का बन जाता,
निज गुण दुष्ट कर्म दिखलाता ||
.........एवं
१२.
परित्यक्ता, पतिहीना नारी,
अधिक आयु जो रहे कुमारी;
पति, पितु, भ्राता अत्याचारी;
पति विदेश यात्रा रत रहता ,
भोग रीति-नीति में पली हो,
अनुचित राह शीघ्र अपनाती ||
.....कुल १६ छंद.
साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
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