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गुरुवार, 7 जून 2012

प्रेम काव्य ..दशम सुमनांजलि ...अध्यात्म .....रचना एक ..तुच्छ बूँद सा जीवन ...

                                      
                                        कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित             
                  

              प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है  | प्रस्तुत है-- दशम  सुमनान्जलि- अध्यात्म  ----इस सुमनांजलि में पांच  रचनाएँ....तुच्छ बूँद सा जीवन, प्रभु ने जो यह जगत बनाया, अहं-ब्रह्मास्मि , ब्रह्म-प्राप्ति तथा परमानंद ...प्रस्तुत की जायंगी | प्रस्तुत है प्रथम रचना...



   तुच्छ बूँद सा जीवन देदो ....

नहीं  चाहता बनूँ हिमालय ,
 तुच्छ  बूँद सा जीवन देदो |
प्रेमिल अणु-कण शीतलता के,
अनुपम क्षण हों वह सुख देदो |


अमित ज्ञान भण्डार न चाहूँ ,
निर्मल स्वच्छ मुकुर मन देदो |
योग, ध्यान, ताप ,मुक्ति न मांगूं ,
अपनी सरल भक्ति प्रभु देदो |  ---......तुच्छबूँद सा.....||



चाहे कौन शिखर को छूना,
जीवन की हो नहीं उष्णता |
तिनका नहीं उग सके जहां, बस-
भावहीन  ठंडी शीतलता |


मुझको नीचे समतल में प्रभु ,
तुच्छ कुशा का आसान देदो |
नहीं चाहिए महल-तिमहले,
कुटिया  का अनुशासन देदो |     ------तुच्छ बूँद सा.......||

धन  वैभव जीवन के सुख की ,
मन में कोई चाह रहे ना |
राज-पाट सत्ता के मद में ,
बहना, मेरी चाह रहे ना |

प्रति-भाव हो रिक्त न  मन से,
ऐसा विपुल प्रेम-धन देदो |
मुझको प्रभु अपने चरणों की,
पावन रज का शासन देदो ||    ---तुच्छ बूँद सा ...||












 

1 टिप्पणी:

Ramakant Singh ने कहा…

प्रति-भाव हो रिक्त न मन से,
ऐसा विपुल प्रेम-धन देदो |
मुझको प्रभु अपने चरणों की,
पावन रज का शासन देदो || ---तुच्छ बूँद सा ...||
अनुरागी बैरागी मांगे प्रभु के पद अनुराग