प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है-- दशम सुमनान्जलि- अध्यात्म ----इस सुमनांजलि में पांच रचनाएँ....तुच्छ बूँद सा जीवन, प्रभु ने जो यह जगत बनाया, अहं-ब्रह्मास्मि , ब्रह्म-प्राप्ति तथा परमानंद ...प्रस्तुत की जायंगी | प्रस्तुत है प्रथम रचना...
तुच्छ बूँद सा जीवन देदो ....
नहीं चाहता बनूँ हिमालय ,
तुच्छ बूँद सा जीवन देदो |
प्रेमिल अणु-कण शीतलता के,
अनुपम क्षण हों वह सुख देदो |
अमित ज्ञान भण्डार न चाहूँ ,
निर्मल स्वच्छ मुकुर मन देदो |
योग, ध्यान, ताप ,मुक्ति न मांगूं ,
अपनी सरल भक्ति प्रभु देदो | ---......तुच्छबूँद सा.....||
चाहे कौन शिखर को छूना,
जीवन की हो नहीं उष्णता |
तिनका नहीं उग सके जहां, बस-
भावहीन ठंडी शीतलता |
मुझको नीचे समतल में प्रभु ,
तुच्छ कुशा का आसान देदो |
नहीं चाहिए महल-तिमहले,
कुटिया का अनुशासन देदो | ------तुच्छ बूँद सा.......||
धन वैभव जीवन के सुख की ,
मन में कोई चाह रहे ना |
राज-पाट सत्ता के मद में ,
बहना, मेरी चाह रहे ना |
प्रति-भाव हो रिक्त न मन से,
ऐसा विपुल प्रेम-धन देदो |
मुझको प्रभु अपने चरणों की,
पावन रज का शासन देदो || ---तुच्छ बूँद सा ...||
1 टिप्पणी:
प्रति-भाव हो रिक्त न मन से,
ऐसा विपुल प्रेम-धन देदो |
मुझको प्रभु अपने चरणों की,
पावन रज का शासन देदो || ---तुच्छ बूँद सा ...||
अनुरागी बैरागी मांगे प्रभु के पद अनुराग
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