मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से ग़ज़ल, नज्में , रुबाइयां, कते, शेर आदि इस ब्लॉग पर प्रकाशित किये जायंगे ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल- १५ ,,, क्यों है ...
टूटते आईने सा हर व्यक्ति यहां क्यों है।
हैरान सी नज़रों के ये अक्स यहां क्यों है।
दौडता नज़र आये इन्सान यहां हर दम,
इक ज़द्दो ज़हद में हर शख्स यहां क्यों है ।
वो हंसते हुए गुलशन चेहरे किधर गये,
हर चेहरे पै खौफ़ का यह नक्श यहां क्यों है।
गुलज़ार रहते थे गली बाग चौराहे,
वीराना सा आज हर वक्त यहां क्यों है ।
तुलसी सूर गालिव की सरज़मीं पै ’श्याम,
आतंक की फ़सल सरसब्ज़ यहां क्यों है॥
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