कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से ग़ज़ल, नज्में इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल-११ ...त्रिपदा ग़ज़ल.....
यादों के ज़जीरे उग आए हैं-
गम के समंदर में ,
कश्ती कहाँ कहाँ ले जाएँ हम |
दर्दे-दिल उभर आये हैं जख्म बने-
तन की वादियों में,
मरहमे इश्क कहाँ तक लगाएं हम |
तनहाई के मंज़र बिछ गए हैं -
मखमली दूब बनकर,
बहारे हुश्न कहाँ तक लायें हम |
रोशनी की लौ कोई दिखती नहीं -
इस अमां की रात में,
सदायें कहाँ तक बिखराएँ हम |
वस्ल की उम्मीद ही नहीं रही 'श्याम
पयामे इश्क सुनकर,
दुआएं कहाँ तक अब गायें हम ||
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें