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बुधवार, 22 मई 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए"....ग़ज़ल-२२ व २३ ...... डा श्याम गुप्त .

                                  

                                              कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


    " कुछ शायरी की बात होजाए".....      डा श्याम गुप्त .               

                                 
                                   मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  , रुबाइयां, कते, शेर  आदि  इस ब्लॉग पर प्रकाशित किये जायंगे ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल- २२   व २३  ....


              तूफानों के साए  रहिये ..

उनका कहना है कि तूफानों के साए रहिये |
हर सितम आँधियों के यूं बचाए रहिये |

एक मज़बूत से खूंटे का सहारा लेलो,
बस कम्जोए पे जुल्मो-सितम ढाए रहिये |

दोष उनके दिखा रूपकों के आईने में,
होंठ लोगों के बस यूं सिलाए रहिये

आपको भी है इसी शहर में रहना आखिर,
धोंस देकर यूंही सच को दबाये रहिये  |

दोष झूठे ही औरों पे उछाले रखकर ,
खुद को हर एक इलजाम से बचाए रहिये |

हर कायदे-क़ानून से ऊपर हैं आप ,
बस यूहीं सांठ-गाँठ बनाए रहिये  |

सब समझते हैं पर यह न समझ पाए श्याम,
अपने अंतर से भला कैसे छुपाये रहिये  ||
         


         यह शहर है यार

इस शहर में आगये होशियार रहना |
यह शहर है यार, कुछ होशियार रहना |

इस शहर में घूमते हैं हर तरफ ही ,
मौत के साए, खुद होशियार रहना |

घूमते  हैं  खटखटाते अर्गलायें,
खोलना मत द्वार बस होशियार रहना |

एक दर्ज़न श्वान थे चार चौकीदार,
होगया है क़त्ल अब होशियार रहना |

अब न बागों में चहल कदमी को जाना,
 होरहा व्यभिचार तुम होशियार रहना |

सज संवर के अब न जाना साथ उनके,
खींच लेते हार सच  होशियार रहना  |

चोर की करने शिकायत आप थाने  जारहे,
पी चुके सब चाय चुप  होशियार रहना  |

क्षत विक्षत जो लाश चौराहे पर मिली,
कौन आदमखोर यह  होशियार रहना |

वह नहीं था बाघ आदमखोर यारो,
आदमी था श्याम ' तुम होशियार रहना ||




 

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