" कुछ शायरी की बात होजाए"..... डा श्याम गुप्त .
मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से ग़ज़ल, नज्में , रुबाइयां, कते, शेर आदि इस ब्लॉग पर प्रकाशित किये जायंगे ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल- २२ व २३ ....
तूफानों के साए रहिये ..
उनका कहना है कि तूफानों के साए रहिये |
हर सितम आँधियों के यूं बचाए रहिये |
एक मज़बूत से खूंटे का सहारा लेलो,
बस कम्जोए पे जुल्मो-सितम ढाए रहिये |
दोष उनके दिखा रूपकों के आईने में,
होंठ लोगों के बस यूं सिलाए रहिये
आपको भी है इसी शहर में रहना आखिर,
धोंस देकर यूंही सच को दबाये रहिये |
दोष झूठे ही औरों पे उछाले रखकर ,
खुद को हर एक इलजाम से बचाए रहिये |
हर कायदे-क़ानून से ऊपर हैं आप ,
बस यूहीं सांठ-गाँठ बनाए रहिये |
सब समझते हैं पर यह न समझ पाए श्याम,
अपने अंतर से भला कैसे छुपाये रहिये ||
यह शहर है यार
इस शहर में आगये होशियार रहना |
यह शहर है यार, कुछ होशियार रहना |
इस शहर में घूमते हैं हर तरफ ही ,
मौत के साए, खुद होशियार रहना |
घूमते हैं खटखटाते अर्गलायें,
खोलना मत द्वार बस होशियार रहना |
एक दर्ज़न श्वान थे चार चौकीदार,
होगया है क़त्ल अब होशियार रहना |
अब न बागों में चहल कदमी को जाना,
होरहा व्यभिचार तुम होशियार रहना |
सज संवर के अब न जाना साथ उनके,
खींच लेते हार सच होशियार रहना |
चोर की करने शिकायत आप थाने जारहे,
पी चुके सब चाय चुप होशियार रहना |
क्षत विक्षत जो लाश चौराहे पर मिली,
कौन आदमखोर यह होशियार रहना |
वह नहीं था बाघ आदमखोर यारो,
आदमी था श्याम ' तुम होशियार रहना ||
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