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रविवार, 19 मई 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए"....ग़ज़ल- १६ व १९ ...... डा श्याम गुप्त .


                                              कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


    " कुछ शायरी की बात होजाए".....      डा श्याम गुप्त .               

                                 
                                   मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  , रुबाइयां, कते, शेर  आदि  इस ब्लॉग पर प्रकाशित किये जायंगे ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल- १६  व १९  ,,

     पुकारा नहीं ....

हम भला क्या कहते ,
तुमने ही पुकारा नहीं |

दर्दे-दिल रहे सहते,
तुमने ही पुकारा नहीं |




टूटते रहे पर दिया,
तुमने ही सहारा नहीं |

तेरी वफ़ा का किया,
हमने ही नज़ारा नहीं |

तूफां में कश्ती को मिला,
साहिल का सहारा नहीं |

और भी गम हैं, सिर्फ-
दिल ही बेचारा नहीं |

अब भी निकल लो श्याम ,
मिलेगा फिर किनारा नहीं |



पीर ज़माने की....

उसमें घुसने की मुझको ही मनाही है |
दरो दीवार जो मैंने ही बनाई है |

मैं ही सज़दे के काबिल नहीं उसमें,
ईंट दर ईंट मस्जिद मैंने ही चिनाई है |

पुस्तक के पन्नों मे उसी का ज़िक्र नहीं ,
पन्नों पन्नों ढली वो बेनाम स्याही है |

लिख दिए हैं ग्रंथों पर किस किस के नाम,
अक्षर अक्षर तो कलम की लिखाई है |

गगन चुम्बी अटारियों पर  है सब की नज़र,
नींव के पत्थर की सदा किसको सुहाई है |

सज संवर के इठलाती तो हैं इमारतें पर,
अनगढ़ पत्थरों की पीर नींव में समाई है |

वो दिल तो कोई दिल ही नहीं जिसमें,
भावों की नहीं बजती शहनाई  है |

इस सूरतो-रंग का क्या फ़ायदा श्याम,
जो मन नहीं पीर ज़माने की समाई है ||




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