" कुछ शायरी की बात होजाए"..... डा श्याम गुप्त .
मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से ग़ज़ल, नज्में , रुबाइयां, कते, शेर आदि इस ब्लॉग पर प्रकाशित किये जायंगे ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल- १६ व १९ ,,,
पुकारा नहीं ....
हम भला क्या कहते ,
तुमने ही पुकारा नहीं |
दर्दे-दिल रहे सहते,
तुमने ही पुकारा नहीं |
टूटते रहे पर दिया,
तुमने ही सहारा नहीं |
तेरी वफ़ा का किया,
हमने ही नज़ारा नहीं |
तूफां में कश्ती को मिला,
साहिल का सहारा नहीं |
और भी गम हैं, सिर्फ-
दिल ही बेचारा नहीं |
अब भी निकल लो श्याम ,
मिलेगा फिर किनारा नहीं |
पीर ज़माने की....
उसमें घुसने की मुझको ही मनाही है |
दरो दीवार जो मैंने ही बनाई है |
मैं ही सज़दे के काबिल नहीं उसमें,
ईंट दर ईंट मस्जिद मैंने ही चिनाई है |
पुस्तक के पन्नों मे उसी का ज़िक्र नहीं ,
पन्नों पन्नों ढली वो बेनाम स्याही है |
लिख दिए हैं ग्रंथों पर किस किस के नाम,
अक्षर अक्षर तो कलम की लिखाई है |
गगन चुम्बी अटारियों पर है सब की नज़र,
नींव के पत्थर की सदा किसको सुहाई है |
सज संवर के इठलाती तो हैं इमारतें पर,
अनगढ़ पत्थरों की पीर नींव में समाई है |
वो दिल तो कोई दिल ही नहीं जिसमें,
भावों की नहीं बजती शहनाई है |
इस सूरतो-रंग का क्या फ़ायदा श्याम,
जो मन नहीं पीर ज़माने की समाई है ||
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