कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
मेरी चारधाम यात्रा ---भाग पांच --- केदारनाथ ---
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--------उत्तरकाशी से सीतापुर-गुप्तकाशी------
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छटा दिन – २२-५-१८—प्रातः उत्तरकाशी से सीतापुर-गुप्तकाशी के लिए चल पड़े जहां होटल में रात्रि निवास किया गया | २२-५-१८ रात्रि----
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-------तीन काशियाँ -----
प्रसिद्ध हैं भागीरथी के किनारे उत्तरकाशी , दूसरी गुप्तकाशी और तीसरी वाराणसी (उत्तरप्रदेश)।
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गुप्तकाशी ----
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प्रसिद्ध तीर्थ धाम केदारनाथ को यातायात से जोड़ने वाले रुद्रप्रयाग –गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित एक कस्बा है। यह क्षेत्र, केदारनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव भी है, साथ ही यहां कई खूबसूरत पर्यटक स्थल भी हैं| गुप्तकाशी रूद्रप्रयाग ज़िले का एक हिस्सा है और लगभग 1320 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
------- गुप्तकाशी का मार्ग रुद्रप्रयाग से मंदाकिनी नदी के किनारे किनारे है। कुल दूरी लगभग ३५ किमी है। जहाँ चढ़ाई आरंभ होती है वहाँ ==अगस्त्य मुनि ==नाम का स्थान है; वहाँ अगस्त्य का मंदिर है। मार्ग रमणीक है। सामने ही ==वाणासुर की राजधानी शोणितपुर=== के भगनावशेष हैं। चढ़ाई पूरी होने पर गुप्तकाशी पहुँचते हैं ।
-------गुप्तकाशी को ==गुह्यकाशी भी==कहते हैं। गुप्तकाशी में एक कुंड है जिसका नाम है मणिकर्णिका कुंड। लोग इसी में स्नान करते हैं। इसमें दो जलधाराएँ बराबर गिरती रहती हैं जो गंगा और यमुना नाम से अभिहित हैं।
----- कुंड के सामने ==विश्वनाथ का मंदिर== है। इससे मिला हुआ ==अर्धनारीश्वर का मंदिर== है यहाँ भगवान शिव आधे पुरुष और आधे महिला में रूप में है, जो शिव और पार्वती का एक रूप है।
----- इस मंदिर को पंचकेदार का भाग इसलिए माना जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडवो अपने पाप से मुक्ति चाहते थे इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवो को सलाह दी थी कि वे भगवान शंकर का आर्शीवाद प्राप्त करे।
------इसलिए पांडवो भगवान शंकर का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए वाराणसी पहुंच गए परन्तु भगवान शंकर वाराणसी से चले गए और गुप्तकाशी में आकर छुप गए क्योकि भगवान शंकर पांडवों से नाराज थे पांडवो अपने कुल का नाश किया था। |
-------एक दिन गुप्तकाशी में भीम ने नंदी को पिछले पैरों और पूँछ से पकड़ लिया। लेकिन नंदी तुरंत अंतरध्यान या गुप्त हो गए। इस जगह का नाम गुप्तकाशी इसलिए पड़ा |
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जब पांडवो गुप्तकाशी पंहुचे तो फिर भगवान शंकर केदारनाथ पहुँच गए जहां भगवान शंकर ने बैल का रूप धारण कर रखा था।
------- गुप्तकाशी से भगवान शिव की तलाश करते हुए पांडव गौरीकुंड तक गए, नकुल और सहदेव को दूर एक सांड दिखाई दिया, भीम अपनी गदा से उस सांड को मारने दौडे,
------एक जगह सांड बर्फ में अपने सिर को घुसा देता है। भीम पूंछ पकड़कर खींचते हैं। लेकिन सांड अपने सिर का विस्तार करता है। सिर का विस्तार इतना बड़ा होता है कि वह नेपाल के पशुपति नाथ तक पहुंचता है। -------पुराण के अनुसार पशुपतिनाथ भी बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। देखते ही देखते वह सांड एक ज्योतिर्लिंग में बदल जाता है। फिर उससे भगवान शिव प्रकट होते हैं। भगवान शिव का साक्षात दर्शन करने के बाद पांडव अपने पापों से मुक्त होते हैं।
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ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां ==पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर== है। शिव की ==भुजाएं तुंगनाथ में,== ==मुख रुद्रनाथ में,==... ==नाभि मध्यमाहेश्वर=== में और ==जटा कल्पेश्वर में== प्रकट हुए।
---------इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है।
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गुप्तकाशी से बर्फ़ से ढका ==चौखम्बा पर्वत== बड़ा ही सुंदर लगता है। यह चार अलग अलग ऊंचाई की चोटियों वाला चौकोर शिखर वाला पर्वत है | यह हिमालय का वह भाग है जहाँ गंगोत्री ग्लेशियर है और जहाँ से मंदाकिनी का उद्गम होता है। चौखम्बा बद्रीनाथ के पश्चिम में स्थित है।
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सातवाँ दिन---- प्रातः २३-५-१८ – गुप्तकाशी---से केदारनाथ----
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---गुप्तकाशी में सीतापुर बस अड्डे तक अपने वाहन से पहुंचे ----जहां उसे छोड़ना पडा |
-------वहां से पैदल वासुकी गंगा के पुल के उस पार गौरीकुण्ड बस स्टेंड तक, जहां से टैक्सी से गौरीकुण्ड पहुंचे | यहीं से केदारनाथ ऊंचाई के लिए पैदल दुर्गम १४ किमी लम्बे ट्रेक की चढ़ाई होती है जो घोड़े, डांडी ,पिट्ठू या पैदल की जातीहै |
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गौरीकुंड----
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१९८१ मी. ऊँचाई पर है। गौरीकुंड में वासुकी गंगा केदारनाथ से वासुकी ताल होते हुए मंदाकिनी में मिलती है| यहां गौरा माई – गौरी को समर्पित – का सुंदर एवं प्राचीन मंदिर देखने योग्य है। पावन मंदिरगर्भ में शिव और पार्वती की धात्विक प्रतिमाएं विराजमान हैं।
------यहां एक ==पार्वतीशिला==भी विद्यमान है जिसके बारे में माना जाता है कि पार्वती ने यहां बैठकर ध्यान लगाया था। केदारनाथ की पैदल यात्रा के दौरान यह स्थल यात्रियों के लिए आधार शिविर है।
--------यात्री केदारनाथ यात्रा के दौरान इस स्थान पर रूकते है गौरीकुंड में मंदाकिनी के दाहिने तट पर, गर्म पानी के दो सोते हैं| इस कुण्ड में स्नान कर यात्रा के लिए आगे बढ़ते है।
------- माता पार्वती ने भगवान शिव की पहली पत्नी सती का पुनः जन्म लिया था। इसलिए पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए इस स्थान पर तपस्या की थी। माना जाता है कि जब तक भगवान शिव ने उनका प्रेम स्वीकार नहीं किया, तब तक माता पार्वती इसी स्थान पर रहा करती थी। अतः में भगवान शिव ने माता पार्वती के प्रेम को स्वीकार किया।
-------माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह त्रियुगीनारायण स्थान पर हुआ था, जो गौरी कुण्ड से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
------- एक कथा के अनुसार माता पार्वती इस कुण्ड में स्नान करते हुए अपने शरीर के मैल से गणेश को बनाया था और प्रवेश द्वार पर खडा किया। जब भगवान शिव इस स्थान पर पहुंचे तो गणेश ने उन्हें रोक दिया था। इस पर भगवान शिव क्रोधित हो गये और गणेश का सिर काट दिया। माता पार्वती बहुत दुःखी और क्रोधित हो गई। माता पार्वती ने अपने बेटे गणेश का जीवित करने को कहा। भगवान शिव ने हाथी का सिर गणेश के शरीर पर लगा दिया था। इस प्रकार भगवान गणेश के जन्म और हाथी के सिर की कथा इस स्थान से जुड़ी हुई है।
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हमें हेलीकोप्टर से ऊपर केदारनाथ मंदिर तक जाना था एवं तरंत उसी दिन नीचे वापस आना था परन्तु किसी कारणवश हेलीकोप्टर यात्रा रद्द कर दी गयी |
--------अतः हम लोग गौरीकुंड से टट्टुओं द्वारा शाम को केदारनाथ पहुंचे जहाँ लम्बी लाइन में लगकर केदारनाथ जी के दर्शन किये |
--------रात्रि के कारण अत्यंत ठण्ड थी ऊंचाई के कारण हवा में ऑक्सीजन की कमी से सुषमाजी की सांस भी फूलने लगी थी | आगरा धर्मशाला में रात्रि को विश्राम किया, पूरे विश्राम के बाद सभी स्वस्थ हुए और प्रोग्राम में एक दिन की देरी हुई |
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यहाँ मेरी जन्मभूमि ने महत्वपूर्ण कार्य निभाया |
-----------------------------------------------------क्योंकि प्रोग्राम के अनुसार हमें केदारनाथ में रुकना नहीं था अतः कोइ रुकने का स्थान आरक्षित नहीं कराया गया था | दर्शन के पश्चात मंदिर के समीप ही आगरा धर्मशाला थी | वहां के पंडा जी को बताया गया की हम आगरा के हैं तो गाँव व तहसील पूछी गयी| मिढाकुर गाँव तहसील किरावली के नाम से पंडा जी ने तुरंत एक कमरा देदिया जिसमें ६-७ पलंग व पूरा फर्निश्ड था | सबने वहीं रात्रि विश्राम किया| पंडा जी ने गर्म गर्म खाना भी खिलाया | बाद में पंडा जी ने ११०० रु का संकल्प दान करवाया |
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केदारनाथ –
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----- गरुड़चट्टी----- यानि केदारनाथ यात्रा पथ का सबसे अंतिम एवं खूबसूरत पड़ाव है जहां से केदारनाथ धाम महज दो किमी की दूरी पर है। आपदा के बाद इस गरुड़चट्टी ने ही हजारों यात्रियों का जीवन बचाया था । आपदा के बाद नयी व्यवस्था होने से अब यह स्थान महत्वपूर्ण नहीं रहा, आज यहां जाने वाला पूछने वाला कोई नहीं है।
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केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में हिमालय की गोद में स्थित है | यह १२ ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ साथ चारधाम और पञ्चकेदार में से भी एक है |
-------इसका निर्माण परीक्षत पुत्र जन्मेजय ने कराया था | यह अति प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग है, जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया उन्होंने ३२ वर्ष की आयु में यहीं श्री केदारनाथ धाम में समाधि ली थी।
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हिमालय के केदार श्रृंग पर विष्णु भगवान के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में यहाँ सदा वास करने का वर प्रदान किया।
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==चौरीबारी हिमनद के कुंड ==से निकलती ==मंदाकिनी नदी के समीप==, केदारनाथ पर्वत शिखर के पाद में निर्मित,यह
==विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर==
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(३,५६२ मीटर) की ऊँचाई पर अवस्थित है। इसे १००० वर्ष से भी पूर्व का निर्मित माना जाता है। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित हैं। मंदिर मंदाकिनी के घाट पर बना हुआ हैं भीतर घोर अन्धकार रहता है और दीपक के सहारे ही शंकर जी के दर्शन होते हैं।
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यहां केदारनाथ धाम में एक झील है जिसमें बर्फ तैरती रहती है इस झील के बारे में प्रचलित है इसी झील से== युधिष्ठिर स्वर्ग गये थे==। श्री केदारनाथ धाम से छह किलोमीटर की दूरी चौखम्बा पर्वत पर== वासुकी ताल== है यहां ==ब्रह्म कमल== काफी होते हैं तथा इस ताल का पानी काफी ठंडा होता है। सोन प्रयाग, त्रिजुगीनारायण, गुप्तकाशी, उखीमठ, अगस्तयमुनि, पंच केदार आदि दर्शनीय स्थल हैं।
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इतनी ऊँचाई पर इस मंदिर को कैसे बनाया गया, इस बारे में आज भी पूर्ण सत्य ज्ञात नहीं हैं।
-------सतयुग में शासन करने वाले राजा केदार के नाम पर इस स्थान का नाम केदार पड़ा।
------राजा केदार ने सात महाद्वीपों पर शासन और वे एक बहुत पुण्यात्मा राजा थे।
------उनकी एक पुत्री थी वृंदा जो देवी लक्ष्मी की एक आंशिक अवतार थी| वृंदा ने ६०,००० वर्षों तक तपस्या की थी उसके नाम पर ही इस स्थान को
==वृंदावन== भी कहा जाता है।
मोदी और केदारनाथ--
============================= भारत के वर्त्तमान एवं विश्वप्रसिद्ध प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी ने, कहाजाता है कि अपने हिमालय प्रवास के समय यहाँ केदारनाथ धाम में दो वर्ष तपस्या की थी यहीं उन्हें संसार में जाकर कर्म करने कीआज्ञा/ अनुभूति प्राप्त हुई |
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क्रमश----शेष भाग छः ..आगे----
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चित्र- २६गुप्तकाशी-एक मनोरम दृश्य चौखम्बा पर्वत व घाटी में बहती हुई मंदाकिनी नदी
चित्र-२७- मंदाकिनी नदी स्नान करतेहुए लोग
चित्र-२८-गौरीकुंड टेक्सी के लिए इन्तजार –
चित्र-२८-Bकेदारनाथ के ट्रेक पर---
चित्र—२९-केदारनाथ मंदिर के लिए पंक्ति व स्वर्णिम केदार शिखर
चित्र-३०-केदारनाथ मंदिर के प्रांगण में--
चित्र-३१-केदार पर्वत की गोद में केदारनाथ मंदिर पर
चित्र-३२-केदारनाथ—वापसी
चित्र-३३,३४,३५ --केदारनाथ पर चढाने के बाद ओक्सीज़न की कमी से बेहाल सुषमाजी ---व अन्य लोग
चित्र-३६ --केदारनाथ में विशिष्ट स्थान की स्मृति में मोदीजी का पोस्टर ---
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--------उत्तरकाशी से सीतापुर-गुप्तकाशी------
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छटा दिन – २२-५-१८—प्रातः उत्तरकाशी से सीतापुर-गुप्तकाशी के लिए चल पड़े जहां होटल में रात्रि निवास किया गया | २२-५-१८ रात्रि----
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-------तीन काशियाँ -----
प्रसिद्ध हैं भागीरथी के किनारे उत्तरकाशी , दूसरी गुप्तकाशी और तीसरी वाराणसी (उत्तरप्रदेश)।
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गुप्तकाशी ----
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प्रसिद्ध तीर्थ धाम केदारनाथ को यातायात से जोड़ने वाले रुद्रप्रयाग –गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित एक कस्बा है। यह क्षेत्र, केदारनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव भी है, साथ ही यहां कई खूबसूरत पर्यटक स्थल भी हैं| गुप्तकाशी रूद्रप्रयाग ज़िले का एक हिस्सा है और लगभग 1320 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
------- गुप्तकाशी का मार्ग रुद्रप्रयाग से मंदाकिनी नदी के किनारे किनारे है। कुल दूरी लगभग ३५ किमी है। जहाँ चढ़ाई आरंभ होती है वहाँ ==अगस्त्य मुनि ==नाम का स्थान है; वहाँ अगस्त्य का मंदिर है। मार्ग रमणीक है। सामने ही ==वाणासुर की राजधानी शोणितपुर=== के भगनावशेष हैं। चढ़ाई पूरी होने पर गुप्तकाशी पहुँचते हैं ।
-------गुप्तकाशी को ==गुह्यकाशी भी==कहते हैं। गुप्तकाशी में एक कुंड है जिसका नाम है मणिकर्णिका कुंड। लोग इसी में स्नान करते हैं। इसमें दो जलधाराएँ बराबर गिरती रहती हैं जो गंगा और यमुना नाम से अभिहित हैं।
----- कुंड के सामने ==विश्वनाथ का मंदिर== है। इससे मिला हुआ ==अर्धनारीश्वर का मंदिर== है यहाँ भगवान शिव आधे पुरुष और आधे महिला में रूप में है, जो शिव और पार्वती का एक रूप है।
----- इस मंदिर को पंचकेदार का भाग इसलिए माना जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडवो अपने पाप से मुक्ति चाहते थे इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवो को सलाह दी थी कि वे भगवान शंकर का आर्शीवाद प्राप्त करे।
------इसलिए पांडवो भगवान शंकर का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए वाराणसी पहुंच गए परन्तु भगवान शंकर वाराणसी से चले गए और गुप्तकाशी में आकर छुप गए क्योकि भगवान शंकर पांडवों से नाराज थे पांडवो अपने कुल का नाश किया था। |
-------एक दिन गुप्तकाशी में भीम ने नंदी को पिछले पैरों और पूँछ से पकड़ लिया। लेकिन नंदी तुरंत अंतरध्यान या गुप्त हो गए। इस जगह का नाम गुप्तकाशी इसलिए पड़ा |
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जब पांडवो गुप्तकाशी पंहुचे तो फिर भगवान शंकर केदारनाथ पहुँच गए जहां भगवान शंकर ने बैल का रूप धारण कर रखा था।
------- गुप्तकाशी से भगवान शिव की तलाश करते हुए पांडव गौरीकुंड तक गए, नकुल और सहदेव को दूर एक सांड दिखाई दिया, भीम अपनी गदा से उस सांड को मारने दौडे,
------एक जगह सांड बर्फ में अपने सिर को घुसा देता है। भीम पूंछ पकड़कर खींचते हैं। लेकिन सांड अपने सिर का विस्तार करता है। सिर का विस्तार इतना बड़ा होता है कि वह नेपाल के पशुपति नाथ तक पहुंचता है। -------पुराण के अनुसार पशुपतिनाथ भी बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। देखते ही देखते वह सांड एक ज्योतिर्लिंग में बदल जाता है। फिर उससे भगवान शिव प्रकट होते हैं। भगवान शिव का साक्षात दर्शन करने के बाद पांडव अपने पापों से मुक्त होते हैं।
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ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां ==पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर== है। शिव की ==भुजाएं तुंगनाथ में,== ==मुख रुद्रनाथ में,==... ==नाभि मध्यमाहेश्वर=== में और ==जटा कल्पेश्वर में== प्रकट हुए।
---------इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है।
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गुप्तकाशी से बर्फ़ से ढका ==चौखम्बा पर्वत== बड़ा ही सुंदर लगता है। यह चार अलग अलग ऊंचाई की चोटियों वाला चौकोर शिखर वाला पर्वत है | यह हिमालय का वह भाग है जहाँ गंगोत्री ग्लेशियर है और जहाँ से मंदाकिनी का उद्गम होता है। चौखम्बा बद्रीनाथ के पश्चिम में स्थित है।
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सातवाँ दिन---- प्रातः २३-५-१८ – गुप्तकाशी---से केदारनाथ----
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---गुप्तकाशी में सीतापुर बस अड्डे तक अपने वाहन से पहुंचे ----जहां उसे छोड़ना पडा |
-------वहां से पैदल वासुकी गंगा के पुल के उस पार गौरीकुण्ड बस स्टेंड तक, जहां से टैक्सी से गौरीकुण्ड पहुंचे | यहीं से केदारनाथ ऊंचाई के लिए पैदल दुर्गम १४ किमी लम्बे ट्रेक की चढ़ाई होती है जो घोड़े, डांडी ,पिट्ठू या पैदल की जातीहै |
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गौरीकुंड----
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१९८१ मी. ऊँचाई पर है। गौरीकुंड में वासुकी गंगा केदारनाथ से वासुकी ताल होते हुए मंदाकिनी में मिलती है| यहां गौरा माई – गौरी को समर्पित – का सुंदर एवं प्राचीन मंदिर देखने योग्य है। पावन मंदिरगर्भ में शिव और पार्वती की धात्विक प्रतिमाएं विराजमान हैं।
------यहां एक ==पार्वतीशिला==भी विद्यमान है जिसके बारे में माना जाता है कि पार्वती ने यहां बैठकर ध्यान लगाया था। केदारनाथ की पैदल यात्रा के दौरान यह स्थल यात्रियों के लिए आधार शिविर है।
--------यात्री केदारनाथ यात्रा के दौरान इस स्थान पर रूकते है गौरीकुंड में मंदाकिनी के दाहिने तट पर, गर्म पानी के दो सोते हैं| इस कुण्ड में स्नान कर यात्रा के लिए आगे बढ़ते है।
------- माता पार्वती ने भगवान शिव की पहली पत्नी सती का पुनः जन्म लिया था। इसलिए पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए इस स्थान पर तपस्या की थी। माना जाता है कि जब तक भगवान शिव ने उनका प्रेम स्वीकार नहीं किया, तब तक माता पार्वती इसी स्थान पर रहा करती थी। अतः में भगवान शिव ने माता पार्वती के प्रेम को स्वीकार किया।
-------माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह त्रियुगीनारायण स्थान पर हुआ था, जो गौरी कुण्ड से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
------- एक कथा के अनुसार माता पार्वती इस कुण्ड में स्नान करते हुए अपने शरीर के मैल से गणेश को बनाया था और प्रवेश द्वार पर खडा किया। जब भगवान शिव इस स्थान पर पहुंचे तो गणेश ने उन्हें रोक दिया था। इस पर भगवान शिव क्रोधित हो गये और गणेश का सिर काट दिया। माता पार्वती बहुत दुःखी और क्रोधित हो गई। माता पार्वती ने अपने बेटे गणेश का जीवित करने को कहा। भगवान शिव ने हाथी का सिर गणेश के शरीर पर लगा दिया था। इस प्रकार भगवान गणेश के जन्म और हाथी के सिर की कथा इस स्थान से जुड़ी हुई है।
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हमें हेलीकोप्टर से ऊपर केदारनाथ मंदिर तक जाना था एवं तरंत उसी दिन नीचे वापस आना था परन्तु किसी कारणवश हेलीकोप्टर यात्रा रद्द कर दी गयी |
--------अतः हम लोग गौरीकुंड से टट्टुओं द्वारा शाम को केदारनाथ पहुंचे जहाँ लम्बी लाइन में लगकर केदारनाथ जी के दर्शन किये |
--------रात्रि के कारण अत्यंत ठण्ड थी ऊंचाई के कारण हवा में ऑक्सीजन की कमी से सुषमाजी की सांस भी फूलने लगी थी | आगरा धर्मशाला में रात्रि को विश्राम किया, पूरे विश्राम के बाद सभी स्वस्थ हुए और प्रोग्राम में एक दिन की देरी हुई |
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यहाँ मेरी जन्मभूमि ने महत्वपूर्ण कार्य निभाया |
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केदारनाथ –
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----- गरुड़चट्टी----- यानि केदारनाथ यात्रा पथ का सबसे अंतिम एवं खूबसूरत पड़ाव है जहां से केदारनाथ धाम महज दो किमी की दूरी पर है। आपदा के बाद इस गरुड़चट्टी ने ही हजारों यात्रियों का जीवन बचाया था । आपदा के बाद नयी व्यवस्था होने से अब यह स्थान महत्वपूर्ण नहीं रहा, आज यहां जाने वाला पूछने वाला कोई नहीं है।
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केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में हिमालय की गोद में स्थित है | यह १२ ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ साथ चारधाम और पञ्चकेदार में से भी एक है |
-------इसका निर्माण परीक्षत पुत्र जन्मेजय ने कराया था | यह अति प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग है, जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया उन्होंने ३२ वर्ष की आयु में यहीं श्री केदारनाथ धाम में समाधि ली थी।
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हिमालय के केदार श्रृंग पर विष्णु भगवान के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में यहाँ सदा वास करने का वर प्रदान किया।
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==चौरीबारी हिमनद के कुंड ==से निकलती ==मंदाकिनी नदी के समीप==, केदारनाथ पर्वत शिखर के पाद में निर्मित,यह
==विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर==
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(३,५६२ मीटर) की ऊँचाई पर अवस्थित है। इसे १००० वर्ष से भी पूर्व का निर्मित माना जाता है। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित हैं। मंदिर मंदाकिनी के घाट पर बना हुआ हैं भीतर घोर अन्धकार रहता है और दीपक के सहारे ही शंकर जी के दर्शन होते हैं।
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यहां केदारनाथ धाम में एक झील है जिसमें बर्फ तैरती रहती है इस झील के बारे में प्रचलित है इसी झील से== युधिष्ठिर स्वर्ग गये थे==। श्री केदारनाथ धाम से छह किलोमीटर की दूरी चौखम्बा पर्वत पर== वासुकी ताल== है यहां ==ब्रह्म कमल== काफी होते हैं तथा इस ताल का पानी काफी ठंडा होता है। सोन प्रयाग, त्रिजुगीनारायण, गुप्तकाशी, उखीमठ, अगस्तयमुनि, पंच केदार आदि दर्शनीय स्थल हैं।
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इतनी ऊँचाई पर इस मंदिर को कैसे बनाया गया, इस बारे में आज भी पूर्ण सत्य ज्ञात नहीं हैं।
-------सतयुग में शासन करने वाले राजा केदार के नाम पर इस स्थान का नाम केदार पड़ा।
------राजा केदार ने सात महाद्वीपों पर शासन और वे एक बहुत पुण्यात्मा राजा थे।
------उनकी एक पुत्री थी वृंदा जो देवी लक्ष्मी की एक आंशिक अवतार थी| वृंदा ने ६०,००० वर्षों तक तपस्या की थी उसके नाम पर ही इस स्थान को
==वृंदावन== भी कहा जाता है।
मोदी और केदारनाथ--
============================= भारत के वर्त्तमान एवं विश्वप्रसिद्ध प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी ने, कहाजाता है कि अपने हिमालय प्रवास के समय यहाँ केदारनाथ धाम में दो वर्ष तपस्या की थी यहीं उन्हें संसार में जाकर कर्म करने कीआज्ञा/ अनुभूति प्राप्त हुई |
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क्रमश----शेष भाग छः ..आगे----
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चित्र- २६गुप्तकाशी-एक मनोरम दृश्य चौखम्बा पर्वत व घाटी में बहती हुई मंदाकिनी नदी
चित्र-२७- मंदाकिनी नदी स्नान करतेहुए लोग
चित्र-२८-गौरीकुंड टेक्सी के लिए इन्तजार –
चित्र-२८-Bकेदारनाथ के ट्रेक पर---
चित्र—२९-केदारनाथ मंदिर के लिए पंक्ति व स्वर्णिम केदार शिखर
चित्र-३०-केदारनाथ मंदिर के प्रांगण में--
चित्र-३१-केदार पर्वत की गोद में केदारनाथ मंदिर पर
चित्र-३२-केदारनाथ—वापसी
चित्र-३३,३४,३५ --केदारनाथ पर चढाने के बाद ओक्सीज़न की कमी से बेहाल सुषमाजी ---व अन्य लोग
चित्र-३६ --केदारनाथ में विशिष्ट स्थान की स्मृति में मोदीजी का पोस्टर ---
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