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रविवार, 17 जून 2018

मेरी चारधाम यात्रा ---भाग आठ -----अंतिम क़िस्त ---पंचप्रयाग ------ डा श्याम गुप्त

                                    कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित

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मेरी चारधाम यात्रा ---भाग आठ -----अंतिम क़िस्त ---
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पंचप्रयाग ------
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उत्तराखंड में गंगा व अन्य नदियों के संगम पर पांच प्रयाग स्थित हैं जो पौराणिक महत्त्व के हैं एवं हिन्दुओं के तीर्थ हैं| |
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१. विष्णुप्रयाग----
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धौली गंगा ( विष्णु गंगा ) तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर स्थित विष्णुप्रयाग-- प्रथम प्रयाग --है । संगम पर भगवान विष्णु जी प्रतिमा से सुशोभित प्राचीन मंदिर और विष्णु कुण्ड दर्शनीय हैं।
------यह सागर तल से १३७२ मी० की ऊंचाई पर स्थित है। विष्णु प्रयाग जोशीमठ-बद्रीनाथ मोटर मार्ग पर स्थित है। जोशीमठ से आगे मोटर मार्ग से 12 किमी और पैदल मार्ग से 3 किमी की दूरी पर विष्णुप्रयाग नामक संगम स्थान है।
--------यहां पर अलकनंदा तथा विष्णुगंगा (धौली गंगा) का संगम स्थल है। स्कंदपुराण में इस तीर्थ का वर्णन विस्तार से आया है। यहां विष्णुगंगा में 5 तथा अलकनंदा में 5 कुंडों का वर्णन आया है।
-------यहीं से ====सूक्ष्म बदरिकाश्रम ====प्रारंभ होता है। इसी स्थल पर दायें-बायें दो पर्वत हैं, जिन्हें भगवान के द्वारपालों के रूप में जाना जाता है। दायें जय और बायें विजय हैं।
२. नंदप्रयाग --
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नन्दाकिनी तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर नन्दप्रयाग स्थित है। यह सागर तल से २८०५ फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पर गोपाल जी का मंदिर दर्शनीय है।
------पंच प्रयागों में से ==दूसरा ===नंदप्रयाग अलकनंदा नदी पर वह जगह है जहां अलकनंदा एवं नंदाकिनी नदियों का मिलन होता है।
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अलकनंदा एवं नंदाकिनी के संगम पर बसा नंदप्रयाग का मूल नाम ==कंदासु ==था, स्कंदपुराण में नंदप्रयाग को ==कण्व आश्रम ==कहा गया है जहां दुष्यंत एवं शकुंतला की कहानी गढ़ी गयी।
------यह कर्णप्रयाग से उत्तर में बदरीनाथ मार्ग पर 21 किमी आगे नंदाकिनी एवं अलकनंदा का पावन संगम है चंडिका देवी जिन्हें यह मंदिर समर्पित है, वह पास के नंदप्रयाग सहित सात गांवों की ग्राम देवी हैं।
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भगवान कृष्ण के पिता राजा नंद अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में यहां अपना महायज्ञ पूरा करने आये तथा
-------उन्हीं के नाम पर नंदप्रयाग का नाम पड़ा। यहां नंदबाबा ने वर्षों तक तप किया था।
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== दसौली ==- नंदप्रयाग से 10 किलोमटीर दूर। इस छोटे गांव में बैरास कुंड स्थित है जहां, कहा जाता है, कि-
----- रावण ने भगवान शिव की तपस्या की थी। रावण ने अपनी ताकत दिखाने के लिये कैलाश पर्वत को उठा लिया था और इस जगह अपने 10 सिरों की बली देने की तैयारी की थी। इस जगह का नाम तब से दशोली पड़ा जो अब दसौली में परिवर्तित हो गया है।
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३.कर्णप्रयाग,--
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अलकनंदा व पिंडर नदी संगम पर --कर्णप्रयाग के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के चमोली जिले का एक गाँव है|
------पिण्डर का एक नाम== कर्ण गंगा ==भी है, जिसके कारण ही इस तीर्थ संगम का नाम कर्ण प्रयाग पडा। यहां पर उमा मंदिर और कर्ण मंदिर दर्शनीय है। पंच प्रयागों में तीसरा है
------- आज जहां कर्ण को समर्पित मंदिर है, वह स्थान कभी जल के अंदर था और मात्र कर्णशिला नामक एक पत्थर की नोक जल के बाहर थी।
------ कुरूक्षेत्र युद्ध के बाद भगवान कृष्ण ने कर्ण का दाह संस्कार कर्णशिला पर अपनी हथेली का संतुलन बनाये रखकर किया था।
------- एक दूसरी कहावतानुसार कर्ण यहां अपने पिता सूर्य की आराधना किया करता था।
-------यह भी कहा जाता है कि यहां देवी गंगा तथा भगवान शिव ने कर्ण को साक्षात दर्शन दिया था। ----यहीं पर महादानी कर्ण द्वारा भगवान सूर्य की आराधना और अभेद्य कवच कुंडलों का प्राप्त किया जाना प्रसिद्ध है।
-------पौराणिक रूप से कर्णप्रयाग की संबद्धता उमा देवी (पार्वती) से भी है। उन्हें समर्पित कर्णप्रयाग के मंदिर की स्थापना 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा पहले हो चुकी थी।
-------कहावत है कि ==उमा का जन्म डिमरी ब्राह्मणों के घर संक्रीसेरा ==के एक खेत में हुआ था, जो बद्रीनाथ के अधिकृत पुजारी थे और इन्हें ही उसका ==मायका ==माना जाता है तथा कपरीपट्टी गांव का शिव मंदिर उनकी ==ससुराल ==होती है।
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४.रुद्रप्रयाग----
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मन्दाकिनी तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर रुद्रप्रयाग स्थित है। संगम स्थल के समीप चामुंडा देवी व रुद्रनाथ मंदिर दर्शनीय है। रुद्र प्रयाग ऋषिकेश से १३९ किमी० की दूरी पर स्थित है। यह नगर बद्रीनाथ मोटर मार्ग पर स्थित है।
--------यह माना जाता है कि नारद मुनि ने इस पर संगीत के गूढ रहस्यों को जानने के लिये "रुद्रनाथ महादेव" की अराधना की थी।
------ श्रीनगर(गढ़वाल ) से उत्तर में 37 किमी की दूरी पर मंदाकिनी तथा अलकनंदा के पावन संगम पर रुद्रप्रयाग नामक पुण्य तीर्थ है।
-------पुराणों में इस तीर्थ का वर्णन विस्तार से आया है। यहीं पर ब्रह्माजी की आज्ञा से देवर्षि नारद ने हज़ारों वर्षों की तपस्या के पश्चात भगवान शंकर का साक्षात्कार कर ==सांगोपांग गांधर्व शास्त्र ===प्राप्त किया था।
------यहीं पर भगवान रुद्र ने श्री नारदजी को== `महती' नाम की वीणा ==भी प्रदान की।
-------संगम से कुछ ऊपर भगवान शंकर का `रुद्रेश्वर' नामक लिंग है, जिसके दर्शन अतीव पुण्यदायी बताये गये हैं। यहीं से यात्रा मार्ग केदारनाथ के लिए जाता है, जो ऊखीमठ, चोपता, मंडल, गोपेश्वर होकर चमोली में बदरीनाथजी के मुख्य यात्रा मार्ग में मिल जाता है।
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५.देव प्रयाग –
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अलकनंदा तथा भगीरथी नदियों के संगम पर देवप्रयाग नामक स्थान स्थित है।
-------इसी संगम स्थल के बाद ====इस नदी को गंगा के नाम से ====जाना जाता है।
------यह समुद्र सतह से १५०० फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। देवप्रयाग की ऋषिकेश से सडक मार्ग दूरी ७० किमी० है।
-------गढवाल क्षेत्र में भगीरथी नदी को सास तथा अलकनंदा नदी को बहू कहा जाता है।
-------देवप्रयाग में शिव मंदिर तथा रघुनाथ मंदिर है, जो की यहां के मुख्य आकर्षण हैं। रघुनाथ मंदिर द्रविड शैली से निर्मित है।
-------देवप्रयाग को सुदर्शन क्षेत्र भी कहा जाता है। देवप्रयाग में कौवे दिखायी नहीं देते, जो की एक आश्चर्य की बात है।
-------स्कंद पुराण केदारखंड में इस तीर्थ का विस्तार से वर्णन मिलता है कि देव शर्मा नामक ब्राह्मण ने सतयुग में निराहार सूखे पत्ते चबाकर तथा एक पैर पर खड़े रहकर एक हज़ार वर्षों तक तप किया तथा भगवान विष्णु के प्रत्यक्ष दर्शन और वर प्राप्त किया।
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समयाभाव के कारण हम अपने वाहन से केवल इनको दूर से अथवा नामपट्ट को देखते हुए चलते गए |
दसवां दिन--- प्रातः २६-५-१८ को रुद्रप्रयाग से ऋषिकेश होते हुए हरिद्वार
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प्रातः नाश्ते के पश्चात् हम लोग अपनी यात्रा के अंतिम खंड हरिद्वार के लिए ऋषिकेश होते हुए चल पड़े जो १६५ किमी है |
ऋषिकेश –
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गंगा के किनारे, शिवालिक हिमालय रेंज से तीन ओर से घिरा, ऋषियों-मुनियों की तपोस्थली का धाम है |
-------रैभ्य मुनि ने यहाँ कठोर तपस्या की थी और भगवान विष्णु ने यहाँ हृषीकेश रूप में यहाँ दर्शन दिए थे |
समयाभाव के कारण एवं पहले भी देखा हुआ होने के कारण हम सीधे हरिद्वार चलते गए जहां से शाम को बस द्वारा प्रातः २७-५-१८ को लखनऊ पहुंचे |
-- इति--- --------------------------------------------------
चित्र------
चित्र१-२-३- विष्णुप्रयाग -विष्णुप्रयाग संगम -धुली गंगा व अलकनंदा -विष्णु-गोड बाँध , जल परियोजना
चित्र-४- नन्द प्रयाग -- नंदाकिनी व अलकनन्दा
चित्र ५- कर्णप्रयाग---पिंडर व अलकनंदा
चित्र ६-रूद्र प्रयाग-मंदाकिनी व अलकनंदा
चित्र—७-देवप्रयाग –भागीरथी,अलकनंदा का संगम ..यहाँ से ही इसे गंगा नाम मिलता है --







 
 

 
 

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