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शुक्रवार, 15 जून 2018

मेरी चारधाम यात्रा-----भाग छः -----बद्रीनाथ धाम---डा श्याम गुप्त

                               कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित



मेरी चारधाम यात्रा-----भाग छः -----बद्रीनाथ धाम---
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आठवां दिन – २४-५-१८ प्रातः -- केदारनाथ से सीतापुर-गुप्तकाशी से पीपलकोटी ( चमोली जिला )
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------- रास्ते में –नंदादेवी, माना पर्वत, द्रोणागिरी, कोमेट, नीलकंठ, हाथीपर्वत आदि के मनोहर दृश्य | यहाँ से बद्रीनाथ, औली, हेमकुंड साहिब, फूलों की घाटी, गोपेश्वर, चोप्ता का रास्ता जाता है |
----रात्रि विश्राम----पीपलकोटी—में -२४-५-१८....|
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नवां दिन –२५ -५-१८ प्रातः पीपलकोटी से बद्रीनाथ से रूद्रप्रयाग ---रात्रि विश्राम २५-५-१८ रुद्रप्रयाग होटल में -------रास्ते में पञ्चप्रयाग होते हुए |
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हम लोग नाश्ता करके प्रातः जल्दी ही पीपलकोटी से चल पड़े और रास्ते में हनुमान चट्टी होते हुए बद्रीनाथ पहुंचे |
हनुमान चट्टी --
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             बद्रीनाथ जाने वाले मार्ग में पांडुकेश्वर से सात किलोमीटर की दूरी पर एवं बद्रीनाथ से पांच किलोमीटर पूर्व अलकनंदा के किनारे हनुमान चट्टी नामक सिद्धस्थली है, जो श्री हनुमान जी की तपःस्थली है।
-------- यहां मुख्य मार्ग पर ही उनका एक छोटा सा भव्य मंदिर है। बद्रीनाथ जाने से पूर्व यात्री यहां श्री हनुमान जी के दर्शन अवश्य करते हैं| इस स्थान का विशेष महत्व है, क्योंकि यह हनुमान जी की तपोभूमि मानी जाती है। इस मंदिर में हनुमान जी के वृद्ध रूप का दर्शन होता है |
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---------किवदंति है कि द्वापर युग में वनवास के दौरान बदरीनाथ क्षेत्र में द्रोपदी ने भीम को लक्ष्मी वन से कमल पुष्प ले आने का आग्रह किया तो अलकापुरी जाते समय भीम अलकनंदा नदी के किनारे से होकर लक्ष्मी वन पहुंचे। यहां रास्ते में हनुमान जी आराम कर रहे थे। उनकी पूंछ मार्ग को घेरे हुए थी।
--------भीम ने वानरराज को पहचाने बिना उन्हें पूंछ हटाने के लिए कहा, लेकिन वानरराज ने उन्हें स्वयं पूंछ हटाने के लिए कहा। भीम की लाख कोशिशों के बाद भी वह पूंछ हटाने में नाकाम रहे।
--------तब हनुमान ने अपना विराट रूप दिखाकर भीम का अहम चूर कर दिया था। तभी से यह स्थान हनुमान चट्टी के नाम से विख्यात है।
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हनुमान चट्टी समुद्र तल से 2400 मीटर की ऊंचाई पर हनुमान गंगा नदी और यमुना नदी के संगम बिंदु पर स्थित है।
------ पहले, यह जगह यहाँ से 13 किमी की दूरी पर स्थित लोकप्रिय हिंदू तीर्थ स्थल यमुनोत्री का आरम्भिक बिन्दु था। अब हनुमान चट्टी और जानकी चट्टी के बीच यात्रा योग्य सड़क बन गयी है। भक्त इस जगह से दवाएं और रेनकोट्स जैसी आवश्यक वस्तुएं खरीद सकते हैं। इसके अलावा, वे आवास की सुविधा का लाभ उठा सकते हैं क्योंकि यमुनोत्री की तुलना में यहां अधिक आवास विकल्प मौजूद हैं। यमुनोत्री से हनुमान चट्टी की दूरी 13 किलोमीटर है।
बद्रीनाथ ---
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बदरीनाथ मंदिर , जिसे बदरीनारायण मंदिर भी कहते हैं, नर नारायण की गोद में बसा बद्रीनाथ नीलकण्ठ पर्वत का पार्श्व भाग है , यह अलकनंदा नदी के किनारे में स्थित है।
-------यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बदरीनाथ को समर्पित है। विशाल बद्री के नाम से प्रसिद्घ मुख्य बद्रीनाथ मन्दिर, पंच बद्रियों में से एक है। ब्रह्मा, धर्मराज तथा त्रिमूर्ति के दोनों पुत्रों नर तथा नारायण ने बद्री नामक वन में तपस्या की, जिससे इन्द्र का घमण्ड चकनाचूर हो गया। बाद में यही नर नारायण द्वापर युग में कृष्ण और अर्जुन के रूप में अवतरित हुए
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मन्दिर में नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है और अखण्ड दीप जलता है, जो कि अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है।यहाँ पर शीत के कारण अलकनन्दा में स्नान करना अत्यन्त ही कठिन है। अलकनन्दा के तो दर्शन ही किये जाते हैं। यात्री तप्तकुण्ड में स्नान करते हैं।
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बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी। सिद्ध, ऋषि, मुनि इसके प्रधान अर्चक थे।
--------जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ तब उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा आरम्भ की। शंकराचार्य की प्रचार-यात्रा के समय बौद्ध तिब्बत भागते हुए मूर्ति को अलकनन्दा में फेंक गए।
-------- शंकराचार्य ने अलकनन्दा से पुन: बाहर निकालकर उसकी स्थापना की। तदनन्तर मूर्ति पुन: स्थानान्तरित हो गयी और तीसरी बार तप्तकुण्ड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की।
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जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बदरीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना।
--------भगवान विष्णु की प्रतिमा वाला वर्तमान मंदिर 3,133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और माना जाता है कि आदि शंकराचार्य इसका निर्माण कराया था। इसके पश्चिम में 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बदरीनाथ शिखर कि ऊँचाई 7,138 मीटर है। बदरीनाथ मंदिर में बदरीनाथ या विष्णु की वेदी है। यह 2,000 वर्ष से भी अधिक समय से एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान रहा है।
------- यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है, गर्भगृह, दर्शनमण्डप और सभामण्डप ।बद्रीनाथ जी के मंदिर के अन्दर 15 मुर्तिया स्थापित है | साथ ही साथ मंदिर के अन्दर भगवान विष्णु की एक मीटर ऊँची काले पत्थर की प्रतिमा है |
-------इस मंदिर को “धरती का वैकुण्ठ” भी कहा जाता है | बद्रीनाथ मंदिर में वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है |

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यह स्थान पहले शिव भूमि (केदार भूमि) के रूप में व्यवस्थित था। भगवान विष्णुजी अपने ध्यानयोग हेतु स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा नदी के समीप यह स्थान बहुत भा गया। उन्होंने वर्तमान चरणपादुका स्थल पर (नीलकंठ पर्वत के समीप) ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के समीप बाल रूप में अवतरण किया और क्रंदन करने लगे। ----------उनका रुदन सुन कर माता पार्वती का हृदय द्रवित हो उठा। फिर माता पार्वती और शिवजी स्वयं उस बालक के समीप उपस्थित हो गए। माता ने पूछा कि बालक तुम्हें क्या चहिये? तो बालक ने ध्यानयोग करने हेतु वह स्थान मांग लिया।
---------इस तरह से रूप बदल कर भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती से यह स्थान अपने ध्यानयोग हेतु प्राप्त कर लिया। यही पवित्र स्थान आज बदरीविशाल के नाम से सर्वविदित है।
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जब भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु हिम में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं। माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं।
---------कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा।
--------- जहाँ भगवान बदरीनाथ ने तप किया था, वही पवित्र-स्थल आज तप्त-कुण्ड के नाम से विश्व-विख्यात है और उनके तप के रूप में आज भी उस कुण्ड में हर मौसम में गर्म पानी उपलब्ध रहता है।
------- बद्रीनाथ मंदिर की मान्यता यह भी है कि प्राचीन काल मे यह स्थान बेरो के पेड़ो से भरा हुआ करता था | इसलिए इस जगह का नाम बद्री वन पड़ गया
--------- एक मान्यता यह है कि बद्रीनाथ में भगवान शिव जी को ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली थी |
--------इस जगह के बारे में यह भी कहते है कि इस जगह पर भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने तपस्या की थी | नर अगले जन्म में अर्जुन और नारायण श्री कृष्ण के रूप में जन्मे थे |
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कहागया कि कलियुग में जब इंसान धर्म-कर्म हीन हो जाएगा और उसके अंदर अभिमान समा जाएगा तब वो इंसानों के सामने साक्षात रुप में नहीं रह पायेंगे. ऐसी स्थिति में नारद शिला के नीचे अलकनंदा में समाई हुए उनकी एक मूर्ति के जरिए वो भक्तों को दर्शन देंगे |
------- उनकी बातें सुनकर देवताओं ने नारदकुंड से मूर्ति निकाल कर विश्वकर्मा से एक मंदिर में मूर्ति की स्थापना करा दी. इस मंदिर का नाम बदरीनाथ पड़ा और नारद को प्रधान अर्चक नियुक्त किया गया |
-------- तब यह भी प्रावधान रखा गया कि बदरीनाथ में नारायण की पूजा का अधिकार 6 महीने के लिए मनुष्यों को होगा और बाकी के छह महीने देवता पूजा अर्चना कर सकेंगे.
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-------ये पंच-बदरी में से एक बद्री हैं। उत्तराखंड में पंच बदरी, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिन्दू धर्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
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अन्य स्थान –जिन्हें समयाभाव के कारण हम नहीं देख पाए ---
-----बदरीनाथ से नज़र आने वाला बर्फ़ से ढंका ऊँचा शिखर नीलकंठ
-------माणा गाँव- इसे भारत का अंतिम गाँव भी कहा जाता है।
-------वेद व्यास गुफा, गणेश गुफा: यहीं वेदों और उपनिषदों का लेखन कार्य हुआ था।
------भीम पुल :- भीम ने सरस्वती नदी को पार करने हेतु एक भारी चट्टान को नदी के ऊपर रखा था जिसे भीम पुल के नाम से जाना जाता है।
------वसु धारा :- यहाँ अष्ट-वसुओं ने तपस्या की थी। ये जगह माणा से ८ किलोमीटर दूर है। कहते हैं कि जिसके ऊपर इसकी बूंदे पड़ जाती हैं उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और वो पापी नहीं होता है।
----लक्ष्मी वन :- यह वन लक्ष्मी माता के वन के नाम से प्रसिद्ध है।
----सतोपंथ (स्वर्गारोहिणी) :- कहा जाता है कि इसी स्थान से राजा युधिष्ठिर ने सदेह स्वर्ग को प्रस्थान किया था।
-------अलकापुरी :- अलकनंदा नदी का उद्गम स्थान। इसे धन के देवता कुबेर का भी निवास स्थान माना जाता है।
------सरस्वती नदी :- पूरे भारत में केवल माणा गाँव में ही यह नदी प्रकट रूप में है।
------उर्वशी मंदिर- भगवान विष्णु के तप से उनकी जंघा से एक अप्सरा उत्पन्न हुई जो उर्वशी नाम से विख्यात हुई। बदरीनाथ कस्बे के समीप ही बामणी गाँव में उनका मंदिर है।
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जब भी आप बदरीनाथ जी के दर्शन करें तो उस पर्वत (नारायण पर्वत) की चोटी की और देखेंगे तो पाएंगे की मंदिर के ऊपर पर्वत की चोटी शेषनाग के रूप में अवस्थित है। शेष नाग के प्राकृतिक फन स्पष्ट देखे जा सकते हैं।
क्रमश----शेष भाग सात ----आगे
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चित्र------
चित्र-३३-अ ब स --हनुमान चट्टी...हनुमान मंदिर
-------नीलकंठ पर्वत से निकलती हुई अलकनंदा के तट पर--
चित्र-३४- बद्रीनाथ दर्शन की पंक्ति में --
चित्र-३५- अ, ब - बद्रीनाथ मंदिर पर ...
चित्र-३६--नीलकंठ पर्वत की पृष्ठभूमि व नर नारायण पर्वतों के मध्य बद्रीनाथ धाम---नीलकन्ठ पर्वत
चित्र- ३७=बद्रीनाथजी –पद्मासन मुद्रा मे –चांदी की प्रतिमा –मंदिर के प्रांगण में
चित्र -३८–बद्रीनाथ मंदिर पर

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