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शुक्रवार, 15 जून 2018

मेरी चारधाम यात्रा-----भाग सात----पंचबद्री --- डा श्याम गुप्त

                                कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


मेरी चारधाम यात्रा-----भाग सात----पंचबद्री ---
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यह भारतीय मनीषा ही की विशेषता है कि उनके यहाँ वृद्ध, आदि व भविष्य के तीर्थों आदि के बारे में पहले ही निश्चित कर दिया जाता है | वास्तव में यह एक सुनिश्चित तथ्य है की मानव---- ( जिसे भूल से विदेशी लोग आर्य कहते हैं जबकि उनके द्वारा कहे-लिखे हुए आर्यों आदि के बारे में समस्त तथ्य वस्तुतः मानव के ही प्रगति व फैलाव हैं |
------आर्य तो कहीं विदेश में कभी थे ही नहीं वे तो केवल भारतवर्ष स्थित प्रबुद्ध मानव की एक स्थिति व कालखंड विशेष में स्थित मानव थे )----
-----मानव जहां जहाँ से आगे बढ़ता जाता है अपने सांस्कृतिक तथ्य, कथ्य व वस्तुओं, स्थानों को अपने साथ लिए चलता है | जैसे -
१---आदि पृथ्वी का दक्षिणी भूभाग गोंडवाना लेंड ---मानव के साथ साथ चलते चलते दक्षिण भारत के गोंडवाना प्रदेश में आगया |
-२.----उत्तर कुरु-कुरुओं का स्थल कभी उत्तरी ध्रुव प्रदेश था जो मानव के साथ चलते चलते भारत में कुरुक्षेत्र तक आगया |
------- इसीलिये आदि-केदार, वृद्ध केदार, आदि-बद्री, वृद्ध बद्री जैसे तमाम स्थान भारत के विभिन्न प्रदेशों स्थानों में उपस्थित हैं | भारतीय मनीषा की एक विशिष्ट बात है की वे भविष्य की बात भी स्पष्ट तौर पर रखते हुए देखे जाते हैं जिसका एक उदाहरण है भविष्य बद्री |
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पंचबद्री/ सप्तबद्री ---
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---बदरीनारायण के अतिरिक्त चार बद्री और हैं---(+२ मंदिर =सप्त बद्री )
बद्रीनाथ धाम में सनातन धर्म के सर्वश्रेष्ठ आराध्य देव श्री बदरीनारायण भगवान के पांच स्वरूपों की पूजा अर्चना होती है। विष्णु के इन पांच रूपों को ‘पंच बद्री’ के नाम से जाना जाता है। बद्रीनाथ के मुख्य मंदिर के अलावा अन्य चार बद्रियों के मंदिर भी यहां स्थापित है। भविष्य बद्री, योगध्यान बद्री, आदि बद्री तथा वृद्ध बद्री
१.-----वृद्ध बद्री मंदिर---
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भगवान विष्णु को समर्पित, वृद्ध मंदिर उत्तराखंड के एनिमथ गांव में स्थित हैं। यह गावं जोशीमठ से 7 किलोमीटर की दूरी पर है। वृद्ध बद्री मंदिर समुद्र तल से 1380 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। वृद्ध बद्री मंदिर का नाम सप्त बद्री यात्रा में आता है।
-------वृद्ध मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति एक बूढे़ व्यक्ति के रूप में स्थापित है। इसलिए इस मंदिर का नाम वृद्ध बद्री है और बद्री भगवान विष्णु का एक नाम है।
------ऐसा माना जाता है कि नारद जी ने भगवान विष्णु को खुश करने के लिए यह तपस्या की थी। नारद की तपस्या से खुश होकर भगवान विष्णु ने एक बूढ़े व्यक्ति के रूप में दिखाई दिये और नारद की तपस्या का उत्तर दिया था।
-------पौराणिक कथा के अनुसार, बद्रीनाथ की मूर्ति को दिव्य शिल्पकार विश्वकर्मा द्वारा बनाई गई थी और यहां पूजा की थी। कलियुग के आगमन पर, भगवान विष्णु ने खुद को इस जगह से हटाना दिया, बाद में आदि शंकराचार्य जी ने नारद-कुंड तालाब में आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त मूर्ति मिली और इसे केंद्रीय बद्रीनाथ मंदिर में स्थापित किया था।
------- पौराणिक कथा के अनुसार, बद्रीनाथ मंदिर में उनकी स्थापना से पहले, बद्रीनाथ की पूजा आदि शंकराचार्य ने की थी। मंदिर पूरे साल खुला रहता है।
२--भविष्य बद्री मंदिर----
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हिन्दूओं का एक प्रसिद्ध एव प्राचीन मंदिर है। भविष्य बद्री मंदिर उत्तराखंड राज्य के जोशीमठ से 17 किलोमीटर की दूरी पर गांव सुभाई में स्थित है। यह मंदिर समुद्र तल से 2,744 मीटर से ऊंचाई पर स्थित है।
------- भविष्य बद्री मंदिर घने जंगल के बीच स्थित है तथ यह तक केवल ट्रेगिंग द्वारा की जाया जा सकता है। यह धौली गंगा नदी के किनारे कैलाश और मानसरोवर पर्वत के एक प्राचीन तीर्थ मार्ग पर स्थित है।
------ भविष्य मंदिर पंच बद्री (बद्रीनाथ, योगध्यान बद्री, आदि बद्री तथा वृद्ध बद्री) एवं सप्त बद्री तीर्थ में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिरों को निर्माण आदि शंकराचार्य ने किया था। उत्तराखंड क्षेत्र में कई मंदिरों के निर्माण के लिए आदि शंकराचार्य को श्रेय दिया जाता है। आदि शंकराचार्य द्वारा इन मंदिरों के निर्माण उद्देश्य देश के हर दूरदराज हिस्से में हिन्दू धर्म का प्रचार करना था।
------यहां मंदिर के पास एक शिला है, इस शिला को ध्यान से देखने पर भगवान की आधी आकृति नजर आती है। यहां भगवान बद्री विशाल शालिग्राम मूर्ति के रूप में विराजमान हैं।
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पौराणिक कथा के अनुसार जब कलयुग के अन्त में नर और नारायण पर्वत के आपस में मिलने पर बद्रीनाथ धाम का रास्ता अवरुद्ध व दुर्गम हो जायेगा। तब भगवान बद्री इस भविष्य बद्री मंदिर में भी दर्शन देगें। बद्रीनाथ मंदिर के बजाय यहां पूजा की जाएगी। इस मंदिर में भगवान विष्णु के एक अवतार नरसिंह की मूर्ति के पूजा की जाती है।
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भविष्य बद्री जोशीमठ से लगभग 11 किलोमीटर दूर सलधर तक मोटर वाहन से जाया जाता है। इसके बाद मंदिर तक पहुंचने के लिए 6 किलोमीटर पैदल रास्ता है।
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३-आदि बद्री ----
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उत्तराखंड, चमेली जिला में स्थित है। यह मंदिर कर्णप्रयाग से 17 किलोमीटर एव चमेली जिले के पिंडर नदी और अलकनंदा नदी के संगम पर स्थित है।
-------आदि बद्ररी मंदिर पंच बद्री और सप्त बद्री में पहला मंदिर है। आदि बद्ररी 16 मंदिरों का समूह है। माना जाता है कि यह मंदिर गुप्तकाल एवं 5वीं शताब्दी से 8वीं शताब्दी के दौरान बनाये गये थे।
------इस मंदिरों के समूह में 16 मंदिर में जिनमें से 2 मंदिर का जीर्णशीर्ण हो चुके है।
------- इन मंदिरों के समूह में मुख्य मंदिर भगवान विष्णु का है और इस मंदिर के विशेषता यह है कि मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा यहां खड़े रूप में है जो 3.3 फुट ऊचीं काले रंग के पत्थर से बनी हुई है। प्रतिमा में विष्णु के हाथों में एक गदा, कमल और चक्र का चित्रण किया गया है।
------ आदि बद्ररी चांदपुर किले से 3 किलोमीटर (1.9 मील) या गढ़ी पहाड़ी की चोटी पर स्थित है, जिसे गढ़वाल के परमार राजाओं द्वारा बनाया गया था। आदि बद्ररी कर्णप्रयाग से एक घंटे की ड्राइव और रानीखेत के रास्ते चूलकोट के करीब है।
४--योगध्यान बद्री -
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यह मंदिर भारत के राज्य उत्तराखंड के पांडुकेश्वर में स्थित है। यह मंदिर अलकनंदा नदी के गोविंद घाट के किनारे पर तथा समुद्र तल से लगभग 1,920 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
------- इस मंदिर का नाम पवित्र ‘सप्त बद्री’ में आता है। यह मंदिर बद्रीनाथ मंदिर की यात्रा के दौरान आता है, जोशीमठ से 18 किलोमीटर की दूरी पर और हनुमान चट्टी से 9 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
------पाण्डुकेश्वर में 1500 वर्षो से भी प्राचीन योगध्यान बद्री का मन्दिर जोशीमठ तथा पीपलकोठी पर स्थित है। महाभारत काल के अंत में कौरवों पर विजय प्राप्त करने के, कलियुग के प्रभाव से बचने हेतु पाण्डव हिमालय की ओर आए और यही पर उन्होंने स्वर्गारोहण के पूर्व घोर तपस्या की थी।
------ ऐसा माना जाता है कि महाभारत के नायक पांच पांडवों के पिता राजा पांडु ने इस स्थान पर भगवान विष्णु की कांस्य की मूिर्त स्थापित करी थी। यही वह स्थान है जहां पर पांडव पैदा हुए थे। राजा पांडु ने इस स्थान पर मोक्ष प्राप्त किया था।
--------इस मंदिर भगवान विष्णु की मूर्ति एक ध्यान मुद्रा में स्थापित है इसलिए इस स्थान को ‘योग-ध्यान बद्री’ कहा जाता है।
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बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने पर भगवान बद्रीनाथ की उत्सव-मूर्ति के लिए योगध्यान बद्री को शीतकालीन निवास माना जाता है। उधव, कुबेर और भगवान विष्णु की उत्सव मूर्ति की पूजा इस मंदिर में की जाती है। इसलिए, यह धार्मिक रूप से नियुक्त किया गया है कि इस स्थान पर प्रार्थनाओं के बिना तीर्थयात्रा पूरी नहीं होगी। दक्षिण भारत के भट्ट (पुजारी) मंदिर में मुख्य पुजारी के रूप में कार्य करते हैं।
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५..त्रियुगीनारायण मंदिर --
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यह प्राचीन मंदिर भगवान श्री नारायण को समर्पित है। यह मंदिर भारत के राज्य उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के त्रियुगीनारायण गांव में स्थित है।
------- ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर भगवान शिव और पार्वती की शादी हुई थी। इसलिए यह एक लोकप्रिय तीर्थस्थल है। इस स्थान पर चार कुंड है रुद्र कुंड, विष्णु कुंड, ब्रह्मा कुंड और सरस्वती कुंड।
----- इस मंदिर की विशेषता यह कि मंदिर के सामने एक सतत आग हमेशा जलती रहती है। माना जाता है कि यह लौ भगवान शिव व पार्वती के विवाह के समय से जलती रही है। इस लिए यह मंदिर अखंड धूनी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। ‘अखण्ड’ का अर्थ शाश्वत है और ‘धूनी’ का अर्थ दिव्य लौ है।
------ त्रियुगिनारायण मंदिर की वास्तुकला शैली केदारनाथ मंदिर जैसी है। यह मंदिर बिल्कुल केदारनाथ मंदिर जैसा ही दिखता है और इसलिए बहुत से भक्तों को आकर्षित करता है। वर्तमान मंदिर को अखण्ड धूनी मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की चांदी की 2 फुट की मूर्ति है।
------ भगवान विष्णु ने शादी को औपचारिक रूप दिया था और समारोहों में पार्वती के भाई के रूप में कार्य किया, भगवान ब्रह्मा जी ने शादी में एक पुजारी के रूप में कार्य किया था।
-------सभी ऋषियों की उपस्थिति में विवाह सम्पन्न किया गया था। शादी के सही स्थान को मंदिर के सामने ब्रह्मा शिला नामक पत्थर द्वारा चिह्नित किया जाता है। इस स्थान की महानता को स्थल-पुराण में देखा गया है। पवित्रशास्त्र के मुताबिक, इस मंदिर में जाने वाले तीर्थयात्रियों को अग्नि कुण्ड की राख को पवित्र मानते हैं और इसे अपने साथ ले जाते हैं। यह भी माना जाता है कि यह राख वैवाहिक जीवन को आनंद से भरता है।
६.--नरसिंह बद्री मंदिर
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एक हिन्दू मंदिर है जो भगवान विष्णु के चैथे अवतार नरसिंह को समर्पित है। यह मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में स्थित है। नरसिंह मंदिर जोशीमठ के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक है।
-------इस मंदिर को नरसिंह बद्री या नरसिम्हा बद्री भी कहा जाता है। नरसिंह मंदिर को जोशीमठ में नरसिंह देवता मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को सप्त मंदिर की यात्रा में से एक है। भगवान नरसिंह को अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने के लिए एवं राक्षस हिरण्यकशिपु का वध करने के लिए जाना जाता है ।
------- नरसिंह मंदिर में मुख्य मूर्ति जो आधा शेर और आधा आदमी के रूप में स्थिपित है, जो भगवान विष्णु के चैथे अवतार है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर के स्थापना आदि गुरू शंकरचार्य ने की थी। मंदिर में स्थापित भगवान नरसिंह की मूर्ति शालिग्राम के पत्थर से बनी है। इस मूर्ति का निमार्ण आठवी शताब्दी में कश्मीर के राजा ललितादत्य युक्का पीडा के शासनकाल के दौरान किया गया था।
------- ऐसा भी माना जाता है कि नरसिंह देवता की यह मूर्ति स्वंय भू है। छवि 10 इंच (25 सेमी) ऊंची है और कमल की स्थिति में बैठे भगवान को दर्शाती है।
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नरसिंह ब्रदी मंदिर की कथा भविष्य बद्री मंदिर की पौराणिक कथा से निकटता से जुड़ा हुआ है।
--------ऐसा माना जाता है कि मूर्ति की बायीं भुजा समय के साथ कम होती जा रही है और अंत में जब गायब हो जाएगी। बद्रीनाथ का मुख्य मंदिर व बद्रीनाथ धाम का रास्ता अवरुद्ध व दुर्गम हो जायेगा। तब भगवान बद्री, भविष्य बद्री मंदिर में भी दर्शन देगें। बद्रीनाथ मंदिर के बजाय भविष्य बद्री मंदिर पूजा की जाएगी।
--------जब सर्दियों में मुख्य बद्रीनाथ मंदिर बंद हो जाता है, तो बद्रीनाथ के पुजारी इस मंदिर में चले जाते हैं और यहां बद्रीनाथ की पूजा जारी रखते हैं। केंद्रीय नरसिम्हा मूर्ति के साथ, मंदिर में बद्रीनाथ की एक मूर्ति भी है।
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----क्रमश --शेष भाग आठ-----
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१. बद्री विशाल --बद्रीनाथ
२.आदि बद्री
३.भविष्य बद्री
४. वृद्ध बद्री
.५.ध्यान बद्री
६.योगध्यान बद्री
७. त्रियुगी नाथ मंदिर जहाँ शिव-पार्वती विवाह हुआ

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