कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
---सच्चा सुख----
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काव्यपथ-शान्तिपथ
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अब तक जगसुख रहा खोजता,
मन में थी इक चाह मचलती |
चाह यही थी प्रभु को खोजूं,
मैंने अपनी राह बदल दी ||
चलें काव्य के दुर्गम पथ पर,
यदि चाहें प्रभु मय जग पाना |
देश समाज राष्ट्र के हित में,
यदि परमार्थ मार्ग अपनाना |
अंतर्मन ब्रह्माण्ड है सारा,
मन मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा |
अंतर्मन की शान्ति मिले तो,
वह ही ईश्वर अल्लाह प्यारा |
अपने अंतर्मन की दुनिया,
जग को भाव समर्पण करदें |
ईर्ष्या द्वंद्व भाव इच्छाएं,
सब कुछ प्रभु को अर्पण करदें |
कलम उठी परमार्थ भाव हित,
मन तो प्रभु को किया समर्पित |
अधम भाव सब मुझसे लिपटें,
उत्तम सारे जग को अर्पित |
अंतर्मन के द्वंद्व-प्रीति सब,
बने भाव जब मन में उभरे |
गीत बने जग के सुख दुःख के,
मसि बन कर कागज़ पर उतरे |
प्रभु के गीत ढले मानस में ,
शान्ति मिली मन सरिता तीरे |
जैसे समतल शांत नदी में,
बहती तरणी धीरे धीरे ||
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