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शुक्रवार, 8 जून 2018

गुरुवासरीय काव्य गोष्ठी संपन्न ---- डा श्याम गुप्त






                                        कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित



                       काव्य गोष्ठी संपन्न ----
         माह के प्रत्येक प्रथम गुरूवार को होने वाली काव्यगोष्ठी दिनांक ०७ जून २०१८ गुरूवार को डा श्याम गुप्त के आवास सुश्यानिदी, के-३४८, आशियाना, लखनऊ पर प्रातः ११ बजे संपन्न हुई |
         वाणी वन्दना डा श्यामगुप्त तथा श्रीमती विजयलक्ष्मी महक ने तथा गणेश वन्दना श्री बिनोद सिन्हा द्वारा की गयी | डा रंगनाथ मिश्र सत्य, श्री अनिल किशोर शुक्ल निडर द्वारा सम्मान पत्र देकर साहित्यकारों का सम्मान भी किया गया | जापानी काव्य विधा हाइकू व तांका पर चर्चा हुई| 
        गोष्ठी का प्रारम्भ कविवर संजय समर्थ ने इस प्रकार किया –
स्वार्थ के कंटक विपिन में,
पुष्प परहित के खिलादो |
      श्री मंजुल मंजर लखनवी द्वारा अपने विविध काव्यपाठ के दौरान लालच की बात ओजपूर्ण स्वर में कही गयी –
लालच भरा था मन में, निकाला नहीं गया ,
झगड़ा भी जानबूझ के टाला नहीं गया |
      श्रीमती मंजू सिंह ने काव्य के प्रसिद्द प्रतिमान .पतंगा’ की बात यूं रखी—
सुबह हुई, दीपक बुझ गया,
बेचारा पतंगा लुट गया |
     श्रीमती पुष्पा गुप्ता लन्दन की लड़की के भारतीय परिधान पर यूं रीझ गयीं –
लन्दन की एक लड़की, परिधान शुद्ध भारती,
मन को रिझा गयी, गहरे समा गयी |
      कविवर अनिल किशोर शुक्ल निडर ने अपने पर्यावरण प्रेम का इज़हार इस प्रकार किया---
सब मिल करके पेड़ लगाओ,
मरुथल में हरियाली लाओ |
      श्रीमती सुषमा गुप्ता ने श्रीकृष्ण के मित्र महाज्ञानी उद्दव का के ज्ञान अहं को प्रेमलता में परिवर्तन ब्रजभाषा के एक सुन्दर पद द्वारा इस ललित्यमयता से प्रस्तुत किया –
ऊधो ब्रज सुषमा गए खोय |
ज्यों ज्यों निकट भयो वृदावन जिय कछु चंचल होय |
ब्रक्ष की फुनगी काननि झुकिझुकि, कहन लगीं इतराय |
किधों चले ऊधो इन गलियन ब्रह्म की गैल भुलाय|
      डा श्यामगुप्त ने ग्रीष्म की भीषणता का वर्णन घनाक्षरी छंदों ब्रजभाषा की लालित्यपूर्ण अलंकारिक शैली में इस प्रकार किया ---
दहन सी दहकै द्वार देहरी दगरिया,
कली कुञ्ज कुञ्ज क्यारी क्यारी कुम्हिलाई है |
     श्रीमती विजयलक्ष्मी जी ने साईं कृपा से पूर्ण अपना काव्यपाठ किया---
मेरी एक तमन्ना है सांई, तेरा नित नित दर्शन पाऊँ |
तेरी कृपा से सांई, मैं भवसागर तर जाऊं |
    श्री बिनोद कुमार सिन्हा ने हाइकू व तांका सुनाये---
अल्हड़ मेघा
सतरंगी चूनर
नभ सुखाये |

आया फागुन
लाया होली के रंग
मन उमंग
बेगाने रंगे गए
धुले कपट छल |

     आगीत साहित्य के जनक, साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने जीएवन की छणभंगुरता पर एक अगीत प्रतुत किया—
जीवन ये छणभंगुर है
कभी कभी सुख आता,
सुख दुःख के साये  में
जीवन सबको भाता,
मन की कुंठा में भी
कहती हैं आत्मकथा,
अपनी ही बाधाएं कहती हैं
आत्मव्यथा
व्याकुल मन नवअंकुर है |
          स्वल्पाहार के पश्चात श्रीमती सुषमागुप्ता द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया एवं गोष्ठी अगले माह के प्रथम गुरूवार तक के लिए स्थगित कर दी गयी |

प्रस्तुत हैं कुछ झलकियाँ ---

      

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