saahityshyamसाहित्य श्याम

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बुधवार, 8 जुलाई 2009

एक वर्षा गीत---आई रे बरखा बहार.--....।

झर झर झर,
जल बरसावें मेघ;
टप टप बूंद गिरें,
भीजै रे अंगनवा , हो....
आई रे बरखा बहार,हो....।
धडक धडक धड,
धडके हियरवा ,हो॥
आये न सजना हमार..हो...;
आई रे बरखा बहार॥

कैसे सखि झूला सोहै,
कज़री के बोल भावें;
अंखियन नींद नहिं,
ज़ियरा न चैन आवै।
कैसे सोहैंसोलह श्रृंगार ॥हो...
आये न सजना हमार॥

आये परदेशी घन,
धरती मगन मन;
हरियावे तन,पाय-
पिय का सन्देसवा।
गूंजे नभ मेघ-मल्हार ..हो....
आये न सजना हमार॥

घन जब जाओ तुमि,
जल भरने को पुनि;
गरजि गरजि दीजो,
पिय को संदेसवा।
कैसे जिये धनि ये तोहार...हो....
आये न सजना हमार॥

4 टिप्‍पणियां:

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

आदरणीय श्याम गुप्त जी सुन्दर और सराहनीय प्रयास आप का साहित्य को बचाने की लिए -एक और कोशिश कीजियेगा पहले जो शब्दों को तोड़ मरोड़ लिखा जाता था अपभ्रंश आदि से बचियेगा -
निम्न शब्द जो आप ने लिखा संदेस को कृपया सन्देश लिखा करें लोग उचित सीखें
मेघ मल्हा क्या है ?? --कहीं आप का मतलब मल्हार से तो नहीं ?? कविताओं में तुकांत अब उतना मायने अब नहीं रखता पुनि के लिए तुमि
शुक्ल भ्रमर ५

डा श्याम गुप्त ने कहा…

----भ्रमर जी...धन्यवाद जो आप इस ब्लॉग पर पधारे ...और कुछ अशुद्धि इंगित की.....
----वह शब्द मल्हार ही है, टाइपिंग में छूट जाने से मल्हा...ही रहगया ...यह कोइ अशुद्धि नहीं... काव्यशास्त्र ज्ञाता लोग , नीचे के तुकांत से और शब्द ज्ञान से पता लगा लेते हैं कि वास्तविकता क्या है.....खैर शब्द पूरा कर दिया गया है...
---जहां तक सन्देश /संदेश..का सवाल है खड़ी बोली में दोनों ही प्रचलन में हैं ..परन्तु यहाँ ..देशज( ब्रज अंचल की --सम्पूर्ण गीत ही उसी भाषा में है न कि खडी बोली में ) भाषा का शब्द ..संदेसवा ..प्रयोग हुआ है जो उपयुक्त व उचित ही है...
---आपने लिखा है कि --"कविताओं में तुकांत अब उतना मायने अब नहीं रखता.."---क्या तुकांत कविता के नियम बदल गए हैं....किसने बदले.? आपको जानना चाहिए ..कविता ही दो प्रकार की होती है ..तुकांत व अतुकांत ...कभी मेरे ब्लॉग पर अतुकांत कविता व अगीत पर मेरे आलेख पढ़िए ...जान जायेंगे...
---मुझे प्रसन्नता है कि आप हिन्दी भाषा पर ध्यान दे रहे हैं ...आभार ..

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

श्याम जी जानकारी के लिए धन्यवाद -
साहित्य और शास्त्र में आप की रूचि देख -आप की शल्य क्रिया देख अच्छा लगा -परदेशी को भी परदेसी तब तो लिखना था -
हम हिंदी भाषा विशेषकर खड़ी बोली-देवनागरी और अवधी से ही अधिक परिचित हैं -
आज कल बच्चे और कुछ लोग परदेसी -संदेस लिखेंगे हर जगह तो परीक्षा में .......
हिंदी भाषा ही नहीं बहुत कुछ सीखना है श्याम जी अंत तक -
आभार आप का -अपना सुझाव व् समर्थन देते रहें
शुक्ल भ्रमर५

डा श्याम गुप्त ने कहा…

बिलकुल सही कहा..यह परदेसी ही होना चाहिए...
---परीक्षा यदि हिन्दी( जिसका अर्थ खड़ी बोली ही है) की है तो उन्हें शुद्ध खड़ी बोली में ही लिखना चाहिए न कि हिन्दी की अन्य बोलियों में ....भ्रम का कोइ सवाल ही नहीं है...