प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया जायगा ...जो तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग)..वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है..... प्रस्तुत है खंड ग ..वियोग श्रृंगार -जिसमें -पागल मन, मेरा प्रेमी मन, कैसा लगता है, तनहा तनहा रात में, आई प्रेम बहार, छेड़ गया कोई, कौन, इन्द्रधनुष एवं बनी रहे ...नौ रचनाएँ प्रस्तुत की जायंगी | प्रस्तुत है
द्वितीय गीत
जाने क्यों मेरा प्रेमी मन ,
अकुलाता रहता है ?
चहचाता रहता है |
तेरी ही स्वर लहरी में प्रिय,
यह गाता रहता है ||
तेरे गीतों की सरगम ही,
इस मन को भाती है |
तेरे सुर्ख लवों की थिरकन,
यादें बिसरा देना चाहे,
पर न भुला पाता है | ------जाने क्यों.....||
क्या जाने निज नीड़ से कहाँ,
यह उड़ उड़ जाता है ?
तेरी पाती की आशा में ,
लौट लौट आता है |
बरबस मुस्काता है |
तनहाई में यादों के ही ,
स्वप्न सजाता है |
प्रेम-मिलन की यादों को,
दोहराता रहता है | -----जाने क्यों ......||
जब जब दूर चले जाते हो ,
तुम मन की नगरी से |
छलक छलक उठता है निर्झर ,
इस मन की गगरी से |
घायल मन तो सहरा सहरा,
भटक भटक गाता है |
सागर हो या नदी किनारा, प्यासा ही रहता है |
प्यासे तन मन को यादों से,
सहलाता रहता है |
फिर भी यह मन मेरा ,हे प्रिय!
आँखें भर लाता है |
तेरे गीतों की सरगम को ,
यह गाता रहता है | -----जाने क्यों ....||
4 टिप्पणियां:
जब जब दूर चले जाते हो ,
तुम मन की नगरी से |
छलक छलक उठता है निर्झर ,
इस मन की गगरी से |
मन को सहलाती हुई सुंदर रचना।
यादों को याद करना कितना कोमल और शांतिदायक होता है !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
धन्यवाद महेंद्र जी ....ये यादें मन की पूंजी हैं....
धन्यवाद अमर जी...
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