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शनिवार, 1 अक्टूबर 2011

प्रेमकाव्य-महाकाव्य. षष्ठ सुमनान्जलि (क्रमश:)-खंड ग-वियोग श्रृंगार ..गीत दो ......डा श्याम गुप्त

                                                             
                                                  कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पि

                    प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया जायगा ...जो तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग)..वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है.....          प्रस्तुत है   खंड ग ..वियोग श्रृंगार -जिसमें -पागल मन, मेरा प्रेमी मन, कैसा लगता है, तनहा तनहा रात में, आई प्रेम बहार, छेड़ गया कोई, कौन, इन्द्रधनुष एवं बनी रहे ...नौ रचनाएँ प्रस्तुत की जायंगी | प्रस्तुत है

द्वितीय गीत

 
....प्रेमी मन .....
जाने क्यों मेरा प्रेमी मन ,
अकुलाता रहता है ?
यादों में तेरी, मन पंछी,
चहचाता रहता है |
तेरी ही स्वर लहरी में प्रिय,
यह गाता रहता है ||

तेरे गीतों की सरगम ही,
इस मन  को भाती है |
तेरे सुर्ख लवों की थिरकन,
मन को महकाती है |
यादें बिसरा देना चाहे,
पर न भुला पाता है |    ------जाने क्यों.....||

क्या जाने निज नीड़ से कहाँ,
यह उड़ उड़ जाता है ? 
तेरी पाती की आशा में ,
लौट लौट आता है |
प्रेम संदेशा ही मिल जाए,
बरबस मुस्काता है |
तनहाई में यादों के ही ,
स्वप्न सजाता है |
प्रेम-मिलन की यादों को,
दोहराता रहता है |     -----जाने क्यों ......||

जब जब दूर चले जाते हो ,
तुम मन की नगरी से |
छलक छलक उठता है निर्झर ,
इस मन की गगरी से |
घायल मन तो सहरा सहरा,
भटक भटक गाता है |
सागर हो या नदी किनारा,
प्यासा ही रहता है |
प्यासे तन मन को यादों से,
सहलाता रहता है |
फिर भी यह मन मेरा ,हे प्रिय!
आँखें भर लाता है |
तेरे गीतों की सरगम को ,
यह गाता रहता है |    -----जाने क्यों ....||

4 टिप्‍पणियां:

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

जब जब दूर चले जाते हो ,
तुम मन की नगरी से |
छलक छलक उठता है निर्झर ,
इस मन की गगरी से |

मन को सहलाती हुई सुंदर रचना।
यादों को याद करना कितना कोमल और शांतिदायक होता है !

amrendra "amar" ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद महेंद्र जी ....ये यादें मन की पूंजी हैं....

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद अमर जी...