प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता; वह एक विहंगम भाव है | अब तक प्रेम काव्य ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया गया ..तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग).. वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है.....
खंड ग ..वियोग श्रृंगार --जिसमें --पागल मन, मेरा प्रेमी मन, कैसा लगता है, तनहा तनहा रात में, आई प्रेम बहार, छेड़ गया कोई, कौन, इन्द्रधनुष एवं बनी रहे ......नौ रचनाएँ प्रस्तुत की जायंगी
प्रस्तुत है..चतुर्थ गीत... तनहा तनहा रात में ....
तनहा तनहा रात में आकर,
प्रियतम मुझको तरसाते हो |
मन में प्यार का दीप जला कर ,
तम के अंदर खो जाते हो | --तनहा तनहा..||
मैं कोई तस्बीर नहीं हूँ ,
कागद पर तकरीर नहीं हूँ |
सचमुच प्यार है मुझे तुमसे ,
मैं झूठी तदबीर नहीं हूँ |
मेरे मन की पीर जगा कर ,
स्वप्न बने क्यों खो जाते हो | ---तनहा तनहा .||
जब शीशे में अक्स तुम्हारा,
मन की भ्रान्ति दिखा देता है |
तुम हो यहीं कहीं पर, एसी-
मन में आस जगा देता है |
तुम्हें खोजती इन अंखियों को,
प्रिय इतना क्यों तरसाते हि ? ----तनहा तनहा .||
अब तो अपना रूप दिखा दो ,
दर्पण से बाहर आजाओ |
अथवा प्यारी निंदिया बनकर,
आकर आंखों में बस जाओ |
मेरे मन में सरगम बन् कर ,
प्रियतम तुम ही तो गाते हो |
तनहा तनहा रात में आकर,
तम के अंदर खो जाते हो |||
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