कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता; वह एक विहंगम भाव है | अब तक प्रेम काव्य ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया गया ..तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग).. वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है.....
खंड ग ..वियोग श्रृंगार --जिसमें --पागल मन, मेरा प्रेमी मन, कैसा लगता है, तनहा तनहा रात में, आई प्रेम बहार, छेड़ गया कोई, कौन, इन्द्रधनुष एवं बनी रहे ......नौ रचनाएँ प्रस्तुत की जायंगी | प्रस्तुत है..
पंचम गीत ...आई प्रेम बहार .....
पंचम गीत ...आई प्रेम बहार .....
नाचे मोर, पपिहरा बोले ,
मन भंवरा गुन-गुन कर डोले |
तन मन भीगें, पड़ें फुहारें ,
झूमे मस्त बयार |
सखि ! आई प्रेम बहार ||
आये न प्रीतम अब की बारी,
मैं राहें तक-तक कर हारी |
कैसे करूँ सिंगार ?
सखि ! आई प्रेम बहार ||
कजरारे बादल नभ छाये,
जैसे प्रेम-संदेशे लाये |
बरसे-हरसे सब घर आँगन ,
मैं बैठी मन मार |
सखि ! आई प्रेम बहार ||
रोक लिया है किस सौतन ने ,
कर कर के मनुहार |कान्हा कैसे भूल गए पर ,
सखि! राधा का प्यार
सखि ! आई प्रेम बहार ||
2 टिप्पणियां:
मनभावन प्रेमगीत बहुत अच्छा लगा।
धन्यवाद वर्मा जी ...आभार
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