कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी
एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया जायगा ...जो तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग)..वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है..... प्रस्तुत है खंड ग ..वियोग श्रृंगार --जिसमें --पागल मन, मेरा प्रेमी मन, कैसा लगता है, तनहा तनहा रात में, आई प्रेम बहार, छेड़ गया कोई, कौन, इन्द्रधनुष एवं बनी रहे ......नौ रचनाएँ प्रस्तुत की जायंगी | प्रस्तुत है.. .... तृतीय रचना...कैसा लगता है....
प्रीति-रीति बिसरादे प्रिय जब,
कैसा लगता है |
टूटा कोई स्वप्न सुहाना,
जब साहिल से नाव दूर हो,
तूफां आजाये |
बीच भँवर पतवार हाथ से,
छूटे बह जाए |
दे न किनारा कहीं दिखाई ,
कैसा लगता है |
जैसे टूट गया दिल कोई ,
ऐसा लगता है |
प्रीति-रीति बिसरादे प्रिय जब,
कैसा लगता है ||
प्रीति रीति क्यों बिसराई, यह-
मन न समझ पाया |
क्यों हो आज पराये, तुम थे-
तन मन की छाया |
दूर चले जाएँ इस जग से,
ऐसा लगता है |
तुम कहदो यूं मेरा जाना,
कैसा लगता है |
टूटा मन का स्वप्न सुहाना ,
ऐसा लगता है ||
प्रीति रीति बिसरादे प्रिय जब,
कैसा लगता है |
टूटा कोई स्वप्न सुहाना,
ऐसा लगता है ||
2 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर और प्रभावशाली रचना।
धन्यवाद वर्मा जी....
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