कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है | अब तक प्रेम काव्य ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया गया ..तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग).. वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है.....
खंड ग ..वियोग श्रृंगार --जिसमें --पागल मन, मेरा प्रेमी मन, कैसा लगता है, तनहा तनहा रात में, आई प्रेम बहार, छेड़ गया कोई, कौन, इन्द्रधनुष एवं बनी रहे ......नौ रचनाएँ प्रस्तुत की जायंगी | प्रस्तुत है.. सप्तम गीत ..कौन ....
छेड़ गया फिर कौन?
कानों में कह प्यारी गुनगुन ,
कौन होगया मौन ?
मन की वीणा के तारों को,
छेड़ गया फिर कौन ||
किसने दी आवाज़ दूरसे ,
हो द्रुम-दल की ओट |
रस रंग सुमधुर टेर लगी जब ,
लगे लरज़ने होठ |
मंद मंद स्वर झनका पायल,
दूर होगया कौन ?
मन की वीणा के तारों को,
किसने तानी हरी चुनरिया,
बासंती परिधान |
लहर लहर झूमे पुरवाई ,
भ्रमर करें गुणगान |
कुशुम शरों के घाव लगाकर,
चला गया फिर कौन |
मन की वीणा के तारों को,
छेड़ गया फिर कौन ||
2 टिप्पणियां:
प्रिय श्याम गुप्त जी बहुत सुन्दर रचना ...निम्न पंक्तियाँ मन को छू गयीं .प्रकृति और प्रेम के समय हाव भाव ..
भ्रमर ५
किसने दी आवाज़ दूरसे ,
हो द्रुम-दल की ओट |
रस रंग सुमधुर टेर लगी जब ,
लगे लरज़ने होठ |
मंद मंद स्वर झनका पायल,
दूर होगया कौन ?
मन की वीणा के तारों को,
छेड़ गया फिर कौन ||
धन्यवाद भ्रमर जी......
एक टिप्पणी भेजें