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सोमवार, 3 अक्टूबर 2011

प्रेमकाव्य-महाकाव्य. षष्ठ सुमनान्जलि (क्रमश:)-खंड ग-वियोग श्रृंगार ..गीत तीन ......डा श्याम गुप्त

                                              कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित







               प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता , किसी 
एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जासकता ; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया जायगा ...जो तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग)..वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है.....          प्रस्तुत है   खंड ग ..वियोग श्रृंगार --जिसमें --पागल मन,  मेरा प्रेमी मन,  कैसा लगता है,  तनहा तनहा रात में,  आई प्रेम बहार,  छेड़ गया कोई,  कौन,  इन्द्रधनुष एवं  बनी रहे ......नौ रचनाएँ प्रस्तुत की जायंगी | प्रस्तुत है.. ....  तृतीय  रचना...कैसा लगता है....

प्रीति-रीति बिसरादे प्रिय जब,
कैसा लगता है |
टूटा कोई स्वप्न सुहाना,
ऐसा लगता है ||

जब साहिल से नाव दूर हो,
तूफां आजाये |
बीच भँवर पतवार हाथ से,
छूटे बह जाए |
दे  न किनारा कहीं दिखाई ,
कैसा लगता है |
जैसे टूट गया दिल कोई ,
ऐसा लगता है |
प्रीति-रीति बिसरादे प्रिय जब,
कैसा लगता है ||
प्रीति  रीति क्यों बिसराई, यह-
मन न समझ पाया |
क्यों हो आज पराये, तुम थे-
तन मन की छाया |
दूर चले जाएँ इस जग से,
ऐसा लगता है |
तुम कहदो यूं मेरा जाना,
कैसा लगता है |
टूटा मन का स्वप्न सुहाना ,
ऐसा लगता है ||

प्रीति रीति बिसरादे प्रिय जब,
कैसा लगता है |
टूटा कोई स्वप्न सुहाना,
ऐसा लगता है ||

2 टिप्‍पणियां:

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर और प्रभावशाली रचना।

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद वर्मा जी....