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सोमवार, 29 अप्रैल 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए "....ग़ज़ल -७--आशनाई .... डा श्याम गुप्त ....

                                         

                                 
                                                कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


             मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल-7.... आशनाई ...

यूं तो खारों  से ही अपनी आशनाई है |
आंधियां भी तो सदा हमको रास आईं हैं |

मुश्किलों का है सफ़र जीना यहाँ ए दिल,
हर एक मुश्किल नयी राह लेके आई है |

तू न घबराना गर राह में पत्थर भी मिलें ,
पत्थरों में भी उसी रब की लौ समाई है |

डूबकर जानिये इसमें ये है दरिया गहरा,
लुत्फ़ क्या तरने का जिसमें न हो गहराई है |

आशिकी उससे करो श्याम हो दुश्मन कोई,
दोस्त, दुश्मन  को बनाए वो आशनाई है ||


शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए "....ग़ज़ल -6 .... डा श्याम गुप्त ....

                                      
                                              
                                           कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


             मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल- ६..... कब समझेंगे ....
लोग आखिर ये बात कब समझेंगे |
बदले शहर के हालात, कब समझेंगे |

ये है तमाशबीनों का शहर यारो,
कोई न  देगा साथ, कब समझेंगे |

जांच करने क़त्ल की कोई न आया,
हैं माननीय शहर में आज, कब समझेंगे|

चोर डाकू लुटेरे पकडे नहीं जाते,
सुरक्षा-चक्र में हैं ज़नाब, कब समझेंगे |

कब से खड़े हैं आप लाइन में बेंक की,
व्यस्त सब पीने में चाय, कब समझेंगे |

बढ़ रही अश्लीलता सारे देश में,
सब सोरहे चुपचाप, कब समझेंगे |

श्याम, छाई है बेगैरती चहुँ ओर,
क्या निर्दोष हैं आप, कब समझेंगे ||





गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

" कुछ शायरी की बात होजाए "....ग़ज़ल 4 .... डा श्याम गुप्त ....

                                              
                                           कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


             मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है....ग़ज़ल-४.......


            मुझे न छेडो...
मुझे न छेडो इस मानस में ज्वाला मुखी भरे हैं।
जाने क्या-क्या कैसे कैसे अन्तर्द्वन्द्व भरे हैं।

क्या पाओगे घावों को सहलाकर इस तन-मन के,
क्या पाओगे छूकर तन के मन के घाव हरे हैं।

खुशियों की सरगम हो,या हो पीडा की शहनाई,
हंस-हंस कर हर राग सजाया ,बाधा से न डरे हैं।

कोने-कोने क्यों छाई आतन्कवाद की छाया ,
सामाज़िक शुचि मूल्य आज टूटॆ-टूटे बिखरे हैं।

हमने अतिसुख-अभिलाषा में आग लगाई घर को,
कटु बातें कह् डालीं हमने मन के भाव खरे हैं।

यह अग जग सुख-दुःख का मेला, किसने दुःख ना झेला,
धैर्य लगन सत नीति चले जो,सुख के पुष्प झरे हैं |

जिसने खुद को कठिन परिश्रम,जप-तप योग तपाया,
वे ही सोने जैसा तपकर इस जग में निखरे हैं।

एक भरोसा उसी राम का,जग- पालक- धारक है,
श्याम’ कृपा  से जाने कितने भव-सागर उतरे हैं॥

बुधवार, 24 अप्रैल 2013

कुछ शायरी की बात होजाए ..ग़ज़ल.--१.......डा श्याम गुप्त .....

                                                                 

                             
                                   कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


             मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है. प्रथम...रचना ...ग़ज़ल..१...

ऐ हसीं ता ज़िंदगी ओठों पै तेरा नाम हो |
पहलू में कायनात हो उसपे लिखा तेरा नाम हो |


ता उम्र मैं पीता रहूँ यारव वो मय तेरे हुश्न की,
हो हसीं रुखसत का दिन बाहों में तू हो जाम हो |

जाम तेरे वस्ल का और नूर उसके शबाब का,
उम्र भर छलका रहे यूंही ज़िंदगी की शाम हो |

नगमे तुम्हारे प्यार के और सिज़दा रब के नाम का,
पढ़ता रहूँ झुकता रहूँ यही ज़िंदगी का मुकाम हो |

चर्चे तेरे ज़लवों के हों और ज़लवा रब के नाम का,
सदके भी हों सज़दे भी हों यूही ज़िंदगी ये तमाम हो |

या रब तेरी दुनिया में क्या एसा भी कोई तौर है,
पीता रहूँ, ज़न्नत मिले जब रुखसते मुकाम हो |

है इब्तिदा , रुखसत के दिन ओठों पै तेरा नाम हो,
हाथ में कागज़-कलम स्याही से लिखा 'श्याम' हो ||




मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

कुछ शायरी की बात होजाए ..ग़ज़ल...सरस्वती वन्दना ...डा श्याम गुप्त .....

                                      

                                     कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


             मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है..द्वितीय रचना ....सरस्वती वन्दना ..ग़ज़ल में ...    सरस्वती वन्दना  ....
 
वन्दना  के स्वर ग़ज़ल में कह सकूं माँ शारदे !
कुछ शायरी  के भाव का भी ज्ञान दो माँ शारदे ! 
 
माँ की कृपा यदि हो न तो कैसे ग़ज़ल साकार हो,
कुछ कलमकारी का मुझे भी भान हो  माँ शारदे !
 
मैं जीव, माया बंधनों में स्वयं को भूला हुआ,
नव स्वर लहरियों से हे माँ! ह्रद-तंत्र को झंकार दे |
 
मैं स्वयं को पहचान लूं उस आत्मतत्व को जान लूं,
अंतर में अंतर बसे उस परब्रह्म को गुंजार दे |

हे श्वेत कमलासना माँ !, हे श्वेत वस्त्र से आवृता,
वीणा औ पुस्तक कर धरे,नत नमन लो माँ शारदे !

मैं बुद्धिहीन हूँ काव्य-सुर का ज्ञान भी मुझको नहीं ,
उर ग़ज़ल के स्वर बह सकें कर वीणा की टंकार दे |

ये वन्दना के स्वर-सुमन अर्पण हैं माँ स्वीकार लो ,
हो धन्य जीवन श्याम'का बस कृपा हो माँ शारदे ||
 



रविवार, 21 अप्रैल 2013

कुछ शायरी की बात होजाए ...ईश प्रार्थना ....डा श्याम गुप्त .....

                                     कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


             मेरी शीघ्र प्रकाश्य शायरी संग्रह....." कुछ शायरी की बात होजाए ".... से  ग़ज़ल, नज्में  इस ब्लॉग पर प्रकाशित की जायंगी ......प्रस्तुत है प्रथम रचना .....

        ईश प्रार्थना --ग़ज़ल में ....

ईश अपने भक्त पर, इतनी कृपा कर दीजिये |
रमे तन मन राष्ट्र हित में, प्रभो ! यह वर दीजिये |

प्रेम करुणा प्राणिसेवा, भाव नर के उर बसें ,
दया ममता सत्य से युत, भाव मन धर  दीजिये |

सहज भक्ति से  आपकी,  मानव करे नित वन्दना ,
हो प्रेममार्ग प्रशस्त जग में, प्रीति  लय सुर दीजिये |

मैं न मंदिर में गया, प्रतिमा तुम्हारी पूजने,
भाव हो पत्थर नहीं, यह भाव जग भर दीजिये |

पाप पंक में इस जगत के, डूबकर भूला तुम्हें ,
याद करके स्वयं  मुझको, भक्ति के स्वर दीजिये |

दूर से आया तुम्हारी शंख-ध्वनि का नाद सुन ,
नाद अनहद मधुर स्वर से, भर प्रभो! उर दीजिये |

राह आधी अगया हूँ, अब चला जाता नहीं ,
हो कृपासागर तो दर्शन यहीं आकर दीजिये |

हे दयामय! दयासागर! प्रभु दया के धाम हो ,
श्याम के ह्रदय में बस कर, पूर्ण व्रत कर दीजिये ||

 

रविवार, 7 अप्रैल 2013

श्याम स्मृति ...मातृभाषा या राष्ट्रभाषा क्यों ?

                                कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित



श्याम स्मृति ...मातृभाषा या राष्ट्रभाषा क्यों ? 
                हमें अपनी विदेशी भाषा की अपेक्षा अपनी मातृभाषा या राष्ट्रभाषा के माध्यम से क्यों पढ़ना -पढ़ाना व सभी कार्य-कलाप करना चाहिए ? चाहे वह स्कूली शिक्षा हो या उच्च-शिक्षा या विज्ञान आदि विशिष्ट विषयों की प्रोद्योगिक शिक्षा ....क्या यह सिर्फ राष्ट्रीयता का या भावुकता व सवेदनशीलता का प्रश्न है ? नहीं.... वास्तव में अंग्रेज़ी या विदेशी माध्यम में शिक्षा विद्यार्थियों को विज्ञान के ही नहीं अपितु सभी प्रकार के ज्ञान को पूर्णरूपेण आत्मसात करने में मदद नहीं करती। बिना आत्मसात हुए कोई भी ज्ञान... .प्रगति. नवोन्नत-ज्ञान या अनुसंधान में मदद नहीं करता।
                   अंग्रेज़ी में शिक्षा हमारे युवाओं में अंग्रेज़ों (अमैरिकी –विदेशी ) की ओर देखने का आदी बना देती है। हर समस्या का हल हमें परमुखापेक्षी बना देता है | अन्य के द्वारा किया हुआ हल नक़ल कर लेना समस्या का आसान हल लगता है चाहे वह हमारे देश-काल के परिप्रेक्ष्य में समुचित हल हो या न हो| विदेशी माध्यम में शिक्षा हमारा आत्मविश्वास कम करती है और हमारी सहज कार्य-कुशलता व अनुसंधानात्मक प्रवृत्ति को भी पंगु बनाती है। स्पष्ट है कि नकल करने वाला पिछड़ा ही रहेगा, दूसरों की दया पर निर्भर करेगा, वह स्वाधीन नहीं हो सकेगा| स्वभाषा से अन्यथा विदेशी भाषा में शिक्षा से अपने स्वयं के संस्कार , उच्च आदर्श , शास्त्रीय-सुविचार, स्वदेशी भावना , राष्ट्रीयता , आदर्श आदि उदात्त भाव सहज रूप से नहीं पनपते | यदि हम बच्चों को , युवाओं को ऊँचे आदर्श नहीं देंगे तब वे विदेशी नाविलों , विदेशी समाचारों , साहित्य ,टीवी –इंटरनेट आदि से नचैय्यों -गवैय्यों को अनजाने ही अपना आदर्श बना लेंगे, उनके कपड़ों या फ़ैशन की, उनके खानपान की रहन-सहन की झूठी- अप्सस्कृति की जीवन शैली की नकल करने लगेंगे।
अंग्रेज़ी माध्यम की शिक्षा से हम उसी ओर जा रहे हैं | अतः हमें निश्चय ही अपनी श्रेष्ठ भाषाओं में शिक्षा प्राप्त करना चाहिए ताकि सहज नवोन्नति एवं स्वाधीनता के भाव-विचार उत्पन्न हों | अंग्रेज़ी एक विदेशी भाषा की भाँती पढाई जा सकती है | इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होगी | दुनिया के तमाम देश स्व-भाषा में शिक्षाके बल पर विज्ञान- ज्ञान में हमसे आगे बढ़ चुके हैं| हम कब संभलेंगे |