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गुरुवार, 27 अक्टूबर 2011

प्रेमकाव्य-महाकाव्य. षष्ठ सुमनान्जलि (क्रमश:)-खंड ग-वियोग श्रृंगार ..गीत ७ ...डा श्याम गुप्त

                                                  कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित





           प्रेम  -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है  | अब तक प्रेम काव्य ..षष्ठ -सुमनान्जलि....रस श्रृंगार... इस सुमनांजलि में प्रेम के श्रृंगारिक भाव का वर्णन किया गया ..तीन खण्डों में ......(क)..संयोग श्रृंगार....(ख)..ऋतु-श्रृंगार तथा (ग).. वियोग श्रृंगार ....में दर्शाया गया है..... 
                 खंड ग ..वियोग श्रृंगार --जिसमें --पागल मन,  मेरा प्रेमी मन,  कैसा लगता है,  तनहा तनहा रात में,  आई प्रेम बहार,  छेड़ गया कोई,  कौन,  इन्द्रधनुष एवं  बनी रहे ......नौ रचनाएँ प्रस्तुत की जायंगी | प्रस्तुत है.. सप्तम गीत ..कौन ....
 
मन की वीणा के तारों को
     छेड़ गया फिर कौन?
कानों में कह प्यारी गुनगुन ,
     कौन होगया मौन ?
मन की वीणा के तारों को,
    छेड़ गया फिर कौन ||

किसने दी आवाज़ दूरसे ,
     हो द्रुम-दल की ओट |
रस रंग सुमधुर टेर लगी जब ,
     लगे लरज़ने होठ |
मंद मंद स्वर झनका  पायल,
    दूर होगया कौन ?
मन की वीणा के तारों को,
    छेड़ गया फिर कौन ||

किसने  तानी हरी चुनरिया,
     बासंती  परिधान |
लहर लहर झूमे पुरवाई ,
     भ्रमर करें गुणगान |
कुशुम शरों के घाव लगाकर,
    चला  गया फिर कौन |
मन की वीणा के तारों को, 
    छेड़ गया फिर कौन ||



2 टिप्‍पणियां:

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

प्रिय श्याम गुप्त जी बहुत सुन्दर रचना ...निम्न पंक्तियाँ मन को छू गयीं .प्रकृति और प्रेम के समय हाव भाव ..
भ्रमर ५

किसने दी आवाज़ दूरसे ,
हो द्रुम-दल की ओट |
रस रंग सुमधुर टेर लगी जब ,
लगे लरज़ने होठ |
मंद मंद स्वर झनका पायल,
दूर होगया कौन ?
मन की वीणा के तारों को,
छेड़ गया फिर कौन ||

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद भ्रमर जी......