कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
प्रेम -- किसी एक तुला द्वारा नहीं तौला जा सकता, किसी एक नियम द्वारा नियमित नहीं किया जा सकता; वह एक विहंगम भाव है | प्रस्तुत है-- इस काव्य-कृति की अंतिम व एकादश सुमनान्जलि- अमृतत्व --जो मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य व सोपान है वह प्रेम, भक्ति, कर्म , योग, ज्ञान चाहे जिस मार्ग से आगे बढे .. ----इस सुमनांजलि में...जीवन-सुख, शाश्वत-सुख, ज्ञानामृत, परमार्थ एवं मोक्षदा एकादश ....अदि पांच रचनाएँ प्रस्तुत की जायेंगी | प्रस्तुत है ..पंचम व इस कृति की अंतिम रचना .....
समझें भेदा-भेद जब, पायें सच्चा ज्ञान ,
मन विषयों से निरत हो, श्याम वही है ध्यान |
चिंतन में लय जो सदा, मन में दृढ़ संकल्प,
यही अवस्था 'धारणा'', यही धर्म संकल्प |
शास्त्रों के अनुकूल जो, करते तर्क विचार ,
सभी प्राप्तियां तुच्छ हों, श्याम'समाधि 'विचार |
फल की जो इच्छा नहीं, धर्माधर्म अलिप्त,
राग द्वेष दुःख से परे, सोई जीवन्मुक्त |
ज्ञाता ज्ञान व ज्ञेय का, भेद रहे नहिं रूप,
वह तो स्वयं प्रकाश है, परमानंद स्वरुप |
नित्यानित्य विचार से, भवसुख सदा अनित्य,
ममता बंधन मुक्त हों, श्याम मोक्ष का सत्य |
ज्ञान और संसार को, जो दोनों को ध्याय ,
माया बंधन पार कर, अमर तत्व सो पाय |
इस संसार असार में, श्याम' प्रेम ही सार ,
प्रेम करे दोनों मिलें, ज्ञान और संसार |
प्रेम बसे भगवान हैं, महिमा प्रेम अपार ,
वो ही परमानंद है, प्रेम मोक्ष का सार |
प्रेम लीन होपाय जो, परम शान्ति सो पाय,
सारे बंधन मुक्त हो, अमरतत्व पाजाय |
प्रेम सभी से कीजिये, सकल शास्त्र का सार ,
ब्रह्मानंद मिले उसे, श्याम' मोक्ष साकार ||
इति ---- प्रेम काव्य - महा काव्य ...
मोक्षदा एकादश ...
समझें भेदा-भेद जब, पायें सच्चा ज्ञान ,
मन विषयों से निरत हो, श्याम वही है ध्यान |
चिंतन में लय जो सदा, मन में दृढ़ संकल्प,
यही अवस्था 'धारणा'', यही धर्म संकल्प |
शास्त्रों के अनुकूल जो, करते तर्क विचार ,
सभी प्राप्तियां तुच्छ हों, श्याम'समाधि 'विचार |
फल की जो इच्छा नहीं, धर्माधर्म अलिप्त,
राग द्वेष दुःख से परे, सोई जीवन्मुक्त |
ज्ञाता ज्ञान व ज्ञेय का, भेद रहे नहिं रूप,
वह तो स्वयं प्रकाश है, परमानंद स्वरुप |
नित्यानित्य विचार से, भवसुख सदा अनित्य,
ममता बंधन मुक्त हों, श्याम मोक्ष का सत्य |
ज्ञान और संसार को, जो दोनों को ध्याय ,
माया बंधन पार कर, अमर तत्व सो पाय |
इस संसार असार में, श्याम' प्रेम ही सार ,
प्रेम करे दोनों मिलें, ज्ञान और संसार |
प्रेम बसे भगवान हैं, महिमा प्रेम अपार ,
वो ही परमानंद है, प्रेम मोक्ष का सार |
प्रेम लीन होपाय जो, परम शान्ति सो पाय,
सारे बंधन मुक्त हो, अमरतत्व पाजाय |
प्रेम सभी से कीजिये, सकल शास्त्र का सार ,
ब्रह्मानंद मिले उसे, श्याम' मोक्ष साकार ||
इति ---- प्रेम काव्य - महा काव्य ...