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शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

२०१६ की प्रथम भोर पर एक उद्बोधन गीत ...डा श्याम गुप्त ....

                                       कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित

इस प्रथम भोर पर एक उद्बोधन गीत प्रस्तुत है -----

नयी भोर ...


नयी भोर की इक नयी हो कहानी
जगे फिर मेरे देश की नव जवानी |
ये उत्तर ये दक्षिण पूरव औ पश्चिम,
मिलकर लिखें इक नई ही कहानी | 


नयी भोर लाये नयी ज़िन्दगानी ||


युवा-शक्ति का बल, अनुभव का संबल,
मिलकर चलें इक नवल राह पर हम |
नए जोश के स्वर, नए सुर-तराने,
रचें गीत-सरगम, नई इक कहानी |


नयी भोर की नव-कथा इक सुहानी ||


पहले ये जानें, सोचें और मानें,
कि इस राष्ट्र की है जो संस्कृति सनातन |
वही विश्ववारा संस्कृति मनुज की,
सकल विश्व में फ़ैली जिसकी निशानी |...


सनातन कथा की लिखें नव कहानी ||


पुरा ज्ञान, विज्ञान का हो समन्वय,
हो इतिहास एवं पुराणों का अन्वय |
नए ज्ञान कौशल पर सोचें विचारें ,
न यूंही नकारें ऋषियों की वाणी | 


नवल-स्वर नए सुर नयी प्रीति-वाणी||


सहजता सरलता सहिष्णुता संग,
प्रीति की रीति जग देखले इक सुहानी|
न मज़हब की दीवार का अर्थ कोइ,
पलें धर्म और नीति-राहें सुजानी |...


राहें सुजानी नई इक कहानी ||


विचारों के जग पर न अंकुश कहीं है,
सदा राष्ट्र का यह गौरव रही है |
जग देखकर नीति-नय का समां यह,
लगे लिखने खुद की नयी इक कहानी| 


नया भोर जग की नई ही कहानी ||


बनें नर स्वयं नारी गरिमा के रक्षक,
न शोषण कुपोषण अनाचार कोई |
औ नारी बने राष्ट्र-संस्कृति की गरिमा,
दोनों लिखें मिलके जीवन कहानी |...


बने नीति की एक सुन्दर कहानी |
बने राष्ट्र गरिमा की दृड़ता निशानी ||




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