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रविवार, 24 जनवरी 2016

मेरे ..श्रृंगार व प्रेम गीतों की शीघ्र प्रकाश्य कृति ......"तुम तुम और तुम" का गीत ८-गीत बन गए...डा श्याम गुप्त

कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित



नूतन वर्ष में .मेरे ..श्रृंगार व प्रेम गीतों की शीघ्र प्रकाश्य कृति ......"तुम तुम और तुम". के गीतों को यहाँ पोस्ट किया जा रहा है -----प्रस्तुत है गीत---८..
गीत व कविता वस्तुतः मन की गहराई से निस्रत होते हैं, जीवन एक गीत ही है , जीवन व आयु के विभिन्न सोपानों पर उठते हुए विभिन्न भावों को सहेज़ते हुए मन के भाव- गीतों के विभिन्न रूप भाव निसृत होते हैं उसी के भावानुसार ही गीत निसृत होते हैं, इन गीत भावों को प्रत्येक मन , मानव ,व्यक्तित्व अपने जीवन में अनुभव करता है, जीता है , बस कवि उन्हें मानस की मसि में डुबो कर कागज़ पर उतार देता है ; देखिये कैसे –)

गीत बन गए

दर्द बहुत थे , भुला दिए सब ,
भूल न पाये ,वे बह निकले -
कविता बनकर ,प्रीति बन गए |
दर्द जो गहरे ,नहीं बह सके ;
उठे भाव बन ,गहराई से,
वे दिल की अनुभूति बन गए |

दर्द मेरे मन मीत बन गए ,
यूँ मेरे नव-गीत बन गए ||

भावुक मन की विविधाओं से,
बन सुगंध वे छंद बने फ़िर-
सुर लय बन कर गीत बन गए |
 भूली-बिसरी यादों के उन,
मंद समीरण की थपकी से
ताल बने संगीत बन गए |—दर्द मेरे….||

सुख के पल छिन जो भी आए,
स्वप्न सुहाने से मन भाये;
प्रणय मिलन के मधुरिम पल में,
तन-मन के मधु-सुख कम्पन बन ;
तनकी भव-सुख प्रीति बन गए,
गति यति बन रस रीति बन गए |—दर्द मेरे ….||

ज्ञान-कर्म के ,नीति-धर्म के,
विविध रूप जब मन में उभरे |
सत् के पथ की राह चले तो ,
जग-जीवन की नीति बन गए |
तन के मन के अलंकार बन,
जीवन की भव -भूति बन गए|—–यूँ मेरे नव …..||

दर्शन भक्ति विराग-त्याग के,
सुख संतोष भाव मन छाये ;
प्रभु की प्रीति के भाव बने तो ,
आनंद सुख अनुभूति बन गए |
आत्मलीन जब मुग्ध मन हुए;
परमानंद विभूति बन गए |—–दर्द मेरे……..||

अप्रमेय अनुपम अविनाशी ,
अगुन अभाव नित विश्व प्रकाशी ;
सत् चित आनंद घट घट बासी ,
अंतस के जब मीत बन गए ;
अमृत घट के दीप जल गए ,
आदि अनाहत गीत बन गए |

दर्द मेरे मन मीत बन गए,
यूँ मेरे नव-गीत बन गए ||

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