कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
नूतन
वर्ष में .मेरे ..श्रृंगार व प्रेम गीतों की शीघ्र प्रकाश्य कृति
......"तुम तुम और तुम". के गीतों को यहाँ पोस्ट किया जा रहा है
-----प्रस्तुत है गीत -७ ..-----जब से तुम मेरे गीतों को गाने लगे-----
जब से तुम मेरे गीतों को गाने लगे
मेरे मन के सुमन मुस्कुराने लगे |
दिल की दुनिया में इक रोशनी सी हुई,
नित नए भाव मन को सजाने लगे |
जब से तुम मेरे गीतों को गाने लगे
मेरे मन के सुमन मुस्कुराने लगे |
दिल की दुनिया में इक रोशनी सी हुई,
नित नए भाव मन को सजाने लगे |
मैं ये चाहूँ कि तुम कोई कविता लिखो,
भाव बनके मैं उनमें समाता रहूँ |
तुम रचो गीत मैं उनको गाता रहूँ,
तेरा बासंती मन महमहाने लगे |
तुम लिखो कोई कविता नए रंग की,
प्रीति की रीति के कुछ नए ढंग की |
तेरी रचना को पढ़ रचयिता स्वयं,
साथ वाणी के वीणा बजाने लगे |
भाव बनके मैं उनमें समाता रहूँ |
तुम रचो गीत मैं उनको गाता रहूँ,
तेरा बासंती मन महमहाने लगे |
तुम लिखो कोई कविता नए रंग की,
प्रीति की रीति के कुछ नए ढंग की |
तेरी रचना को पढ़ रचयिता स्वयं,
साथ वाणी के वीणा बजाने लगे |
जब नए रंग की कोई कविता लिखो,
मैं नए रंग उनमें सजाता रहूँ |
खोया खोया सा मन गनगुनाने लगे,
मेरे मन का सुमन मुस्कुराने लगे |
तुम यूंही गीत मेरे जो गाते रहो,
बन के संगीत मन में समाते रहो |
एक सरगम सजे प्रीति रसधार की,
लो बहारों के स्वर चहचहाने लगे ||
मैं नए रंग उनमें सजाता रहूँ |
खोया खोया सा मन गनगुनाने लगे,
मेरे मन का सुमन मुस्कुराने लगे |
तुम यूंही गीत मेरे जो गाते रहो,
बन के संगीत मन में समाते रहो |
एक सरगम सजे प्रीति रसधार की,
लो बहारों के स्वर चहचहाने लगे ||
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