कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित
नूतन
वर्ष में .मेरे ..श्रृंगार व प्रेम गीतों की
कृति ......"तुम तुम और तुम". के गीतों को यहाँ पोस्ट किया जा रहा है -----
--प्रस्तुत है गीत - ५...
..
मेरे गीत अमर तुम करदो....
मेरे गीतों की तुम यदि बनो भूमिका,
काव्य मेरा अमर जग में होजायगा |
मेरे छंदों के भावों में बस कर रहो,
गीत मेरा अमर-प्रीति बन जायगा |
गीत गाकर जो माथे पे बिंदिया धरो ,
अक्षर-अक्षर कनक वर्ण होजायगा |
तुम रचो ओठ, गीतों को गाते हुए,
गीत जन-जन के तन-मन में बस जायगा |
रूप दर्पण में जब तुम संवारा करो,
गीत मेरे ही तुम गुनगुनाया करो |
गुनगुनाते हुए मांग अपनी भरो,
गीत का रंग सिंदूरी हो जायगा |
शब्दों -शब्दों में तुम ही समाया करो,
मैं रचूँ गीत, तुम गीत गाया करो |
गीत तुम अपने स्वर में सजाने लगो ,
गीत जीवन का संगीत बन जायगा ||
क्रमश --गीत-६....अगले अंक में....
कृति ......"तुम तुम और तुम". के गीतों को यहाँ पोस्ट किया जा रहा है -----
--प्रस्तुत है गीत - ५...
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मेरे गीत अमर तुम करदो....
मेरे गीतों की तुम यदि बनो भूमिका,
काव्य मेरा अमर जग में होजायगा |
मेरे छंदों के भावों में बस कर रहो,
गीत मेरा अमर-प्रीति बन जायगा |
गीत गाकर जो माथे पे बिंदिया धरो ,
अक्षर-अक्षर कनक वर्ण होजायगा |
तुम रचो ओठ, गीतों को गाते हुए,
गीत जन-जन के तन-मन में बस जायगा |
रूप दर्पण में जब तुम संवारा करो,
गीत मेरे ही तुम गुनगुनाया करो |
गुनगुनाते हुए मांग अपनी भरो,
गीत का रंग सिंदूरी हो जायगा |
शब्दों -शब्दों में तुम ही समाया करो,
मैं रचूँ गीत, तुम गीत गाया करो |
गीत तुम अपने स्वर में सजाने लगो ,
गीत जीवन का संगीत बन जायगा ||
क्रमश --गीत-६....अगले अंक में....
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