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शनिवार, 16 जनवरी 2016

मेरे गीत सुरीले क्यों हैं...मेरे ..श्रृंगार व प्रेम गीतों की शीघ्र प्रकाश्य कृति ......"तुम तुम और तुम"-के गीत --डा श्याम गुप्त ...

                                      कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित






नूतन वर्ष में .मेरे ..श्रृंगार व प्रेम गीतों की शीघ्र प्रकाश्य कृति ......"तुम तुम और तुम". के गीतों को यहाँ पोस्ट किया जा रहा है -----
--प्रस्तुत है गीत - ६....

मेरे गीत सुरीले क्यों हैं...



मेरे गीतों में आकर के तुम क्या बसे,
गीत का स्वर मधुर माधुरी होगया।
अक्षर अक्षर सरस आम्रमंजरि हुआ,
शब्द मधु की भरी गागरी होगया।


तुम जो ख्यालों में आकर समाने लगे,
गीत मेरे कमल दल से खिलने लगे।
मन के भावों में तुमने जो नर्तन किया,
गीत ब्रज की भगति- बावरी होगया। ...मेरे गीतों में ..... ॥


प्रेम की भक्ति सरिता में होके मगन,
मेरे मन की गली तुम समाने लगे।
पन्ना पन्ना सजा प्रेम रसधार में,
गीत पावन हो मीरा का पद होगया।


भाव चितवन के मन की पहेली बने,
गीत कबीरा का निर्गुण सबद होगया।
तुमने छंदों में सज कर सराहा इन्हें ,
मधुपुरी की चतुर नागरी होगया। .....मेरे गीतों में..... ॥


मस्त में तो यूहीं गीत गाता रहा,
तुम सजाते रहे,मुस्कुराते रहे।
गीत इठलाके तुम को बुलाने लगे,
मन लजीली कुसुम वल्लरी होगया।


तुम जो हंस हंस के मुझको बुलाते रहे,
दूर से छलना बन कर लुभाते रहे।
भाव भंवरा बने, गुनगुनाने लगे ,
गीत कालिका -नवल-पांखुरी होगया। .....मेरे गीतों में... ॥


तुम ने कलियों से जब लीं चुरा शोखियाँ ,
बनके गज़रा कली खिलखिलाती रही।
पुष्प चुनकर जो आँचल में भरने चले ,
गीत पल्लव सुमन आंजुरी होगया ।


तेरे स्वर की मधुर माधुरी मिल गयी,
गीत राधा की प्रिय बांसुरी होगया ।
भक्ति के भाव में तुमने अर्चन किया,
गीत कान्हा की प्रिय सांवरी होगया । .... मेरे गीतों में.... ॥



मेरे गीतों में आकर के तुम क्या बसे,
गीत का स्वर मधुर माधुरी होगया।
अक्षर अक्षर सरस आम्रमंजरि हुआ,
शब्द मधु की भरी गागरी होगया।


तुम जो ख्यालों में आकर समाने लगे,
गीत मेरे कमल दल से खिलने लगे।
मन के भावों में तुमने जो नर्तन किया,
गीत ब्रज की भगति- बावरी होगया। ...मेरे गीतों में ..... ॥


प्रेम की भक्ति सरिता में होके मगन,
मेरे मन की गली तुम समाने लगे।
पन्ना पन्ना सजा प्रेम रसधार में,
गीत पावन हो मीरा का पद होगया।


भाव चितवन के मन की पहेली बने,
गीत कबीरा का निर्गुण सबद होगया।
तुमने छंदों में सज कर सराहा इन्हें ,
मधुपुरी की चतुर नागरी होगया। .....मेरे गीतों में..... ॥


मस्त में तो यूहीं गीत गाता रहा,
तुम सजाते रहे,मुस्कुराते रहे।
गीत इठलाके तुम को बुलाने लगे,
मन लजीली कुसुम वल्लरी होगया।


तुम जो हंस हंस के मुझको बुलाते रहे,
दूर से छलना बन कर लुभाते रहे।
भाव भंवरा बने, गुनगुनाने लगे ,
गीत कालिका -नवल-पांखुरी होगया। .....मेरे गीतों में... ॥


तुम ने कलियों से जब लीं चुरा शोखियाँ ,
बनके गज़रा कली खिलखिलाती रही।
पुष्प चुनकर जो आँचल में भरने चले ,
गीत पल्लव सुमन आंजुरी होगया ।


तेरे स्वर की मधुर माधुरी मिल गयी,
गीत राधा की प्रिय बांसुरी होगया ।
भक्ति के भाव में तुमने अर्चन किया,
गीत कान्हा की प्रिय सांवरी होगया । .... मेरे गीतों में.... ॥

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