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बुधवार, 6 जनवरी 2016

मेरे ..श्रृंगार व प्रेम गीतों की शीघ्र प्रकाश्य कृति ......"तुम तुम और तुम". से ----- गीत -२ ---गीत सज़े --- डा श्याम गुप्त .....

                                कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित


नूतन वर्ष में .मेरे ..श्रृंगार व प्रेम गीतों की  कृति ......"तुम तुम और तुम". के गीतों को यहाँ पोस्ट किया जा रहा है -----
--प्रस्तुत है गीत -दो ---गीत सज़े ---

में लगा सोचने गीत कोई लिखूं,
ख्याल बनकर तुम मन में समाने लगे।
तुम लिखो गीत जीवन के सन्सार के ,
गीत मेरे लिखो यूं बताने लगे ।


जब उठाकर कलम गीत लिखने चला,
कल्पना बन के तुम मुस्कुराते रहे ।
लेखनी यूंही कागज़ पे चलती रही ,
यूं ही लिखता रहा तुम लिखाते रहे ।


छंद रस रागिनी स्वर पढे ही नहीं ,
कैसे गीतों को सुर ताल ओ लय मिले।
में चलाता रहा बस यूं ही लेखनी ,
ताल लय उनमें तुम ही सज़ाते रहे ।


गीत मैंने भला कोई गाया ही कब,
स्वर की दुनिया से कब मेरा नाता रहा।
बन के वीणा के स्वर कन्ठ में तुम बसे,
स्वर सज़ाने लगे , गुनु गुनाने लगे ।


ख्याल बनके यूं मन में समाने लगे,
गीत मेरे लिखो यूं सुझाने लगे।
तुम जो गाने लगे सुर सजाने लगे ,
हम भी लिखने लगे गुनगुनाने लगे ||

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