नव कल्पना मन में जगे ,
नव व्यंजना सुर में सजे ।
वाणी कलम को गति मिले ,
करदो कृपा माँ शारदे !
तेरी भक्ति -भाव के इच्छुक ,
श्रेष्ठ कर्म रत ,ज्ञान धर्म युत ,
माँ ! तेरा आवाहन करते ;
इच्छित वर उनको मिलते हैं ।
कृपा दृष्टि हो माँ सरस्वती ,
हों मन में नव भाव अवतरित ।
माँ वाणी! ,माँ सरस्वती !,माँ शारदे !
बुद्धि विमल करदे ,
जीवन सुधार दे ;
माँ वाणी! माँ सरस्वती! माँ शारदे!
वीणा वादिनि!, जग वीणा की ,
जब सुमधुर ध्वनि हम सुनते हें।
ह्रदय -तंत्र झंकृत हो जाता ,
मन-वीणा को स्वर मिलते हें ।
वीणा के जिन ज्ञान स्वरों से ,
माँ ब्रह्मा को हुआ स्मरण ;
वही ज्ञान स्वर हे माँ वाणी !
ह्रदय -तंत्र में झंकृत करदो ।
श्रृष्टि ज्ञान स्वर मिले श्याम को ,
करुँ वन्दना पुष्पार्पण कर ।
श्रम ,विचार व कला भाव के ,
अर्थ परक, और ज्ञान रूप की ;
सब विद्याएँ करें प्रवाहित ,
सकल भुवन में माँ कल्याणी !
ज्ञान रसातल पड़े श्याम को ,
भी कुछ वाणी-स्वर-कण दो माँ ॥
साहित्य के नाम पर जाने क्या क्या लिखा जा रहा है रचनाकार चट्पटे, बिक्री योग्य, बाज़ारवाद के प्रभाव में कुछ भी लिख रहे हैं बिना यह देखे कि उसका समाज साहित्य कला , कविता पर क्या प्रभाव होगा। मूलतः कवि गण-विश्व सत्य, दिन मान बन चुके तथ्यों ( मील के पत्थर) को ध्यान में रखेबिना अपना भोगा हुआ लिखने में लगे हैं जो पूर्ण व सर्वकालिक सत्य नहीं होता। अतः साहित्य , पुरा संस्कृति व नवीनता के समन्वित भावों के प्राकट्य हेतु मैंने इस क्षेत्र में कदम रखा। कविता की भाव-गुणवत्ता के लिए समर्पित......
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